लखनऊ
प्रदेश कांग्रेस की अंतरकलह और बिखरा प्रबंधन उस पर फिर भारी पड़ा है। सत्ताधारी दल भाजपा की नीतियों के विरोध को हथियार बनाकर कांग्रेस कुछ हमलावर तो दिखी थी पर लोगों में विश्वास कायम नहीं कर सकी। पदाधिकारियों की आपसी खींचतान इतनी रही कि कार्यकर्ता भी खेमेबंदी में उलझकर रह गए। परिणाम सामने हैं। कांग्रेस इस बार भी महापौर का खाता नहीं खोल सकी।
पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनावों की तरह उसकी हार का सिलसिला बरकरार है। वोटों में उसकी भागीदारी भी घटती रही है। यह दशा लोकसभा चुनाव-2024 में उसके प्रदर्शन को लेकर चिंता की लकीरों काे और बड़ा करती है। कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी ने आठ अक्टूबर, 2022 को पदभार संभाला था। उनके साथ ही पार्टी ने प्रदेश को छह प्रांतों में बांटकर पहली बार प्रांतीय अध्यक्ष के रूप में नया प्रयोग भी किया। जातीय समीकरणों के आधार पर अपने नेताओं को नई जिम्मेदारी सौंपी।
नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पश्चिमी प्रांत, नकुल दुबे को अवध, अनिल यादव को बृज, वीरेन्द्र चौधरी को पूर्वांचल, योगेश दीक्षित को बुंदेलखंड व अजय राय को प्रयाग प्रांत का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इन सभी के लिए नगर निकाय चुनाव पहली परीक्षा थी। दूसरे दलों के लिए लोकसभा चुनाव-2024 से पहले निकाय चुनाव भले ही सेमीफाइनल रहा हो पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व प्रांतीय अध्यक्षों के लिए अपना दमखम दिखाने का पहला मौका था। उनकी पारी की शुरुआत थी। शहरी चुनाव की पिच पर कांग्रेस के ये बल्लेबाज आंखें नहीं जमा सकें। उनकी इस चूक के संकेत पहले ही मिल चुके थे। टिकटों के बंटवारे के दाैरान जो अंतरकलह सामने आई थी, उसे पार्टी के बड़े भी भांप नहीं सके। प्रदेश मुख्यालय में 15 अप्रैल को लखनऊ नगर निगम में कांग्रेस के 95 पार्षद उम्मीदवारों की प्रसारित सूची को लेकर विवाद हुआ। कई असंतुष्ट दावेदार पार्टी मुख्यालय पहुंच गए आैर तीखा विरोध दर्ज कराया। टिकटों के आवंटन को लेकर पदाधिकारियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे और वायरल सूची की जांच आरंभ कर दी गई।
अन्य जिलों में भी आपसी विवाद सामने आए। उम्मीदवारों के चयन को लेकर पार्टी में कलह जारी रही। मथुरा-वृंदावन में महापौर पद के लिए दो उम्मीदवारों की दावेदारी भी इसका नतीजा रही। पार्टी के सिंबल पर नामांकन करने वाले प्रदेश महामंत्री श्याम सुंदर उपाध्याय उर्फ बिट्टू की 18 अप्रैल काे छह वर्षों के लिए पार्टी की सदस्यता समाप्त कर दी गई। क्योंकि इस सीट पर पार्टी ने दूसरे दल से आए पूर्व विधायक राज कुमार रावत को उम्मीदवार बनाया था।
प्रदेश में हर चुनाव के साथ कमजोर होती कांग्रेस
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी की उत्तर प्रदेश में दुर्दाशा की यह कहानी पुरानी है। 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के सभी 399 प्रत्याशियों को कुल मिलाकर 21,51,234 वोट मिले थे, जो कि कुल पड़े मतों का 2.33 प्रतिशत था। इससे पूर्व वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिन्हें कुल 54,16,540 वोट मिले थे। कांग्रेस के हिस्से 6.25 प्रतिशत वोट आए थे। तब कांग्रेस गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में थी और फिर 2022 में अकेले दम किस्मत आजमाई थी।
वोटों के प्रतिशत का अंतर उसकी घटती ताकत को खुद बयां करता है। वहीं 2017 के निकाय चुनाव में कांग्रेस को 10 प्रतिशत मत मिले थे और वह भाजपा, सपा व बसपा से काफी पीछे रही थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं और पार्टी का वोट प्रतिशत 7.53 रहा था। 2019 लोकसभा में कांग्रेस के हाथ एक जीत ही लगी थी। यह भी साफ है कि हर चुनाव में कांग्रेस अपने खोए जनाधार काे लौटाने की कोई कारगर जुगत लगाने में नाकाम रही है।