तेहरान
भारत ने समुद्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाते हुए हुए ईरान के चाबहार पोर्ट पर एक बड़ी सफलता हासिल की है। भारत और ईरान ने दो दशकों से अधिक समय से चल रहे प्रयासों के बाद चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए एक दीर्घकालिक अनुबंध को अंतिम रूप दिया है। मिंट ऑनलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, देश में आम चुनाव के बाद इस अनुबंध पर हस्ताक्षर होंगे। चुनाव के बाद भारत के जहाजरानी मंत्री के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के ईरान का दौरा करने की योजना है, जहां भारत की मदद से विकसित इस बंदरगाह पर देश के नियंत्रण का रास्ता खुलेगा। नई दिल्ली में स्थित ईरानी दूतावास ने मिंट से इस बारे में पुष्टि की है।
सिस्तान-बलूचिस्तान के समुद्र पर स्थित इस रणनीतिक महत्व के बंदरगाह को भारत ने विकसित किया है। ईरान दूतावास के एक प्रतिनिधि ने मिंट को बताया, कॉन्ट्रैक्ट अंतिम चरण में है। हम भारतीय प्रतिनिधिमंडल के ईरान जाने का इंतजार कर रहे हैं। ईरानी दूतावास के प्रवक्ता महदी अस्फंदियारी ने बताया कि यह दोनों पक्षों के लिए बहुत अच्छा और फायदेमंद समझौता है। हालांकि, उन्होंने अनुबंध के बारे में अधिक जानकारी देने से इनकार कर दिया। ईरान और भारत के बीच इस डील से पाकिस्तान को बड़ा झटका लगने जा रहा है।
भारत और ईरान 2003 से चाबहार पर साथ
साल 2003 में ईरानी राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी की भारत यात्रा के दौरान नई दिल्ली और तेहरान के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर सहमति बनी थी। इसके तहत भारत चाबहार बंदरगाह के साथ ही बुनियादी ढांचे के विकास में भी मदद करने को सहमत हुआ था। चाबहार पोर्ट भारत की दिलचस्पी इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि इसके चलते भारतीय सामानों को अफगानिस्तान और मध्य एशिया के बाजारों तक प्रवेश द्वार मिलता है। वहीं, ईरान के लिए भी यह पोर्ट बहुत महत्वपूर्ण है। इसके खुलने से ईरान के बंदर अब्बास पर दबाव कम होगा, जहां से देश का 80 प्रतिशत समुद्री व्यापार होता है। साथ ही चाबहार पोर्ट पूरी तरह चालू होने से होर्मुज जलडमरूमध्य (होर्मुज स्ट्रेट) पर भी दबाव कम होगा। हालांकि, इसके बावजूद चाबहार पर काम उस तेजी से नहीं बढ़ा, जिसकी उम्मीद की गई थी।
10 साल के लिए हो सकता है अनुबंध
अब दो दशक के बाद भारत और ईरान बंदरगाह के विकास को गति देने के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार है। मामले के जानकारों के मुताबिक, ये अनुबंध 10 साल के लिए हो सकता है। अब तक, दोनों पक्षों ने एक साल के छोटे अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। मिंट की रिपोर्ट के अनुसार, मध्यस्थता पर असहमति के चलते दीर्घकालिक कॉन्ट्रैक्ट पर बातचीत अटकी हुई थी, लेकिन अब दोनों पक्ष एक समझौते पर पहुंच गए हैं, जो संयुक्त राष्ट्र आयोग द्वारा अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून पर बनाए गए नियमों के तहत मध्यस्थता की अनुमति देगा।
तालिबान भी कर रहा निवेश
इस पोर्ट के बनने से सबसे बड़ा झटका पाकिस्तान और चीन को लगने जा रहा है। चाबहार बंदरगाह पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित ग्वादर पोर्ट के करीब ही है। ग्वादर पोर्ट को विकसित करने में चीन ने भारी निवेश किया है। पाकिस्तान ग्वादर पोर्ट के जरिए अरब सागर से मध्य एशिया का दरवाजा बनने की कोशिश कर रहा था, लेकिन चाबहार के बनने से उसका प्लान फेल हो गया है। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने तो पाकिस्तान के रास्ते अपना व्यापार लगभग समेट लिया है। तालिबान सरकार आने के बाद से अफगानिस्तान का अधिकांश व्यापार ईरान के चाबहार के रास्ते हो रहा है। यही नहीं, तालिबान ने चाबहार पोर्ट पर बुनियादी ढांचे में निवेश का ऐलान भी किया है।