लखनऊ
मलेरिया बीमारी फैलाने वाले मच्छरों ने पिछले तीन साल में अपना टारगेट बदल दिया है। देश में सर्वाधिक मलेरिया प्रभावित रहे मझगवां, भमोरा, आंवला और रामनगर ब्लॉक के बाद अब इसने दो नए क्षेत्रों को अपने चपेट में ले लिया है। ये दोनों क्षेत्र तीन नदियों के पार मीरगंज और शेरगढ़ ब्लॉक में हैं। पूर्व प्रभावित और नए इलाकों के बीच की दूरी करीब 20 किलोमीटर है फिर भी इन इलाकों में मलेरिया के मरीजों की लगातार बढ़ रही संख्या पर स्वास्थ्य विभाग के पास कोई सटीक जवाब नहीं है। बरेली में 2018 में 37,482 और 2019 में 46,717 मलेरिया मरीज मिले थे। यह आंकड़ा देश के किसी भी मलेरिया प्रभावित इलाकों में सबसे ज्यादा था। उन दिनों मलेरिया के सबसे अधिक केस मझगवां, आंवला, रामनगर और भमोरा ब्लॉक में मिले थे।
हड़कंप मचा तो इसकी रोकथाम के लिए दिल्ली से आईसीएमआर की टीम कई बार सीरो सर्विलांस के लिए आई। इतना ही नहीं, दो साल से आईसीएमआर की टीम यहां मलेरिया प्रभावित इलाकों पर स्टडी भी कर रही है। इन इलाकों में जनजागरूकता अभियान भी चलाया गया, जिसका असर भी दिखा। इधर, मीरगंज और शेरगढ़ ब्लॉक स्वास्थ्य विभाग के लिए चिंता का सबब बन गए हैं। इन दोनों इलाकों में पिछले तीन साल में मलेरिया के रोगियों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है। रोचक तथ्य यह है कि रामगंगा नदी के एक तरफ मझगवां है और दूसरी ओर मीरगंज। दोनों ही ब्लॉक मलेरिया से अधिक प्रभावित हैं।
इसी तरह मीरगंज और शेरगढ़ के बीच में बहगुल और भाखड़ा नदी बहती है। मीरगंज में केस बढ़ने के बाद अब नदी के दूसरी ओर शेरगढ़ के इलाके में भी मलेरिया का प्रकोप बढ़ गया है। इन दोनों इलाकों में मलेरिया के केस बढ़ने पर लखनऊ से संचारी रोग निदेशक डा. एके सिंह भी दौरे पर आए थे। उन्होंने स्थानीय अधिकारियों से इसके कारणों की रिपोर्ट भी मांगी है।
विभाग ये दे रहा तर्क
विभाग का एक तर्क यह है कि रामगंगा नदी पर गोरालोकनाथ पुल बनने के बाद पूर्व में पीड़ित इलाकों के लोगों का मीरगंज और शेरगढ़ के गांवों में आना-जाना बढ़ गया है। इससे संक्रमण फैल गया है। दूसरा तर्क है कि 15 साल पहले भी इन इलाकों के गांवों में मलेरिया के कुछ केस निकले थे। ऐसे में हो सकता है कि किसी के शरीर में पैरासाइट मौजदू हो।
विशेषज्ञ बोले, तापमान और जलवायु भी है कारण
1. 32-38 डिग्री तापमान पर अधिक पनपते हैं मच्छर
मंडलीय सर्विलांस अधिकारी डा. अखिलेश्वर सिंह ने बताया कि मलेरिया के पैरासाइट के लिए तापमान और नमी एक साथ होना अनुकूल होता है। यही वजह है कि जुलाई से लेकर सितंबर-अक्तूबर तक और अप्रैल के कुछ दिनों में मलेरिया का खतरा अधिक रहता है। मलेरिया के मच्छर 32 से 38 डिग्री तापमान में अधिक पनपते हैं।
2. नदी किनारे के इलाकों में पनपते हैं मच्छर
विशेषज्ञों का कहना है कि नदी किनारे का जलस्तर बेहतर होता है। बारिश के दिनों में नदियों के आसपास गड्ढे आदि में पानी भर जाता है। उस पानी में पत्ते,कीड़े-मकोड़े आदि गिरने से सड़न पैदा होने लगती है। पानी में मच्छर के लार्वा पनपने लगते हैं। अनुकूल मौसम मिलने पर यदि ये मच्छर किसी मलेरिया परजीवी वाले व्यक्ति को काटता है तो वहीं से वह उसका वाहक बन जाता है। अनुकूल परिस्थिति के कारण इलाके में मच्छर अधिक होने पर यह तेजी से फैलता है।
जिला मलेरिया सर्विलांस अधिकारी, डा. हरपाल सिंह ने कहा कि प्रभावित इलाकों में विभाग की नजर है। मरीज बढ़ने के कारणों का पता लगाया जा रहा है। हम आशा कार्यकत्रियों को प्रशिक्षण देकर प्रभावित इलाकों में मलेरिया की अधिक से अधिक जांच करेंगे। कुछ अन्य माध्यमों का इस्तेमाल कर मलेरिया पर नियंत्रण करेंगे।