नईदिल्ली
भारत के चंद्रयान-3 के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग के बाद चीन भी यहां जाने की तैयारी कर रहा है। चीनी विशेषज्ञों ने भारत के इस अभियान की सराहना की है। साथ ही अपने अगले मिशन में सहयोग करने की भी अपील की है। दोनों सीमावर्ती देशों के बिगड़े हुए संबंधों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कहा है कि विज्ञान की भावना राष्ट्रीय सीमाओं से परे है। इसे एक-दूसरे के सहयोग के साथ आगे बढ़ाया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने संबोधन में कहा था कि, "यह सफलता पूरी मानवता की है और इससे भविष्य में अन्य देशों के चंद्रमा मिशनों को मदद मिलेगी।"
ग्लोबल टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी विशेषज्ञों ने भी इसरो को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि दोनों देश उभरती अर्थव्यवस्थाएं हैं। ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन में साथ-साथ काम करते हैं। दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष में गहरे सहयोग की व्यापक गुंजाइश है। उन्होंने कहा कि रिसर्च और मानवयुक्त मिशन के लिए डेटा साझा करना, अनुभव साझा करना और अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण में एक दूसरे की मदद कर सकते हैं।
इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशियन स्टडीज के निदेशक हू शिशेंग ने कहा, "विज्ञान की भावना राष्ट्रीय सीमाओं को पार करती है, क्योंकि यह अंततः पूरी मानवता की भलाई और प्रगति के लिए प्रयास करती है। हम इसमें हर प्रयास की सराहना करते हैं, चाहे वह सफल हो या नहीं।"
रूस को लगा था झटका
चंद्रमा पर उतरना एक चुनौतीपूर्ण प्रयास है। कुछ ही दिन पहले रूस का लूना-25 यान चंद्रमा पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इससे पहले सितंबर 2019 में चंद्रमा पर लैंडिंग में भारत का पहला प्रयास भी विफल रहा था।
दक्षिणी ध्रुव पर क्यों टिकीं सभी की नजरें
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए काफी हद तक अज्ञात क्षेत्र बना हुआ है। माना जाता है कि इसमें बड़ी मात्रा में बर्फ मौजूद है। भविष्य में इस इलाके में क्रू मिशनों के लिए रॉकेट ईंधन और चांद पर जीवन के लिए खनन किया जा सकता है।
2026 तक लैंडिंग की योजना बना रहा चीन
चीन भी इस क्षेत्र पर नजर बनाए हुए है। वह अपने मिशन को आगे बढ़ा रहा है। कार्यक्रम के मुख्य डिजाइनर के अनुसार, चांग'ई-7 मिशन का लक्ष्य 2026 के आसपास चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना है। इस दौरान पानी के निशान की खोज की जाएगी।