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रिसर्च स्कॉलर को PhD करना पड़ रहा महंगा, एकेडमिक स्तर पर अध्ययन कराने का मौका भी नहीं

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भोपाल

पीएचडी कराना शोधार्थियों को काफी महंगा पड़ रहा है। प्रदेश के विश्वविद्यालयों से पीएचडी करने में शोधार्थियों का समय और रुपए दोनों बर्बाद हो रहे हैं। इससे रिसर्च स्कॉलर को पीएचडी करना काफी महंगा पड़ रहा है। वहीं, पीएचडी करने के बाद भी एकेडमिक स्तर पर अध्ययन कराने का मौका भी नहीं मिल रहा है।

बरकतउल्ला विश्वविद्यालय से पीएचडी करने में विद्यार्थियों को जहां लेटलतीफी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, दूसरी तरफ पीएचडी करने के लिए अपने जर्नल यूजीसी के लिस्टेड संस्था में पब्लिश कराने के लिए प्रोसेसिंग के लिए 5-5 हजार रुपए का भुगतान करना पड़ रहा है। जबकि उनका पब्लिकेशन नि:शुल्क करना अनिवार्य है। यूजीसी के एक अधिकारी का कहना है कि कोई संस्था रिसर्च जर्नल पब्लिश करने का किसी भी प्रकार से कोई शुल्क लेते हैं, तो उसके खिलाफ शिकायत जरूर दर्ज कराना चाहिए।

…तो नहीं मिलेगा अवॉर्ड
बीयू के पीएचडी अधिनियम में पीएचडी के दौरान दो रिसर्च जर्नल पब्लिश करना अनिवार्य है। ऐसा नहीं करने पर उन्हें पीएचडी अवार्ड नहीं की जाएगी। इसलिए शोधार्थियों को मजबूरन रुपए का भुगतान करना पड़ रहा है। ऐसे तो प्रदेश में जर्नल को प्रकाशित करने वाली कई संस्था हैं, लेकिन वे यूजीसी में लिस्टेड नहीं हैं।

एमपी में सिर्फ 2 ही पब्लिशर
मध्य प्रदेश में 13 विवि संचालित हो रहे हैं। इसमें हजारों की संख्या में शोधार्थी पीएचडी कर रहे हैं। पीएचडी करने के लिए दो रिसर्च जर्नल पब्लिश करना अनिवार्य होता है। ये जर्नल यूजीसी की लिस्टेड संस्था में पब्लिश होना अनिवार्य है। प्रदेश में सिर्फ डॉ. हरि सिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय और उज्जैन की पूर्व देवा समाजिक विज्ञान शोध पत्रिका ही यूजीसी में लिस्टेड हैं।