नई दिल्ली
अहमदिया मुसलमान हैं या नहीं, इसको लेकर देश में बहस जारी है। इस मुद्दे पर केंद्र सरकार ने अपना रुख साफ कर दिया है। इस बीच भारत के प्रमुख मुस्लिम संगठनों में से एक जमीयत उलेमा ए हिंद ने मंगलवार को एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कादियानियों या अहमदिया को मुसलमान मानने से इनकार कर दिया। आपको बता दें कि आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने भी इससे पहले इसी तरह का प्रस्ताव पास किया था, जिसका केंद्र सरकार ने विरोध किया था। 21 जुलाई को केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश सरकार को कड़े शब्दों में एक पत्र भेजा था, जिसमें वक्फ बोर्ड के प्रस्ताव को एक नफरत भरा अभियान बताया था। केंद्र ने कहा था कि इसका असर पूरे देश में हो सकता है।
केंद्र ने कहा, ''अहमदिया मुस्लिम समुदाय से दिनांक 20.7.2023 को एक अभ्यावेदन प्राप्त हुआ है, जिसमें कहा गया है कि कुछ वक्फ बोर्ड अहमदिया समुदाय का विरोध कर रहे हैं और समुदाय को इस्लाम के दायरे से बाहर घोषित करने के लिए अवैध प्रस्ताव पारित कर रहे हैं। यह बड़े पैमाने पर अहमदिया समुदाय के खिलाफ घृणा भरा अभियान है। वक्फ बोर्ड के पास अहमदिया सहित किसी भी समुदाय की धार्मिक पहचान निर्धारित करने का कोई अधिकार नहीं है।'' आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव केएस जवाहर रेड्डी को पत्र लिखकर मंत्रालय ने इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कहा है।
2012 में आंध्र प्रदेश राज्य वक्फ बोर्ड ने एक प्रस्ताव पारित कर पूरे अहमदिया समुदाय को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया। इस प्रस्ताव को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने प्रस्ताव को अंतरिम रूप से निलंबित करने का आदेश जारी किया। हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद वक्फ बोर्ड ने इस साल फरवरी में दूसरी घोषणा जारी की, जिसमें कहा गया कि 26 मई, 2009 को आंध्र प्रदेश के जमायतुल उलेमा के फतवे के परिणामस्वरूप कादियानी समुदाय को काफिर घोषित किया जाता है। वे मुस्लिम नहीं हैं।
जमीयत ने मंगलवार को अपने बयान में कहा, ''इस मामले में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का एक अलग दृष्टिकोण पर जोर देना अनुचित और अतार्किक माना जाता है, क्योंकि वक्फ बोर्ड का प्राथमिक उद्देश्य मुसलमानों की बंदोबस्ती और हितों की रक्षा करना है। इसलिए, मुस्लिम के रूप में मान्यता प्राप्त समुदाय से संबंधित संपत्तियां और नमाज स्थल वक्फ बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं। इस्लाम धर्म दो मौलिक मान्यताओं पर आधारित है: तौहीद, अल्लाह की एकता की पुष्टि और यह विश्वास कि पैगंबर मुहम्मद अल्लाह के अंतिम दूत हैं। ये दोनों मान्यताएं इस्लाम के पांच बुनियादी स्तंभों के अभिन्न अंग हैं। इन आवश्यक इस्लामी मान्यताओं के विपरीत, मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी ने एक ऐसा रुख अपनाया जो पैगम्बर की की अवधारणा को चुनौती देता है।''