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शरद पवार को लग सकता है एक और झटका, जयंत पाटिल के अजित गुट में शामिल होने की अटकलें

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 मुंबई
अजित पवार ने करीब एक महीना पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) से बगावत कर महाराष्ट्र की भाजपा और शिंदे नीत शिवसेना गठबंधन में शामिल हो गए। उनके साथ आठ विधायकों को भी मंत्री बनाया गया। अब सियासी गलियारे में इस बात की भी चर्चा है कि जल्द ही महाराष्ट्र के एनसीपी अध्यक्ष जयंत पाटिल भी जूनियर पवार के कैंप में शामिल हो सकते हैं। सूत्रों ने कहा है कि पाटिल ने अजीत पवार और देवेंद्र फडणवीस के साथ इस विषय पर कई बैठकें की हैं। हालांकि, पाटिल ने कहा कि फिलहाल वह ऐसा कोई कदम उठाने नहीं जा रहे हैं। अजित पवार ने विद्रोह के बाद एनसीपी के नाम के साथ-साथ चुनाव चिह्न पर भी दावा ठोका है। विधायक दल पर पूर्ण नियंत्रण हासिल करने के लिए विधायक दल के नेता का पद महत्वपूर्ण हो गया है। जयंत पाटिल पहले ही स्पीकर राहुल नार्वेकर को पत्र लिखकर अजित पवार और आठ अन्य विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग कर चुके हैं।

अयोग्य ठहराए जाने का खतरा के कारण एनसीपी के अधिकांश विधायकों ने एनसीपी के किसी भी गुट के प्रति वफादारी का प्रदर्शन करने से बचते जर आ रहे हैं। उन्होंने पूरे मॉनसून सत्र के दौरान सदन में उपस्थित नहीं होने का फैसला किया। सत्तारूढ़ सरकार में पाटिल का शामिल होना न केवल यह पुष्टि करने के लिए महत्वपूर्ण है कि अधिकांश एनसीपी विधायकों का समर्थन अजीत पवार को प्राब्त है, बल्कि पार्टी पर दावा करने के लिए भी यह महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा है कि जयंत पाटिल को अजीत पवार और फडणवीस के साथ बैठक के लिए बुलाया गया था। उन्हें आगामी कैबिनेट विस्तार में वर्तमान सरकार में मंत्री पद की पेशकश की गई। विधानसभा सत्र के दौरान अजित पवार ने हल्के-फुल्के अंदाज में जयंत पाटिल पर ताना भी मारा।

जयंत पाटिल ने हालांकि कहा है कि शरद पवार का साथ छोड़ने का कोई सवाल ही नहीं है। उन्होंने कहा, ''हम एक-दूसरे को वर्षों से जानते हैं और दोस्ताना बातचीत होना स्वाभाविक है, जो भविष्य में भी जारी रह सकता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं कहीं जा रहा हूं।'' एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष ने सरकार में शामिल होने को लेकर उनके और सत्तारूढ़ गठबंधन के सदस्यों के बीच कथित बैठकों पर कोई टिप्पणी नहीं की। दिलचस्प बात यह है कि अजित पवार ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में जयंत पाटिल के पांच साल से अधिक के कार्यकाल को अपने चाचा से अलग होने के लिए बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया था। दोनों नेताओं को पार्टी के भीतर प्रतिस्पर्धी के तौर पर देखा जाता रहा है। बगावत के बाद से ही जयंत पाटिल शरद पवार के साथ बने हुए हैं।