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सरकारी सम्पत्ति बेचने में स्टांप ड्यूटी चोरी का खेल, सरकार को करोडो का चूना

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भोपाल

लोक परिसंपत्ति विभाग के माध्यम से बेची जाने वाली सरकारी सम्पत्ति में स्टांप ड्यूटी चोरी का खेल चल रहा है। यहां संपत्ति (भूमि और भवन) के लिए खरीददार कोई होते हैं और जब रजिस्ट्री होती है तो किसी और के नाम पर प्रापर्टी दर्ज करा दी जाती है। इस तरह के दर्जन भर से अधिक मामलों के सामने आने के बाद जब पंजीयन अफसरों ने स्टांप शुल्क चोरी के मामले में केस दर्ज कर लिए तो उनकी कार्रवाई को गलत ठहरा दिया गया। इसके लिए नियमों की ऐसी व्याख्या की गई कि अगर किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर रजिस्ट्री कराई जाती है तो पंजीयन व स्टांप शुल्क दो बार नहीं देना होगा।

पंजीयन विभाग के अफसरों का कहना है कि अगर कोई संपत्ति किसी व्यक्ति के नाम पर आवंटित होती है तो उस व्यक्ति द्वारा खरीदी गई प्रापर्टी के रेट के हिसाब से स्टांप शुल्क लिए जाने के प्रावधान हैं लेकिन अगर सरकारी संपत्ति के खरीददार के बदले किसी और के नाम पर रजिस्ट्री कराई जाती है तो इसका सीधा मतलब है कि प्रापर्टी लेने वाले ने दूसरे व्यक्ति को महंगे दामों पर सौदा कर उसे बेचा है। ऐसे में होना यह चाहिए कि जिसके नाम से संपत्ति खरीदी है, उसकी रजिस्ट्री के बाद जो अन्य व्यक्ति सामने आ रहा है उसके नाम पर रजिस्ट्री हो तो सरकार का रेवेन्यू बढ़ेगा। यह सीधे तौर पर डबल ट्रांजेक्शन की स्थिति है और इस तरह के मामलों में दो बार स्टांप ड्यूटी चुकाई जानी चाहिए।

ऐसे चल रहा सरकारी संपत्ति हथियाने का खेल
प्रशासकीय सूत्रों का कहना है कि प्रदेश भर में बेची जा रही सरकारी संपत्ति के खेल में शामिल कम्पनियां, राजनेता, अफसर के गठजोड़ के चलते इस तरह की स्थिति बनाई जा रही है। दरअसल परिसम्पत्ति बेचने के लिए लोक परिसम्पत्ति प्रबंधन (पीएएम) विभाग द्वारा बुलाए जाने वाले टेंडर में जो फर्म और निविदाकार सामने आते हैं, वे पर्दे के पीछे गठजोड़ में शामिल नेताओं, अफसरों, बिल्डरों के बताए अनुसार काम करते हैं। जब निविदा संबंधित फर्म के नाम पर कन्फर्म हो जाती है तो बाद में उसे दूसरे नाम पर रजिस्ट्रर्ड करा लिया जाता है। ऐसे में उनका नाम खरीददार के तौर पर सीधे सामने नहीं आता।

जांच हुई तो होंगे चौंकाने वाले खुलासे
अफसरों के अनुसार प्रदेश में लोक परिसंपत्ति विभाग के माध्यम से बेची जाने वाली प्रापर्टी के दस्तावेजों की जांच के बाद संपत्ति औने पौने दामों में बेचे जाने और सरकार को स्टांप शुल्क के रूप में मिलने वाले करोड़ों रुपए के राजस्व की चोरी का खुलासा होना तय है। यह बात भी सामने आई है कि संपत्ति का मूल्यांकन कराने के दौरान भोपाल के अफसरों द्वारा जिले के अफसरों से प्रापर्टी की संभावित कीमत बताकर उसके आधार पर ही मूल्यांकन करने के लिए कहा जाता है। अगर किसी संपत्ति का मूल्यांकन अधिक बता दिया गया तो बार-बार उसके लिए स्थानीय अफसरों से पत्राचार तक किया जाता है।

विवाद हुआ तो ऐसे हुई व्याख्या
इस मामले में जबलपुर, कटनी, उज्जैन समेत प्रदेश के कई जिलों में लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग के माध्यम से बेची गई संपत्ति के असली फर्म के बजाय किसी और के नाम पर रजिस्ट्री के खुलासे के बाद विभाग के अफसरों ने दर्जन भर मामलों में स्टांप शुल्क चोरी के केस दर्ज कर लिए हैं। इसकी जानकारी जब शासन तक पहुंची तो कहा गया भारतीय स्टांप अधिनियम 1899 की धारा 28 उपधारा (3) के प्रावधान के अनुसार निविदाकार मनोनीत व्यक्ति के पक्ष में रजिस्ट्री करा सकता है और ऐसी रजिस्ट्री के मामले में दोहरी स्टांप ड्यूटी के लिए उत्तरदायी नहीं होता है। यानी ऐसे मामलों में एक बार स्टांप ड्यूटी चुकाई जाएगी। इस मामले में विधि विभाग ने भी सहमति दे दी है।