इस्लामाबाद/बीजिंग
सऊदी अरब और ईरान दुनिया के दो ऐसे मुल्क हैं जिनके बीच कई साल तक चली दुश्मनी के बाद अब शांति समझौता हो गया है। दोनों देश 7 साल बाद एक बार फिर से अपने दूतावास को खोलने जा रहे हैं। इससे उम्मीद जताई जा रही है कि सीरिया और यमन में स्थिरता आ सकती है। सऊदी अरब और ईरान के बीच यह ऐतिहासिक समझौता चीन ने कराया है। वैश्विक कूटनीति में इसे चीन की पहली जीत करार दिया जा रहा है। चीन अब रूस और यूक्रेन के बीच डील कराने में जुट गया है। चीन क्या अब भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे वर्षों पुराने में विवाद को सुलझाने में मदद कर सकता है? आइए जानते हैं कि पाकिस्तानी विशेषज्ञ क्यों इसकी चर्चा कर रहे हैं।
पाकिस्तानी राजनीतिक विशेषज्ञ हुमा युसूफ ने डॉन में लिखे अपने लेख में कहा कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से पहली बार फोन पर बात की है। इस दौरान शी ने कहा कि चीन की इच्छा है कि यूक्रेन युद्ध का अंत राजनीतिक समाधान के जरिए हो। चीनी राष्ट्रपति के इस प्रस्ताव पर कुछ ठोस हल नहीं निकला है। इससे पहले चीन ने सऊदी अरब और ईरान के बीच शांति कराई थी और इसी वजह से दुनिया के कई लोगों को चीन को लेकर काफी उम्मीदें हैं। वह कहती हैं कि चीन यूक्रेन मामले में मध्यस्थ की बजाय दोनों ही युद्धरत पक्षों को वार्ता की मेज पर ला सकता है।
हुमा कहती हैं कि चीन की कोशिश है कि रूस को जूनियर पार्टनर बनाया जाए और वैश्विक विश्व व्यवस्था को वॉशिंगटन की बजाय बीजिंग की ओर ले आया जाए। क्या चीन भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते को सुधारने में कोई भूमिका निभा सकता है? वह कहती हैं कि चीन इस सवाल का पहले भी सामना कर चुका है। साल 2018 में चीन के इस्लामाबाद में राजदूत ने कहा था कि उनका देश भारतीय अधिकारियों के साथ इस्लामाबाद और नई दिल्ली के बीच तनाव को कम करने के लिए संपर्क में है।
पाकिस्तानी विशेषज्ञ हुमा कहती हैं कि ठीक इसी साल जिनपिंग ने आह्वान किया था कि शंघाई सहयोग संगठन के सभी देशों के बीच सहयोग होना चाहिए। वह कहती हैं कि यह ऐसा मामला है जिसमें बहुत सतर्क होकर कदम रखता है। साल 2017 में चीन ने पाकिस्तान के कश्मीर मुद्दे को इस्लामिक देशों के संगठन में उठाने के फैसले पर साथ नहीं दिया था। चीन ने कहा था कि कश्मीर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है। वह कहती हैं कि चीन की यही हिचकिचाहट उस वास्तविकता को दिखाता है जिसके तहत चीन दक्षिण एशिया में मध्यस्थ के रूप में बहुत सीमित भूमिका ही निभा सकता है।
हुमा ने कहा कि दक्षिण एशिया में चल रहे विवाद में चीन सीधेतौर पर शामिल है। भारत और चीन के बीच साल 2020 में गलवान में हिंसक झड़प हो चुकी है। इसके एक साल बाद फिर से चीन और भारत के सैनिकों में झड़प हुई। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही अमेरिका के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में जुटे हुए हैं जिसे अमेरिका का व्यापक प्रभाव इलाके में बना हुआ है। भारत और अमेरिका चीन के प्रभाव को कम करने के लिए एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। हुमा ने कहा कि चीन की खुद की शांति कराने की इच्छा भी हाल के सालों में कम हो गई है।
वह कहती हैं कि चीन भारत और पाकिस्तान के बीच इसलिए शांति कराना चाहता था कि उसे सीपीईसी परियोजना पर नई दिल्ली का साथ मिल जाए। लेकिन अब हालात यह है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर ठंडे बस्ते में चला गया है और पाकिस्तान गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है और कर्ज के तले दबा हुआ है। वहीं अफगानिस्तान में तालिबान राज आने के बाद क्षेत्रीय कनेक्टविटी की योजना भी फेल हो गई है।