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14 दिन बाद लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान का क्या होगा? जानें चांद पर क्या कर रहा चंद्रयान-3

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नई दिल्ली

चंद्रमा पर भारत के चंद्रयान-3 को उतरे हुए दो दिन बीत चुके हैं। भारत ने दक्षिणी ध्रुव पर अपने लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग करवाकर इतिहास रच दिया है। इसके बाद रोवर लैंडर से बाहर आया और अपना काम शुरू कर दिया। ISRO ने शुक्रवार को अपडेट दिया कि रोवर लगभग 8 मीटर चांद पर चल भी चुका है। इसके अलावा इसमें लगे दो प्लेलोड्स को भी ऐक्टिव कर दिया है और वे भी डेटा इकट्ठा करने लगे हैं। बता दें कि 14 दिन में  रोवर कुल 500 मीटर की दूरी तक चलेगा।

लैंडर में लगे दो सेग्मेंट फोल्डेबल रैंप की मदद से रोवर को बाहर निकाला गया था।  बाहर आने के साथ ही रोवर के सोलर पैनल भी खुल गए। इनके जरिए रोवर 50 वॉट पावर जनरेट करने में सक्षम है। ISRO ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट कर बताया, रोवर के सभी प्लान्ड मूवमेंट का परीक्षण कर लिया गया है। रोवर अब तक 8 मीटर की दूरी भी तय कर चुका है। इसमें यह भी कहा गया है कि LIBS (लेजर इन्ड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप) और APXS(अल्फा पार्टिकल एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर) स्विच ऑन हो गया है।

इसरो ने बताया कि प्रॉपल्सन मॉड्यूल, लैंडर और रोवर मॉड्यूल पर लगे सभी प्लेलोड्स ठीक से काम कर रहे हैं। रोवर द्वारा इकट्ठा किया जा रहा डेटा लैंडर को भेजा जा रहा है जो  कि ऑर्बिटर से कॉन्टैक्ट कर रहा है। चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर भी धरती तक डेटा भेजने में मदद कर रहा है। बता दें कि जब तक चांद के दक्षिणी ध्रुव पर दिन रहेगा ये सारे प्लेलोड डेटा कलेक्ट करके धरती पर भेजते रहेंगे।

क्या है बड़ी चुनौती
चांद पर सबसे बड़ी चुनौती भूकंप की है। लैंडर और रोवर दोनों के बीच कम्युनिकेशन बना रहना बेहद जरूरी है तभी धरती पर सही आंकड़े मिलते रहेंगे। चंद्रमा पर लगातार भूकंप आते रहते हैं। ऐसे में आपस में संपर्क बनाए रखना बेहद कठिन काम है। इसके अलावा चंद्रमा पर कई बार उल्कापिंड भी टकरा जाते हैं जिनसे भी सुरक्षित रहना जरूरी है। चांद पर वायुमंडल ना होने की वजह से उल्कापिंड रास्ते में नहीं नष्ट होते बल्कि सीधा सतह से टकरा जाते हैं।

14 दिन के बाद रोवर प्रज्ञान और लैंडर का क्या होगा?
चंद्रयान – 3 मिशन में वैसे तो 14 दिन का ही प्लान बनाया गया है। जब तक चांद के दक्षिणी ध्रुव पर दिन रहेगा लैंडर और रोवर दोनों ही अपने लिए एनर्जी जनरेट करते रहेंगे और काम करते रहेंगे। चांद के उस हिस्से पर अंधेरा होने के बाद ये दोनों निष्क्रिय हो जाएंगे। हालांकि जब 14 दिन की रात के बाद दोबारा दिन होगा तो देखना होगा कि फिर से ये काम शुरू कर पाएंगे या नहीं। अगर लैंडर और रोवर दोबारा ऐक्टिव हो जाते हैं तो यह इसरो के लिए दूसरी बड़ी उपलब्धि होगी। हालांकि इतने कम तापमान में इन दोनों का सुरक्षित रहना बेहद चुनौतीपूर्ण है।