लखनऊ
लोकसभा 2024 को लेकर जहां एक तरफ राजनीतिक समीकरण के लिए सियासी पार्टियां एकजुट हो रही हैं। वहीं मायावती अपनी तुरही अलग बजा रही हैं। पटना में हुए विपक्षी दलों के महाजुटान में बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) को न्योता नहीं दिया गया था। इसके इतर बसपा सुप्रीमो मायावती अपनी पार्टी के आधार को मजबूत करने के लिए जमीन पर सावधानीपूर्वक काम कर रही हैं। इस बार यूपी में समाजवादी पार्टी (सपा) और बीएसपी की खास कोशिश दलित, ओबीसी और पसमांदा मुसलमानों के उन मतदाताओं को वापस लुभाने की होगी जो 10 सालों में सत्तारूढ़ भाजपा के ज्यादा करीब आ गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक मायावती ने दावा किया है कि उनकी पार्टी 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेंगी, सूत्रों ने कहा कि बसपा अन्य विपक्षी दलों की चाल पर भी नजर रख रही है और चुनाव के करीब किसी भी गठबंधन पर अंतिम निर्णय ले सकती है। वहीं अपनी पटना बैठक के दौरान कांग्रेस समेत 15 विपक्षी दलों ने 2024 के चुनाव के लिए बीजेपी के खिलाफ कार्ययोजना बनाने की कवायद शुरू कर दी.
कांग्रेस के प्रति नरम हुई बासपा
बसपा सूत्रों ने कहा कि उसके नेताओं को अपने भाषणों में कांग्रेस के प्रति नरम रुख अपनाने का भी निर्देश दिया गया है। पटना बैठक से कुछ दिन पहले अपने यूपी नेताओं के साथ बैठक के बाद जारी आधिकारिक बयान में मायावती ने भाजपा और सपा पर हमला किया था, लेकिन कांग्रेस पर कोई टिप्पणी नहीं की थी। एक बसपा नेता ने कहा, "नेताओं को अनौपचारिक रूप से सूचित किया गया है कि वे कांग्रेस पर कड़े शब्दों में हमला न करें। ऐसा लगता है कि पार्टी ने भविष्य के लिए गठबंधन का विकल्प खुला रखा है।"
सियासी में मौसम में कुछ भी संभव
राजनीतिक मौसम में इस तरह के आसार पर संदेह नहीं किया जा सकता है 2024 में कांग्रेस और बासपा साथ नहीं होंगे। 1996 के यूपी चुनावों में बसपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ था मगर इसका अंजाब बेहतर नहीं हो सका। तब से कांग्रेस मायावती के निशाने पर रही। दरअसल, वह अक्सर देश के राजनीतिक परिदृश्य पर भाजपा के उदय के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराती हैं। हाल ही में जब वह भगवा पार्टी के प्रति नरम दिख रही थीं, तब भी मायावती कांग्रेस के प्रति उदासीन थीं। इसलिए, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 22 जून के अपने नोट में कांग्रेस पर उनकी चुप्पी कोई मौका चूकना नहीं था, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले नए राजनीतिक पुनर्गठन का संकेत था। दोनों के बीच 2018 में भी गठबंधन की बात हो रही थी, लेकिन आखिरकार बात नहीं बन पाई। इस बार, जबकि दोनों खेमों के सूत्रों ने पुष्टि की कि बातचीत शुरुआती चरण में है, ऐसे में वैध कारण दोनों के बीच गठबंधन की संभावना बना सकते हैं। अब तक, दोनों पार्टियां अपने सबसे निचले स्तर पर हैं। आंकड़े बताते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनावों में बसपा 12% वोट शेयर पर थी जबकि कांग्रेस 2% मत मिले थे।
खास वोट बैंक पर होगी नजर
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि दोनों पार्टियों को यह बात अच्छी तरह से मालूम है कि गंठबंधन में साथ आना और फिर विरोधी हो जाना एक जटिल प्रक्रिया है। दोनों इस तथ्य से भी वाकिफ हैं कि अल्पसंख्यक मतदाता दोनों पार्टियों को चुनावों में बेहतर प्रदर्शन दिला सकते हैं, और समुदाय दोनों को तभी समर्थन देगा जब उन्हें यह विश्वास हो जाएगा कि उनमें भाजपा को चुनौती देने की ताकत है।