बर्लिन, प्रेट्र। माना जाता है कि करीब 4.4 अरब वर्ष पहले एक खगोलीय पिंड पृथ्वी से टकराया था। इसी टक्कर के चलते चंद्रमा का निर्माण हुआ था। अब वैज्ञानिकों का कहना है कि मंगल के बराबर आकार वाले पिंड की इस टक्कर से ही पृथ्वी पर पानी भी आया और यहां जीवन संभव हुआ। पहले खगोलविदों का मानना था कि थिया नामक यह पिंड हमारे सौरमंडल का ही हिस्सा था। लेकिन, नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में छपे अध्ययन के मुताबिक यह पिंड सौरमंडल के बाहर से आया था। पृथ्वी सौर मंडल का इकलौता ऐसा ग्रह है जिसके करीब 70 फीसद भाग में जल है। इसका चंद्रमा भी अन्य ग्रहों के चंद्रमा (उपग्रह) के मुकाबले बड़ा है। चांद के कारण ही धरती की कक्षा स्थिर है। धरती पर जीवन के विकास के लिए पानी के साथ-साथ चांद भी अहम है। जर्मनी की यूनिवर्सिटी आॅफ मंस्टर के प्रोफेसर थोरस्टेन क्लेन ने कहा- पहली बार चंद्रमा के बनने और पृथ्वी पर पानी की उत्पत्ति के संबंध का पता लगा है। सरल शब्दों में कहा जाए तो चांद के बिना पृथ्वी पर शायद जीवन का विकास होना असंभव था। पृथ्वी का विकास सौरमंडल के उस हिस्से में हुआ है जो अपेक्षाकृत सूखा है। ऐसे में यहां पानी की बहुतायत होना आश्चर्यजनक है। पुराने अध्ययनों में पाया गया था कि सौरमंडल के बाहर से आने वाले कॉर्बनेशियस उल्कापिंडों से पृथ्वी पर पानी आया था। इन उल्कापिंडों में पानी की बहुतायत होती है। अभी तक हालांकि यह स्पष्ट नहीं था कि कब और किस तरह इन उल्कापिंड के जरिये यहां पानी की उत्पत्ति हुई। इसका पता लगाने के लिए मोलिब्डेनम नामक रासायनिक तत्व के समस्थानिक (एक ही तत्व के स्वरूप जिनके न्यूट्रॉन की संख्या बराबर नहीं होती है) का इस्तेमाल किया गया। वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि धरती के आवरण में मौजूद ज्यादातर मोलिब्डेनम थिया की टक्कर से पृथ्वी पर आए थे। पृथ्वी से थिया की टक्कर 4.4 अरब साल पहले हुई थी और चूंकि यह कार्बनेशियस उल्कापिंड था इसलिए वैज्ञानिकों का मत है कि इसी से धरती पर पानी की उत्पत्ति हुई।