जम्मू-कश्मीर
जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और आर्टिकल 370 हटने के बाद से स्थितियां काफी बदल गई हैं। एसटी समुदाय, दलितों को अधिकारों की बात हो या फिर मुस्लिमों में ही अल्पसंख्यक शिया समुदाय के मामले हों, सभी के दिन अब बदले दिख रहे हैं। इसी कड़ी में तीन दशकों के बाद श्रीनगर में पुराने रूट से मुहर्रम का जुलूस निकाला गया। बीते 34 सालों में यह पहला मौका था, जब श्रीनगर में गुरु बाजार से डलगेट के बीच ताजिया निकाले गए। इसे प्रशासन भी बदले हालात और सांप्रदायिक सौहार्द के तौर पर पेश कर रहा है। कश्मीर से बाहर के लोगों के लिए यह हैरानी वाली बात हो सकती है कि मुस्लिम बहुल श्रीनगर में ही ताजियों पर रोक कैसे हो सकती है।
इसकी वजह यह है कि सुन्नी बहुल श्रीनगर और आसपास के इलाकों में शियाओं के इस आयोजन का विरोध होता रहा है। पहले ताजिया धूमधाम से निकलते ही थे, लेकिन 1989 में आतंकवाद और सांप्रदायिक उन्माद के बाद से इस पर रोक लग गई थी। लेकिन आज नजारा बदला था और कश्मीर में नई सुबह का दिन था। सुबह 6 बजे से 8 बजे के बीच श्रीनगर के ऐतिहासिक रूट से ताजिये निकाले गए। इस दौरान बेहद कड़ी सुरक्षा थी। जम्मू कश्मीर पुलिस के एडीजीपी विजय कुमार ने कहा कि रात से ही इस रूट पर बड़ी संख्या में फोर्स तैनात की गई थी।
क्यों 1989 के बाद से नहीं निकल पा रहे थे ताजिये
ताजियों पर 1989 में तब बैन लग गया था, जब यहां आतंकवाद ने दस्तक दी। उस दौरान हिंदू कश्मीरी पंडितों को पलायन करना पड़ा था और बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। यही नहीं वहाबी विचारधारा के प्रभाव वाले कट्टरपंथियों ने शिया मुसलमानों के ताजिया पर भी रोक लगा दी थी। इसके चलते कानून-व्यवस्था का मसला ना बन जाए। ऐसे में सरकारें भी अनुमति नहीं दिया करती थीं। हालांकि 2019 के बाद से जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है और केंद्र सरकार हालात सुधारने पर जोर दे रही है।
क्यों इस बार प्रशासन ने हटाई ताजिया निकालने पर रोक
इसी के तहत प्रशासन ने इस बार ताजिया निकालने की अनुमति दी और पूरी मुस्तैदी के साथ फोर्स भी मौजूद रही। जम्मू-कश्मीर प्रशासन के अधिकारियों ने कहा कि हमने इस बार ताजिये निकालने की परमिशन इसलिए दी ताकि यह संदेश दिया जा सके कि इलाके में सब कुछ सही है। उन्होंने कहा कि हमने यात्रा निकालने से पहले शिया समुदाय के लोगों से बात की थी और फिर बैन को हटाने का फैसला लिया गया।