रांची
छह लेन के रांची रिंग रोड का निर्माण अरबों रुपये की लागत से कराया गया है, लेकिन सड़क किनारे पेड़ नहीं लगाये गये. रिंग रोड का निर्माण नये एलाइनमेंट के तहत हुआ था. एलाइनमेंट तय करने में यह प्रयास किया गया था कि पक्का कंस्ट्रक्शन तोड़ना न पड़े और खेत-खलियान से होकर सड़क का निर्माण हो. चूंकि 60 मीटर चौड़ी जमीन का अधिग्रहण किया गया है. ऐसे में हजारों पेड़ काटे गये थे. इसकी क्षतिपूर्ति में पौधे लगाने थे. लेकिन, ऐसा नहीं किया गया.
रिंग रोड के चार चरणों का काम करीब छह-सात साल पूर्व हो गया था. इस चरण के तहत रामपुर से तुपुदाना होते हुए कांठीटांड़ तक बनी सड़क पर गाड़ियों का परिचालन भी हो रहा है. सड़क पर सारी व्यवस्थाएं की गयी हैं. केवल सड़क किनारे पेड़ नजर नहीं आ रहे हैं. पूरे 36.2 किमी लंबा रास्ता वृक्ष विहीन है. यही हाल कांठीटांड़ से लेकर सुकरहुटू होते हुए विकास (एनएच 33) तक का है. इस 23.8 किमी लंबी सड़क पर भी दूर-दूर तक पेड़ नजर नहीं आ रहे हैं. कहीं-कहीं पर थोड़ा-बहुत पेड़ दिखते भी हैं, तो वे स्थानीय लोगों के प्रयास से लगाये गये हैं. सड़क बनाने वाली कंपनी की ओर से कहां पर पौधे लगे, इसकी जानकारी किसी को नहीं है.
पौधा लगाने के लिए उपलब्ध थी जमीन
रिंग रोड निर्माण के लिए काफी अधिक भू-अर्जन किया गया था. छह लेन के सड़क निर्माण सहित अन्य कार्यों के लिए करीब 30 मीटर जमीन का इस्तेमाल किया गया. इसके बाद भी रिंग रोड के किनारे काफी जमीन बची हुई है, जिसका अधिग्रहण इस परियोजना के लिए किया गया था. जमीन मौजूद रहने के बावजूद पौधे नहीं लगाये गये. कहीं-कहीं मामूली पौधे लगे भी, तो उसे बचाया नहीं गया.
86 किलोमीटर की है रांची रिंग रोड की योजना
रांची रिंग रोड की योजना करीब 86 किमी की बनी थी. सात चरणों में इसका निर्माण कराना था. सबसे पहले रामपुर से तुपुदाना होते हुए कांठीटांड़ तक चार चरणों तक 36.2 किमी का निर्माण जेएआरडीसीएल के माध्यम से कराया गया. इसके चार साल बाद सातवें चरण यानी कांठीटांड़ से विकास तक 23 किमी सड़क का काम 452 करोड़ से किया गया. पहले और दूसरे चरण यानी विकास से टाटीसिलवे होते हुए रामपुर तक (26 किमी) का काम एनएचएआइ टाटा रोड फोरलेन योजना के तहत करा रहा है.