लखनऊ
रेशम विभाग ने कीड़ों से किसानों की किस्मत बदलने का जो प्लान तैयार किया था वह फेल हो गया। कई साल से रेशम का न रकबा बढ़ा और न ही रेशम के उत्पादन से किसान जुड़ सके। किसानों को कीट पालन से लेकर रेशम का धागा निकालने की भी ट्रेनिंग नहीं दी जा सकी।
केंद्र सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने का प्रयास कर रही है। रेशम कीट पालन से भी किसानों की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। लिहाजा रेशम विभाग हर साल प्लान तो करता है पर कामयाब नहीं होता। बीते साल भी बड़ी संख्या में किसानों को रेशम उत्पादन न जोड़ने के लिए प्लान तैयार किया गया था। प्लान के मुताबिक पूरे मुरादाबाद मंडल में रेशम उत्पादन क दायरा बढ़ाया जाना था। कीट पालन से महिलाओं का भी जोड़ना था। किसानों को कीट पालन से लेकर रेशम धागा निकालने की ट्रेनिंग भी दिलाई जानी थी। लेकिन न रकबा बढ़ा और न ही ट्रेनिंग दी गई। रामपुर के स्वार और दढ़ियाल क्षेत्रमें अभी भी 10 एकड़ में भी कीटपालन हो रहा है।
ऐसे होती है रेशम की खेती
अच्छा उत्पादन लेने के लिए तीन तरीके से रेशम कीट पालन किया जाता है। पहला शहतूत के बाग में रेशम कीट पालन, जिसे मलबरी सिल्क कहते हैं। दूसरा टसर खेती और तीसरा एरी खेती। शहतूत और अर्जुन के पत्तों पर रेशम के कीड़े पाले जाते हैं। कीट पत्ते खाकर जीवित रहते है। रेशम के कीड़ों की उम्र सिर्फ 2 -3 दिन की होती है। कोकू न लेने के लिए कीटों को पत्तियों पर डाला जाता है। रेशम के मादा कीड़े अपने जीवन काल में 200 से 300 अंडे देती है। अगले दस दिनों में लार्वा निकलता है।