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महानदी जल बंटवारे को लेकर छत्तीसगढ़ और ओडिशा के दावों के समाधान के लिए बेसिन क्षेत्रों में निरीक्षण

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रायपुर

महानदी के जल-बंटवारे को लेकर छत्तीसगढ़ और ओडिशा के दावों का समाधान करने के उद्देश्य से महानदी जल विवाद अधिकरण के आदेशानुसार छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित महानदी बेसिन क्षेत्र में दो चरणों में महानदी में जल की उपलब्धता एवं उपयोगिता का निरीक्षण किया जाना है। 18 अप्रैल 2023 से 22 अप्रैल 2023 तक प्रथम चरण एवं 29 अप्रैल 2023 से 3 मई 2023 तक द्वितीय चरण में निरीक्षण किया जाएगा। इन निरीक्षण में महानदी के उद्गम क्षेत्र से छत्तीसगढ़ राज्य की सीमा यथा जिला रायगढ़ तक का क्षेत्र शामिल होगा। इसके बाद ओडिशा राज्य के महानदी बेसिन क्षेत्र में इसी प्रकार महानदी जल विवाद अधिकरण के पृथक आदेश के अनुसार निरीक्षण किया जाएगा।

छत्तीसगढ़ एक नया राज्य है, जो दो दशक पहले 01 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया है। छत्तीसगढ़ में देश की सबसे बड़ी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी राज्य की आबादी का 43 प्रतिशत से अधिक है। छत्तीसगढ़ राज्य की अधिकांश जनसंख्या कृषि और कृषि आधारित उद्योगों पर निर्भर है। राज्य का लगभग 44 प्रतिशत भाग वनों से आच्छादित है। छत्तीसगढ़ राज्य में पांच नदी घाटियों (महानदी, गोदावरी, गंगा, ब्राह्मणी, नर्मदा) के बेसिन क्षेत्र आते हैं। छत्तीसगढ़ की 78 प्रतिशत जनसंख्या महानदी बेसिन में निवास करती है, जोकि इस राज्य की जीवन-रेखा है।

अंतरराज्यीय नदी, महानदी, के जल संसाधनों का बंटवारा करने के लिए ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ राज्य के बीच कभी भी कोई अंतरराज्यीय समझौता नहीं हुआ है, हालांकि मतभेदों को दूर करने के लिए अतीत में कुछ प्रयास जरूर किए गए। आधिकारिक स्तर पर दोनों राज्यों की बैठकें वर्ष 1973, 1976 और 1979 में ओडिशा राज्य और मध्यप्रदेश राज्य (अब छत्तीसगढ़) के अधिकारियों के बीच आयोजित की गईं। महानदी बेसिन क्षेत्र में स्थित कुछ परियोजनाओं पर 1983 में मध्यप्रदेश राज्य और ओडिशा राज्य के मुख्यमंत्रियों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, परंतु इस समझौते पर अधिकरण की स्थापना तक राज्यों द्वारा संपूर्ण रूप से क्रियान्वयन नहीं किया गया है।

ओडिशा राज्य द्वारा मुख्य महानदी की धारा पर छ: औद्योगिक बैराज के निर्माण एवं गैर मानसून अवधि में छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित महानदी एवं अन्य स्त्रोतों से जल आवक की कमी को लेकर केंद्र सरकार के समक्ष शिकायत दर्ज की गई। ओडिशा राज्य द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य के अंतर्गत स्थित महानदी के जल का बंटवारा करने के लिए आवेदन किया गया है। ओडिशा राज्य द्वारा प्रस्तुत तथ्य तकनीकी विषयों पर आधारित होने के कारण माननीय सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप/आदेश के आधार पर महानदी जल विवाद अधिकरण का गठन दिनांक 12 मार्च 2018 को केन्द्र शासन द्वारा अधिसूचना के आधार पर किया गया। है।

छत्तीसगढ़ राज्य में महानदी पर निर्मित बैराज/एनीकट मानसून के समय के वर्षा जल की अल्प मात्रा को एकत्रित करने तथा भू-जल को संवर्धित करने के लिए हैं तथा महानदी के पानी के प्रवाह को बाधित नहीं करते हैं, जैसा कि ओडिशा द्वारा गलत आरोप लगाया गया है। इन तथ्यों को महानदी जल विवाद अधिकरण के समक्ष भी छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा प्रस्तुत किया गया है। छत्तीसगढ़ ने भी केंद्र सरकार से शिकायत की और समग्र रूप से बेसिन में कुल उपलब्ध जल संसाधनों को ध्यान में रखते हुए महानदी के पानी के समान रूप से वितरण की मांग की गई।

अंतरराज्यीय नदियों के पानी को आवंटित करने की कोई भी शक्ति केन्द्रीय जल आयोग, नई दिल्ली के पास नहीं हैं, अतएव इस अंतर्राज्यीय महानदी के जल आबंटन हेतु अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत जल का बंटवारा संभव होने के कारण महानदी जल विवाद अधिकरण की स्थापना दिनांक 12 मार्च 2018 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली के आदेश के अनुपालन में की गई है। जिसमें जारी अधिसूचना के अनुसार तीन सदस्यीय विधिक न्यायाधीशों को नामित किया गया है।

1. माननीय न्यायाधीश श्री ए.एम.खानविलकर – अध्यक्ष
(न्यायाधीश उच्चत्तम न्यायालय नई दिल्ली )
2.माननीय न्यायाधीश श्री डॉ. रावि रंजन – सदस्य
(न्यायाधीश उच्च न्यायालय पटना )
3.श्रीमती न्यायाधीश इंदरमीत कौर कोचर – सदस्य
(न्यायाधीश उच्च न्यायालय नई दिल्ली)
वर्तमान में अधिकरण की समय सीमा समाप्त होने के कारण केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा दिसंबर 2024 तक समय-सीमा में वृद्धि की गई है।
महानदी जल विवाद अधिकरण की अब तक 36 सुनवाई हो चुकी है। दिनांक 25 मार्च 2023 के आदेश अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित महानदी बेसिन क्षेत्र में दो चरणों में महानदी में जल की उपलब्धता एवं उपयोगिता का निरीक्षण किया जाना है। छत्तीसगढ़ में जल संसाधन विभाग का विकास इसी विवाद के महानदी जल विवाद अधिकरण के द्वारा जारी अवार्ड में छत्तीसगढ़ राज्य को आबंटित जल की मात्रा के परिणाम पर निर्भर है। उक्त अवार्ड की वैधता वर्ष 2051 तक रहेगी।