इस्लामाबाद
पाकिस्तान में इमरान खान के समर्थकों पर आर्मी एक्ट लगाने की मंजूरी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने दे दी है। यानि, पाकिस्तान की शहबाज शरीफ की सरकार ने देश की कानून व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी सेना के हाथों में सौंप दी है। तो क्या पाकिस्तान में अघोषित तौर पर सेना का शासन, जिसे मार्शल लॉ कहते हैं, वो लागू हो चुका है?
आईये समझते हैं, कि आखिर आम नागरिकों के खिलाफ आर्मी की अदालत में मुकदमा चलाने की इजाजत देना क्यों खतरनाक है और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का ये फैसला लोकतंत्र की बुनियाद पर ही चोट क्यों है?
हालांकि, 76 साल के हो चुके पाकिस्तान में आज तक लोकतंत्र कभी सही स्थिति में नहीं रहा, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है, जब देश की एक बड़ी आबादी आर्मी के खिलाफ खड़ी हो गई है। आम आदमियों पर आर्मी एक्ट का मतलब बहुत साधारण शब्दों में समझें, तो पहली बात ये है, आर्मी कानून सेना के लिए होता है, जबकि सिविल कानून आम नागरिकों के लिए होता है।
आम नागरिकों को आर्मी कानून के अंदर सुनवाई करने का मतलब ये हुआ, कि सिविल कोर्ट्स के पास इतनी ताकत नहीं बची है, कि वो किसी मामले की सुनवाई कर सके। दूसरी बात, आम नागरिकों के खिलाफ आर्मी कोर्ट में मुकदमा चलने का मतलब है, कि देश की सरकार के पास ताकत नहीं है, कि वो किसी मामले की सुनवाई कर सके। तीसरी बात ये, कि आर्मी कोर्ट में आम नागरिकों पर मुकदमा चलाने का मतलब ये है, कि आर्मी ने देश की कानून व्यवस्था को अपनी हाथों में ले लिया है, जो कि नागरिकों द्वारा चुनी गई सरकार के पास होता है।