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कांग्रेस के बढ़ा वोट प्रतिशत, जानिए कैसे किंग मेकर बनने से रह गई JDS

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नईदिल्ली

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के रुझानों में कांग्रेस पार्टी पूर्ण बहुमत की ओर बढ़ती दिख रही है. चुनाव आयोग के सभी 224 सीटों के रुझान में कांग्रेस को 132, बीजेपी को 64, जेडीएस को 21 और अन्य को 7 सीटें मिल रही हैं. कांग्रेस बहुमत के आंकड़े 113 सीट को पार कर लिया है. इस चुनाव में बीजेपी की सीटें जरूर कम हुई हैं, लेकिन उसके वोट प्रतिशत में कमी नहीं आई है. वोट प्रतिशत और सीटों में जेडीएस बड़ा नुकसान हुआ है. चुनाव आयोग की डाटा का विश्लेषण करने के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि जेडीएस के वोट बैंक का एक हिस्सा कांग्रेस में शिफ्ट हो गया है.

क्योंकि, बीजेपी अपने वोट प्रतिशत को बचाए हुए है. जेडीएस को साल 2018 के विधानसभा चुनाव में 18 प्रतिशत वोट था, जो इस बर गिरकर तकरीबन 13 प्रतिशत आ गया है. वहीं, कांग्रेस के वोट प्रतिशत में जबरदस्त तरीसे से बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में माना जा रहा है कि मुस्लिम समुदाय का एकमुश्त वोट इस बार कांग्रेस को गया है.

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 42.93% वोट शेयर, बीजेपी को 36.17% वोट शेयर और जेडीएस को 12.97% वोट शेयर मिला है. राज्य में 224 सीटों के लिए 10 मई को वोट डाले गए थे. इसमें रिकॉर्ड 73.19 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था.

कर्नाटक में कैसे पलटी बाजी?
अगर बीजेपी की बात करें तो पार्टी उन छोटे निर्वाचन क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन किया है, जो आमतौर पर शहरी हैं और 100 वर्ग किलोमीटर से कम क्षेत्र को कवर करते हैं. ऐसी 33 छोटी सीटों में से बीजेपी 23 सीटों पर आगे चल रही है या जीत लिया है. इसी तरह 70% से कम मतदान वाले 60 निर्वाचन क्षेत्रों के तकरीबन 30 से 35 सीटों पर बीजेपी आगे चल रही है.

क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक संजीव पांडेय कहते हैं, ‘कर्नाटक चुनाव में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा था. स्थानीय जनता ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा के खिलाफ मतदान किया. वहीं, बढ़ती महंगाई से जनता नाराज थी. दिलचस्प बात यह थी कि भाजपा ने इन मुद्दों को काटने के लिए बजरंग दल को बजरंग बली से जोड़ा.’

ओल्ड पेंशन स्कीम और मुस्लिम हुए निर्णायक
पांडेय आगे कहते हैं, ‘कांग्रेस की जीत का एक बडा कारण लिंगायत वोटों में विभाजन रहा है. लिंगायतों ने भाजपा को एकमुश्त वोट नहीं किया और उनका वोट विभाजित हो गया. लिंगायत वोट के कुछ हिस्सों को कांग्रेस भी अपने हिस्से में लाने में सफल हो गई. भाजपा को कर्मचारियों ने भी झटका दिया है. कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन स्कीम का वादा किया है और कर्मचारियों का बडा तबका कांग्रेस के साथ गया है. भाजपा के निजीकरण की नीति से सरकारी कर्मचारियों में नाराजगी बढ़ी है. छतीसगड़, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकारों द्वारा ओपीएस लागू किए जाने के बाद कर्नाटक के कर्मचारियों ने कांग्रेस को वोट देना ज्यादा उचित समझा.’

कुल मिलाकर कर्नाटक की मुस्लिम बाहुल सीटों पर भी कांग्रेस इस बार बाजी मार कर कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण को बदल दिया है. जेडीएस के मुस्लिम उम्मीदवारों को कई सीटों पर हार झेलनी पड़ी है या अब भी वह पीछे चल रहे हैं. कर्नाटक में मुस्लिम आबादी की संख्या तकरीबन 13 प्रतिशत है और 20 से 25 सीटों पर वह निर्णायक भूमिका में रहते हैं. राज्य में मुस्लिम समुदाय से पिछली बार केवल 7 विधायक चुन कर आए थे. सभी मुस्लिम विधायक काग्रेस के थे. इस बार मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस और जेडीएस दोनों पार्टियों ने मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा था. मुस्लिम बनाम मुस्लिम की लड़ाई में बाजी कांग्रेस ने मार ली.