भोपाल
राजीव गांधी प्रौद्यागिकी यूनिवर्सिटी में कम्प्यूटर, फर्नीचर खरीदी से लेकर अलग-अलग कामों में भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। शिकायत आने पर सरकार ने तीन सदस्यीय कमेटी बनाई और आरोपों की पुष्टि भी हुई। उस पर सरकार ने यूनिवर्सिटी से उसकी राय मांगी थी। इस पर जिन लोगों पर आरोप थे, उन्होंने अपने स्तर पर जांच कराई और आरोपों को निराधार बताते हुए जांच बंद करने के लिए सरकार को पत्र लिख दिया।
यह मामला मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग यूनिवर्सिटी का है, जिससे प्रदेश के तकरीबन सभी बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज संबद्धता रखते हैं। आरजीपीवी के कुलपति डॉ. सुनील कुमार और रजिस्ट्रार डॉ. आरएस राजपूत पर पिछले साल अनिमितताओं के आरोप लगे थे। बताया गया कि इंटिग्रेटेड यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट सिस्टम, हॉस्टल की भोजन व्यवस्था, कंप्यूटर खरीद, लाइब्रेरी में फर्नीचर खरीदी, स्मार्ट क्लासरूम बनाने में आर्थिक अनियमितता की गई। सात बिन्दू की शिकायत की जांच के लिए राज्य सरकार ने तकनीकी शिक्षा विभाग के अतिरिक्त संचालक डॉ. मोहन सेन, डॉ. पीके झींगे और जितेंद्र सिंह की कमेटी गठित की। समिति ने जून 2022 में अपनी रिपोर्ट में बताया कि नियमों का पालन नहीं किया गया।
पारदर्शिता नहीं बरती गई। इस पर शासन ने आरजीपीवी का अभिमत मांगा। हैरानी की बात यह है कि रजिस्ट्रार डॉ. आरएस राजपूत ने अपने ही खिलाफ जांच की रिपोर्ट की समीक्षा अपने अधीनस्थों डिप्टी कंट्रोलर एग्जाम प्रभात पटेल, डिप्टी रजिस्ट्रार कौतिक सोनवड़े, असिस्टेंट रजिस्ट्रार डॉ. पंकज जैन, सिस्टम एनालिस्ट व ट्रांसपोर्ट इंचार्ज सबूर खान और असिस्टेंट प्रोफेसर मनोज पांडे को जांच समिति में रका।
इस समिति ने आरोपों को गलत बता दिया। इसकी रिपोर्ट के साथ रजिस्ट्रार ने ही अपने ही हस्ताक्षर से जांच बंद करने का पत्र शासन को लिख दिया। सवाल खड़े हुए तो रजिस्ट्रार डॉ. आरएस राजपूत बोले कि शासन की तरफ से गठित समिति की रिपोर्ट एक पक्षीय थी। मेरे हस्ताक्षर से रिपोर्ट गई थी, लेकिन बाद में डिप्टी रजिस्ट्रार के हस्ताक्षर से पत्र भेजा गया।
तीन सदस्यीय समिति ने यह पाया था जांच में
– 60 कम्प्यूटर खरीदने का निर्णय कार्य परिषद में हुआ था। 83,350 रुपये प्रति नग की दर पर 55 कम्प्यूटर खरीदने के दो अलग-अलग ऑर्डर जारी हुए। जब रजिस्टर में एंट्री की गई, तब तक सामान पहुंचा ही नहीं था। क्रय आदेश पर खरीदी दो साल बाद हुई, जबकि क्रय आदेश 6 महीने के लिए ही वैध होता है।
– ऑनलाइन परीक्षा के लिए नौ सदस्यों की समिति बनाई। बिना किसी टेंडर के दैनिक भुगतान का आधार तय हुआ। उन्हें परीक्षा जैसे गोपनीय कार्य में लगाया गया। सक्षम अनुमति/ स्वीकृति के बाद ही परीक्षा का काम होना था, लेकिन रिकॉर्ड इसकी पुष्टि नहीं करते।
– 10 स्मार्ट क्लास रूम विकसित करने को मंजूरी दी गई थी। कितने क्लासरूम को स्मार्ट बनाना है, इसका निर्धारण/अनुमान नहीं किया गया। सात क्लासरूम ही स्मार्ट बनाए गए। उस पर कितना खर्च हुआ, इसकी स्वीकृति का दस्तावेज भी नहीं है।
– पुस्तकालय एवं फर्नीचर खरीदने में सक्षम स्वीकृति से बचने के लिए टुकड़ों-टुकड़ों में खरीदी की गई। 32 लाख रुपये का फर्नीचर खरीदा गया। भंडार क्रय नियमों का पालन होना था, लेकिन उसकी अनदेखी की गई।
– हॉस्टल में भोजन व्यवस्था अधिक रेट पर दे दी गई। दो और फर्म ने दो हजार से कम रेट दिया था। एक ने 1600 रुपये और 1950 रुपये की दर दी थी। एक फर्म की सेवाओं में कमी पाई गई तो दूसरी एजेंसी को 2200 रुपये प्रति छात्र मेस संचालन की अनुशंसा कर दी गई।
– अंतर-विश्वविद्यालय महासंघ का गठन नहीं हुआ था। इसके बाद भी इंटिग्रेटेड यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट सिस्टम (आईयूएमएस) से कार्य कराया गया। जांच समिति ने लिखा कि समन्वय समिति की बैठक में उक्त कार्यवाही का विवरण ही नहीं है। पांच हजार रुपये प्रति कार्य दिवस की दर सीनियर आईटी कंसल्टेंट को रखने की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव रहा।
– यूनिवर्सिटी में सुरक्षा के लिए 100 गार्ड की स्वीकृति है। इसकी जगह 150 गार्ड लगाए गए हैं। उन्हें 12600 प्रतिमाह की जगह 6000 रुपये प्रतिमाह देने का आरोप है। सुरक्षाकर्मियों को नगद भुगतान किया जा रहा है। इनका ईपीएफ की राशि के भुगतान के संबंध में भी कोई दस्तावेज नहीं है।