नई दिल्ली/ इम्फाल
होम मिनिस्टर अमित शाह ने मणिपुर में डेरा डाल रखा है और वह शुक्रवार तक वहीं रहने वाले हैं। सूबे में बीते एक महीने से जारी हिंसा फिलहाल थमी है, लेकिन हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। यह तनाव अब कूकी और मैतेई जनजाति समुदाय के बीच खाई पैदा करने लगा है। यहां तक कि भाजपा सरकार के भीतर भी इसके चलते मतभेद पैदा हो गए हैं। भाजपा से ताल्लुक रखने वाले कूकी विधायकों ने बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग की है। बीरेन सिंह पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने इस पूरी हिंसा के दौरान मैतेई समुदाय के उपद्रवियों पर नरमी बरती है। बता दें कि बीरेन सिंह खुद भी मैतेई समुदाय से ही आते हैं।
बीरेन सिंह का विरोध करते हुए भाजपा के 4 विधायक अपने प्रशासनिक पदों से इस्तीफे भी दे चुके हैं। इसके अलावा पार्टी के राज्य सचिव पाओकाम हाओकिप भी उनके समर्थन में हैं और मानते हैं कि बीरेन सिंह को पद से हटा देना चाहिए। बीते साल मार्च में ही आए चुनाव नतीजों में भाजपा ने 60 में से 32 सीटें जीतकर राज्य में बहुमत से सरकार बनाई थी। यदि कुछ विधायक भाजपा से नाराज होते हैं या फिर हिंसा के चलते साथ छोड़ते हैं तो फिर भाजपा सरकार पर भी संकट की स्थिति होगी। बता दें कि 2015 में भी मणिपुर में जातीय हिंसा छिड़ गई थी, जिससे निपटने में असफल बताते हुए बीरेन सिंह ने कांग्रेस का साथ छोड़ा था। तब राज्य के मुख्यमंत्री इबोबी सिंह थे।
रिलीफ कैंपों में भी दिखी खाई, अमित शाह ने किए दौरे
इस बीच कर्नाटक में 5 दिनों के लिए बैन को और बढ़ा दिया गया है। गृह मंत्री अमित शाह ने इस बीच दो जिलों में जाकर कैंपों का दौरा भी किया। सिविल सोसायटी के सदस्यों से मुलाकात की और विश्वास बहाली के लिए भरोसा दिलाया। हालांकि इस बीच रिलीफ कैंपों में रह रहे लोगों के बीच भी खाई दिखाई दी। मैतेई और कूकी समुदाय के लोगों में साफ तौर पर दूरी नजर आई। यहां तक कि दोनों ही समुदाय के लोगों के लिए अलग-अलग कैंपों की व्यवस्था की गई है। बता दें कि कूकी जनजाति के लोग पहाड़ी इलाकों में ज्यादा बसे हुए हैं, जबकि मणिपुर के शहरी और घाटी क्षेत्रों में मैतेई समुदाय की बड़ी आबादी रहती है।
HC के एक फैसले से कैसे मणिपुर में बिगड़ गए हालात
मणिपुर हाई कोर्ट ने पिछले दिनों एक फैसला दिया था, जिसमें मैतेई समुदाय को भी एसटी यानी जनजाति का दर्जा दिए जाने पर विचार करने की बात थी। इसे कूकी जनजाति के लोग अपने खिलाफ मान रहे हैं और आंदोलन कर रहे हैं। ऐसे ही एक मार्च के दौरान 3 मई को हिंसा भड़क गई थी और तब से ही राज्य में हालात सामान्य नहीं हो सके हैं। कूकी जनजाति के लोगों को लगता है कि यदि मैतेई समुदाय के लोगों को पहाड़ी क्षेत्रों में रहने की परमिशन मिली तो फिर वहां की डेमोग्रेफी बिगड़ेगी और संसाधनों पर उनका दावा कमजोर हो जाएगा।