नई दिल्ली
रूसी कच्चे तेल पर छूट में भारी गिरावट और पेमेंट संबंधी दिक्कतों के बीच खबर है कि भारत के सरकारी रिफाइनर कच्चे तेल की खरीद के लिए मध्य-पूर्व के अपने पारंपरिक तेल आपूर्तिकर्ताओं की तरफ मुड़ रहे हैं. सरकारी रिफाइनर इराक से तेल आपूर्ति बढ़ाने को लेकर बातचीत कर रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस को एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी है. अधिकारी ने बताया है कि रूस के कच्चे तेल यूराल की कीमत बढ़ती जा रही है और यह पश्चिमी देशों की तरफ से रूसी तेल पर लगाए गए प्राइस कैप 60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बिक रहा है.
अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हाल के हफ्तों में रूसी कच्चे तेल पर छूट में भारी गिरावट आई है. अगर रूस सरकारी रिफाइनर्स को प्राइस कैप से अधिक कीमत पर तेल बेचेगा तो वो रूस से तेल खरीदना नहीं चाहेंगे.
अधिकारी ने बताया कि भारत ने इराक से कहा है कि वो तेल की भुगतान के लिए कुछ शर्तों में बदलाव करने पर विचार करे. जैसे भारत के सरकारी रिफाइनर्स इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC), भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (BPCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (HPCL) इराक से भारी मात्रा में तेल खरीदेंगे जिसके बदले में वो तेल की मौजूदा क्रेडिट अवधि को 60 दिन से बढ़ाकर 90 दिन कर दे.
अधिकारी ने इराक जैसे भारत के पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं से तेल खरीदने का जिक्र करते हुए कहा, 'यह सबसे साफ सौदा है. इराक हमारा सहयोगी और एक अच्छा व्यापारिक भागीदार रहा है. उन्होंने हमें पहले भी अच्छी छूट दी है.'
हालांकि, अधिकारी ने तेल पर छूट और तेल की अतिरिक्त मात्रा को लेकर कोई खास जानकारी नहीं दी.
रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता था इराक
रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले, इराक भारत का कच्चे तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता था. रूस से भारत बेहद कम मात्रा में तेल खरीदता था लेकिन यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से पिछले 15 महीनों में रूस भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है.
रूस ने पश्चिमी प्रतिबंधों को देखते हुए अपने तेल पर भारत को भारी मात्रा में छूट दी जिस कारण भारत ने उससे खूब तेल खरीदा. वर्तमान में रूस के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से अधिक है.
अधिकारी ने हालांकि, यह नहीं बताया कि रूसी तेल पर भारत को कितनी कम छूट मिल रही है. कुछ अनुमानों के मुताबिक, भारत को रूसी तेल पर पहले 13 डॉलर प्रति बैरल की छूट मिल रही थी लेकिन अब यह छूट कम होकर महज 4 डॉलर प्रति बैरल रह गई है. भारत को यह छूट डिलीवरी प्राइस के आधार पर मिलती है.
रूसी यूराल की कीमतें प्राइस कैप के पार
दिसंबर की शुरुआत में रूसी तेल पर प्राइस कैप लगाने के बाद से रूस का यूराल क्रूड इस हफ्ते पहली बार 60 डॉलर प्रति बैरल के प्राइस कैप को पार गया. भारत के रूसी तेल आयात में यूराल का हिस्सा दो-तिहाई है. यूराल की कीमतों में उछाल का कारण तेल के प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं की तरफ से तेल उत्पादन में कटौती के बाद तेल की कीमतों में उछाल है.
अधिकारी ने कहा कि अब तक IOC, BPCL, HPCL ने 60 डॉलर प्रति बैरल के प्राइस कैप से अधिक की कीमत पर रूसी तेल का एक भी कार्गो नहीं खरीदा है और वो आगे भी ऐसा नहीं करना चाहते हैं.
प्राइस कैप के मुताबिक, अगर रूसी तेल को 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक की कीमत पर खरीदा जाता है तो रूसी तेल की डिलीवरी के लिए पश्चिमी जहाजों और पश्चिमी बीमा सेवाओं के इस्तेमाल पर रोक लग जाती है.
अगर रूस को प्राइस कैप से ऊपर डॉलर या यूरो में पेमेंट किया जाता है तो पेमेंट फंस सकता है क्योंकि रूस पर पहले से ही तेल व्यापार के लिए डॉलर या यूरो के इस्तेमाल पर रोक है. इसलिए भारत के रिफाइनर और बैंक इस तरह के पेमेंट से दूर रहना चाहते हैं.
भारतीय रिफाइनरों के बीच खत्म होता रूसी तेल का आकर्षण
तेल बाजार के जानकार और विश्लेषकों के मुताबिक, अगर तेल के पेमेंट को लेकर भारत और रूस मिलकर बात करते हैं तो इस मुश्किल को दूर किया जा सकता है. हालांकि, भारतीय रिफाइनरों के बीच अब रूसी तेल को लेकर ज्यादा आकर्षण रह नहीं गया है क्योंकि यूराल और विश्व की दूसरी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों के बीच अंतर लगातार कम हो रहा है.
सिंगापुर स्थित ऊर्जा बाजार खुफिया फर्म वांडा इनसाइट्स की संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी वंदना हरि ने कहा, 'अगर भारत के रिफाइनर प्राइस कैप से ऊपर रूसी तेल की खरीददारी करते हैं तो उन्हें अमेरिकी प्रतिबंधों का डर है. लेकिन हो सकता है कि वो प्रतिबंधों से बचने का तरीका ढूंढ लें. ऐसा इसलिए क्योंकि तेल बाजार काफी अपारदर्शी है और भारत डिलीवरी के आधार पर रूसी तेल खरीदता है. यानी तेल की शिपमेंट पहुंचाने और बीमा का जिम्मा रूस का होता है.'
वंदना हरि का कहना है कि भारत-रूस तेल व्यापार में भुगतान का मुद्दा ज्यादा बड़ा नहीं है बल्कि तेल की कीमतों में छूट बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है.
विश्लेषकों को उम्मीद है कि भारत के रिफाइनर प्राइस कैप का लाभ उठाकर रूस के बेहतर छूट हासिल करने पर बात करेंगे. हालांकि, सरकारी रिफाइनर्स के साथ-साथ भारत की नरेंद्र मोदी सरकार भी इस बात पर चुप्पी साधे हुए है कि क्या वे रूस पर छूट बढ़ाने के लिए दबाव बना रहे हैं.