भगवान सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा सनातन काल से चली आ रही है। सूर्यदेव को जल चढ़ाना धार्मिक दृष्टि से महत्व रखता ही है लेकिन इसके स्वास्थ्यगत लाभ भी हैं। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित संक्षिप्त गरुण पुराण के ब्राह्म पर्व में सूर्य पूजा से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें संकलित हैं। इसमें बताया गया है कि इन छह तरह के लोगों को सूर्य देव को जल जरूर अर्पित करना चाहिए- जिनकी कुंडली में सूर्य कमजोर हो। जिनमें आत्मविश्वास की कमी रहती हो। जो भीड़ या ज्यादा लोगों के सामने घबरा जाते हों। जो निराशावादी हों, जिन पर नकारात्मकता हावी रहती हो। जिन्हें हमेशा कोई अज्ञात भय सताता रहता हो। जिन लोगों को घर-परिवार और समाज में मान की तलाश हो। सूर्यदेव को इस तरह जल अर्पित करें- सूर्यदेव को जल तांबे के पात्र से अर्पित करना चाहिए। जल चढ़ाते समय पात्र को दोनों हाथों में ग्रहण करना चाहिए। पात्र में जल के साथ लाल वर्ण का पुष्प, कुमकुम और अक्षत भी डालने चाहिए। जल चढ़ाते समय जल की गिरती धार में सूर्य की किरणों को देखना चाहिए। पूर्व दिशा की ओर मुख करके ही जल चढ़ाना चाहिए। जल अर्पित करते हुए ध्यान रहे कि जल आपके पैरों में आए। जल चढ़ाते हुए ऊं सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें। मान्यता है कि यदि आप पर सूर्यदेव की कृपा है तो जीवन और कामकाज में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। साथ ही साथ धन प्राप्ति के योग भी बनते हैं। ग्रह दोष के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए भी यह सकारात्मक उपाय है। सूर्य की कृपा से घर में भी सुख-शांति का वातावरण रहता है। सूर्यदेव को जल अर्पित करने से व्यक्ति का चित्त भी स्थिर होता है और उसका उसके काम पर सकारात्मक असर होता है। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि सूर्य की किरणों से मिलने वाली ऊर्जा से अंग सुचारू रूप से काम करते हैं। सुबह सूर्य दर्शन से शरीर में विटामिन-डी की कमी भी नहीं रहती है। आज भी हमारे धर्मग्रंथों में और वैज्ञानिक मतों में भी माना जाता है कि सूर्य के प्रकाश से रोग और शोक नष्ट होते हैं। सूर्य को प्रत्यक्ष देवता माना जाता है क्योंकि हर व्यक्ति उनके साक्षात दर्शन कर सकता है।