नई दिल्ली
'India' का नाम 'Bharat' किए जाने की अटकलें हैं। हालांकि, इसे लेकर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन सियासी गलियारों में विरोध और समर्थन के सुर साथ सुनाई दे रहे हैं। कहा जा रहा है कि संसद के आगामी विशेष सत्र के दौरान सरकार संविधान संशोधन विधेयक पेश कर सकती है। खबर है कि अगर सरकार यह कदम उठाती है, तो भारी खर्च उठाना पड़ सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, नाम बदलने में अनुमानित खर्च 14 हजार 304 करोड़ रुपये आ सकता है। इस आंकड़े की गणना दक्षिण अफ्रीका के वकील डेरेन ऑलिवियर के सुझाए फॉर्मूला से की गई है। दरअसल, साल 2018 में स्वैजीलैंड का नाम बदलकर इस्वातीनि कर दिया गया था। कहा जा रहा था कि इसका मकसद औपनिवेशिकता से छुटकारा पाना था। उस दौरान ऑलिवियर ने देश के नाम बदलने में आने वाले खर्च की गणना के लिए एक विधि तैयार की थी।
उन्होंने इस अफ्रीकी देश के नाम बदलने की प्रक्रिया की तुलना एक बड़े कॉर्पोरेट में होने वाली रीब्रांडिंग से की थी। वकील के अनुसार, एक बड़े इंटरप्राइज का औसत मार्केटिंग खर्च उसके कुल राजस्व का करीब 6 फीसदी होता है। जबकि, रीब्रांडिंग में कंपनी के कुल मार्केटिंग बजट का 10 फीसदी तक खर्च आ सकता है। उन्होंने अनुमान लगाया था कि स्वेजीलैंड का नाम इस्वातीनि करने में 60 मिलियन डॉलर का खर्च आएगा। अब भारत पर इस फॉर्मूले को लागू किया जाता है, तो 2023 के वित्तीय वर्ष के अंत में राजस्व 23.84 लाख करोड़ रुपये था। इसमें टैक्स और नॉन टैक्स रेवेन्यू दोनों ही शामिल थे।
क्या कहता है इतिहास
हालांकि, भारत से पहले भी कई देश नाम बदलने की प्रक्रिया पर विचार कर चुके हैं। इनकी वजहों में प्रशासन स्तर पर सुधार, औपनिवेशिक प्रतीकों से छुटकारा जैसी बातें शामिल हैं। साल 1972 में श्रीलंका में भी नाम बदलने की प्रक्रिया हुई और करीब चार दशकों में पुराने नाम सीलोन को पूरी तरह हटाया जा सका। साल 2018 में स्वेजीलैंड का नाम भी बदलकर इस्वातीनि किया गया था।