मुंबई
शरद पवार बीते कुछ दिनों से महाराष्ट्र की सियासत में चर्चा का विषय बने हुए हैं। पहले उन्होंने, पिछले महीने अचानक एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद मान मनौवल का दौर चला और तीन दिन बाद शरद पवार ने पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की डिमांड पर अपना इस्तीफा वापस ले लिया था। महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से जानने वाले यह बात कहते हैं कि शरद पवार के मन को समझ पाना आसान नहीं है। इस्तीफा वापस लेने के बाद कुछ दिन बाद शरद पवार ने एक बार फिर मास्टरस्ट्रोक खेल दिया है।
शरद पवार ने अपनी पावर दिखाते हुए विरोधियों को चारों खाने चित कर कर दिया है। शरद पवार ने अपनी बेटी और सांसद सुप्रिया सुले समेत करीबी प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है। वहीं अजित पवार को महाराष्ट्र की जिम्मेदारी दी है। शरद पवार के दो मास्टर स्ट्रोक फ़िलहाल चर्चा का विषय बने हुए हैं। पहला सुप्रिया सुले को वर्किंग प्रेसिडेंट बनाना और दूसरा पार्टी को अपनी ताकत का अहसास करा रहे भतीजे अजित पवार को हवा से जमीन पर लाना।
बीते कुछ दिनों में अजित पवार के बीजेपी में शामिल होने की चर्चा थी। शरद पवार ने यह भी कहा था कि विधायकों पर दबाव है। यह भी कहा जा रहा था कि अजित पवार के साथ पार्टी के कई विधायक एनसीपी छोड़ बीजेपी में शामिल होंगे। ऐसे में जिस पार्टी को शरद पवार ने बनाया था। वह उनके सामने ही टूटने की कगार पर थी। ऐसे में शरद पवार इस्तीफे का मास्टरकार्ड चला।
इस घटना के बाद शरद पवार ने यह दिखा दिया कि आज भी पार्टी पर उनकी मजबूत पकड़ है। साथ ही एनसीपी का मतलब शरद पवार हैं। कार्यकर्ताओं को भी यह लग रहा था कि अगर शरद पवार ने इस्तीफ़ा दे दिया तो फिर पार्टी का क्या होगा? वह भी तब जब एक साल बाद महाराष्ट्र में विधानसभा और लोकसभा चुनाव होने वाले हैं।
एनसीपी में विरासत की लड़ाई
यह कहा जाता है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी में सुप्रिया सुले और अजित पवार का एक ग्रुप है। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल के भी समर्थक हैं। एनसीपी में आज से नहीं बल्कि कई वर्षों से विरासत और वर्चस्व की लड़ाई परदे के पीछे चलती रही है। समय-समय पर भतीजे अजित पवार ने खुद को शरद पवार का राजनितिक वारिस साबित करने के कई प्रयास किये हैं। एनसीपी में अंदरूनी गुटबाजी की ख़बरें महारष्ट्र की सियासत में आम है। अबतक सुप्रिया सुले महाराष्ट्र से ज्यादा केंद्र की सियासत पर ध्यान देती थीं।
जबकि महाराष्ट्र की जिम्मेदारी अजित पवार संभालते थे। हालांकि, अजित पवार की बढ़ती महत्वकांक्षा को शरद पवार बखूबी समझ रहे थे। अपनी ढलती उम्र और बीमारी की वजह से शरद पवार ने सुप्रिया सुले को अपने रहते पार्टी की कमान सौंप दी है। इस दौरान सुले को पवार का मार्गदर्शन भी मिलेगा और विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उनकी एक निर्णायक भूमिका भी रहेगी।