प्रयागराज
पान प्रयाग और काशी की संस्कृति का हिस्सा रहा है। शायद इसी से प्रभावित होकर कवि हरिवंश राय बच्चन ने फिल्म सिलसिला के गीत रंग बरसे भीगे चुनर वाली के साथ लौंगा, इलायची का बीड़ा लगाया का समावेश किया। काशी में जन्में महान गीतकार अंजान ने डॉन फिल्म में खाईके पान बनारस वाला.. लिखा। इलाहाबादी अमिताभ पर फिल्माए गए दोनों गानों ने धूम मचा दी थी। रंग बरसे भीगे चुनरवाली..गाने को सुर में पिरोने वाले शिव-हरी की जोड़ी में पंडित हरि प्रसाद चौरसिया भी प्रयाग के थे। पंडित हरि प्रसाद के परिवार में भी पान के शौकीन थे। 19वीं शताब्दी तक पान खाने का शौक महल, हवेली और घरों तक सीमित था। पान से स्वागत और विदाई परंपरा थी। 20वीं शताब्दी के शुरू में पान का जायका महल, हवेली और घरों की चौखट से बाहर आया।
मशहूर बांसुरी वादक पद्मविभूषण से सम्मानित संगीतकार पंडित हरि प्रसाद चौरसिया के बड़े भाई कल्लू प्रसाद चौरसिया पान का स्वाद बाहर लेकर आए। कल्लू प्रसाद चौरसिया ने लोकनाथ में शहर की पहली पान की दुकान 1905 में खोली। लोकनाथ के जिस स्थान पर आज खराब नोट बदली जाती है, वहीं कल्लू तखत पर पान की दुकान लगाते थे। पहली दुकान खुली तो शहर में पान खरीदकर खाने वालों की संख्या भी बढ़ने लगी। कुछ साल बाद कल्लू की पान की दुकान लोकनाथ से हटाकर जीरो रोड पर अजंता टाकीज के नीचे खोल दी गई। कल्लू के बाद इस दुकान को पंडित हरि प्रसाद चौरसिया के दूसरे भाई महादेव प्रसाद चौरसिया देखरेख करने लगे। इस दुकान में पान के शौकीनों की सुबह से रात तक भीड़ लग रहती थी।
शहर की संस्कृति पर पैनी नजर रखने वाले कांग्रेस नेता अभय अवस्थी बताते हैं कि कल्लू प्रसाद चौरसिया ने पान की दुकन खोली तो यह एक व्यवसाय बनने लगा। आजादी के पहले सीमित शहर के बाकी हिस्सों में पान की दुकानें खुलने लगीं। लोग पान की दुकान खोलने के लिए कल्लू और महादेव से सुझाव लेने आते थे। अभय के मुताबिक काशी का पड़ोसी शहर होने के नाते प्रयागवासियों में भी गीली सुपाड़ी, सादी पत्ती खाने के शुरू से शौकीन रहे। यहां पान की दुकानों में भी कत्था खास तरीके से बनाया जाता है। कोरोना काल में अजंता टाकीज बंद हो गया, लेकिन कल्लू और महादेव की पान की दुकान आज भी चल रही है। अब दुकान का संचालन महादेव के परिवार के गुड्डू चौरसिया के पास है। अभय के अनुसार आज भी बिजली के खंभों, दीवारों के सहारे उंगलियों से चूना साफ करने की परंपरा भी पुरानी है। यही वजह है कि आज भी पान की दुकानों के आसपास खंभों में चूने का दाग जरूर मिलेगा।
संजय दत्त की नानी भी थी पान की शौकीन
अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री नरगिस की मां और ठुमरी गायिका जद्दन बाई भी पान की शौकीन थीं। जद्दन बाई के बनाए पान खाकर लोग दिवाने हो जाते थे। इलाहाबाद से कलकत्ता होकर जद्दन बाई मुंबई गईं। मायानगरी में भी जद्दन बाई का बनाया पान लोकप्रिय होने लगा। शहर के कई बुजुर्ग बताते थे कि जद्दन बाई के बनाए पान के स्वाद की बदौलत नन्ही नरगिस का तलाश-ए-हक के जरिए फिल्मी दुनिया में प्रवेश हुआ था।