नई दिल्ली
भारत के संसदीय इतिहास में अविश्वास प्रस्ताव लाने का सिलसिला देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय ही शुरू हो गया था। 1962 के चीन युद्ध में हार के बाद आचार्य जेबी कृपलानी ने अगस्त 1963 में संसद के मॉनसून सत्र के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 मत पड़े थे, जबकि विरोध में 347 मत आए थे। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी वी नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह समेत कई प्रधानमंत्रियों को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था।
मोदी सरकार के खिलाफ दूसरा अविश्वास प्रस्ताव
नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ नौ वर्षों में यह दूसरा अविश्वास प्रस्ताव है। इससे पहले 2018 में भी कांग्रेस ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था। इस अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में सिर्फ 126 वोट पड़े थे, जबकि इसके खिलाफ 325 सांसदों ने वोट दिया था। इस बार भी अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य पहले से तय है क्योंकि संख्या बल स्पष्ट रूप से सत्ताधारी बीजेपी के पक्ष में है और निचले सदन में विपक्षी दलों के 150 से कम सदस्य हैं। लेकिन उनकी दलील है कि वे चर्चा के दौरान मणिपुर मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए धारणा से जुड़ी लड़ाई में सरकार को मात देने में सफल रहेंगे।
क्या कहता है नियम?
अविश्वास प्रस्ताव को चर्चा के लिए जरूरी है कि उसे कम से 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो। सदस्य नियम 184 के तहत लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश करते हैं और इस पर चर्चा की तिथि तय करने के संदर्भ में 10 दिनों के भीतर फैसला करना होता है। सदन की मंजूरी के बाद इस पर चर्चा और मतदान होता है। अगर सत्तापक्ष इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में हार जाता है तो प्रधानमंत्री समेत पूरे मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है।
अब तक कुल 28 बार आ चुका प्रस्ताव
मोदी सरकार के खिलाफ दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने से पहले कुल 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए हैं और इनमें से किसी भी मौके पर सरकार नहीं गिरी। हालांकि विश्वास प्रस्ताव का सामना करते हुए तीन सरकार को जाना पड़ा। आखिरी बार 1999 में विश्वास प्रस्ताव का सामना करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरी थी। इंदिरा गांधी को सबसे अधिक 15 बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा।
किन-किन के खिलाफ आ चुके अविश्वास प्रस्ताव
लाल बहादुर शास्त्री और पी वी नरसिंह राव सरकार के खिलाफ तीन बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए थे,जबकि मोरारजी देसाई के खिलाफ दो और राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ एक-एक प्रस्ताव लाये गए थे। 1979 में, मोरारजी देसाई सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि, बहस अनिर्णायक रही थी क्योंकि उस पर कोई मतदान नहीं हुआ था। वोटिंग से पहले ही मोरारजी ने इस्तीफा दे दिया था।
विश्वास मत परीक्षण में गिरीं तीन-तीन सरकारें
इससे उलट विश्वास मत के दौरान तीन सरकारें गिरी चुकी हैं। 1990 में वी.पी. सिंह की सरकार, 1997 में एच.डी. देवेगौड़ा की सरकार और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार विश्वास मत परीक्षण के दौरान सदन का विश्वास पाने में नाकाम रही थी। राम मंदिर मुद्दे पर सरकार से बीजेपी के समर्थन वापसी के बाद 7 नवंबर, 1990 को वी.पी. सिंह ने लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया था। वह प्रस्ताव 142 मतों के मुकाबले 346 मतों से गिर गया था। इसी तरह, 1997 में, एचडी देवेगौड़ा सरकार 11 अप्रैल को विश्वास मत हार गई थी। देवेगौड़ा की 10 महीने पुरानी गठबंधन सरकार गिर गई क्योंकि 292 सांसदों ने सरकार के खिलाफ मतदान किया था, जबकि 158 सांसदों ने प्रस्ताव का समर्थन किया था। 1998 में सत्ता में आने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने विश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जो 17 अप्रैल, 1999 को जयललिता की पार्टी अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) के समर्थन वापसी के कारण एक वोट से गिर गया था।