बीजिंग
चीन की सीमा से सटे मध्य एशियाई देशों में बीजिंग की कर्ज देकर गुलाम बनाने और जमीन कब्जाने की नीति के खिलाफ नाराजगी बढ़ रही है। चीन ने इस इलाके में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की सुरक्षा में निजी सुरक्षा कंपनियों को तैनात किया है। इनकी मौजूदगी ने मध्य एशियाई लोगों के गुस्से को और ज्यादा भड़काया है। पिछले कुछ वर्षों में मध्य एशिया में 150 से अधिक चीन विरोधी प्रदर्शन हुए हैं, जिनमें किर्गिस्तान शीर्ष पर है। इसके बाद कजाकिस्तान और ताजिकिस्तान का नंबर है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन विरोधी प्रदर्शनों की संख्या और अधिक हो सकती है, क्योंकि महामारी के दौरान बेरोजगारी बढ़ी है और सरकारी सहायता उतनी ही तेजी से घटी है।
मध्य एशिया में चीन के खिलाफ नाराजगी क्यों बढ़ी
हाल के वर्षों में पूरे मध्य एशिया में चीन विरोधी प्रदर्शनों की एक कड़ी देखी गई है। चीन-मध्य एशिया संबंधों पर बारीक नजर रखने वाले विशेषज्ञों के अनुसार, उनकी भूमि को लंबे समय तक पट्टे पर देना, चीन के लिए राष्ट्रीय ऋण में वृद्धि और शिनजियांग में कजाख और किर्गिज समुदायों के उत्पीड़न ने आग में घी का काम किया है। किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान में खास तौर पर चीन विरोधी लहर को देखा जा रहा है। ये दोनों देश चीनी कर्ज के जाल में बुरी तरह फंसे हुए हैं। इस कारण इन देशों के संप्रभुता खोने का खतरा बढ़ गया है। पिछले कुछ महीनों में इस क्षेत्र में चीनी श्रमिकों के खिलाफ व्यापक विरोध और हिंसा के मामले देखे गए हैं।
चीन के खिलाफ लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन
अप्रैल 2018 में तोगुज़-टोरो के निवासियों ने सोने के खदान में लगी चीनी कंपनियों की मशीनों को जला दिया था। दिसंबर 2018 में, शिनजियांग में डिटेंशन कैंपों के विरोध में किर्गिस्तान में चीनी दूतावास के बाहर प्रदर्शन किया गया। जनवरी 2019 में बिश्केक में अवैध चीनी श्रमिकों की बढ़ती संख्या के खिलाफ एक और विरोध प्रदर्शन किया गया। कजाकिस्तान में, लोगों ने अपनी कृषि भूमि को चीनी किसानों को पट्टे पर देने का कड़ा विरोध किया और सरकार को फैसला बदलने पर मजबूर कर दिया। इस पूरे इलाके में ऊर्जा, तेल और गैस क्षेत्रों में चीन के बढ़ते निवेश की आलोचना में हाल के वर्षों में इजाफा देखा गया है। 2019 में 500 किर्गिज ग्रामीणों की चीनी खदान श्रमिकों के साथ लड़ाई भी हुई थी।
ताजिकिस्तान ने कर्ज के बदले जमीन चीन को सौंपी
बढ़ते कर्ज के भुगतान के तौर पर ताजिकिस्तान ने 2011 में चीन को 1,158 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र सौंप दिया था। दावा यह भी किया जाता है कि ताजिकिस्तान ने कथित तौर पर 300 मिलियन डॉलर के कर्ज का भुगतान करने के लिए एक सोने की खान का स्वामित्व भी चीन को सौंपा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि तुर्कमेनिस्तान भी अपने गैस क्षेत्र को को चीन को सौंप सकता है, क्योंकि वह भी कर्ज चुकाने में नाकाम हो रहा है। दोनों देशों में सरकारों के ऐसे फैसलों के खिलाफ आम लोगों में आक्रोश है। वे चीन को दोस्त कम और दुश्मन के तौर पर ज्यादा देखने लगे हैं।
चीन की निजी सुरक्षा कंपनियों के खिलाफ लोगों का गुस्सा
2016 में बिश्केक में चीनी दूतावास पर बमबारी भी इस इलाके में चीन की बढ़ती उपस्थिति के खिलाफ स्थानीय लोगों के असंतोष का प्रमुख उदाहरण माना गया। मध्य एशिया के नागरिकों के बीच बढ़ती चीन विरोधी भावना ने चीनी सरकार को इस क्षेत्र में निजी सुरक्षा कंपनियों को तैनात करने पर मजबूर किया है। लेकिन कई नागरिकों के साथ-साध मध्य एशिया के स्थानीय एनजीओ ने भी अपने देशों में चीनी निजी सुरक्षा कंपनियों के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता जताई है।
विदेशों में सैन्य चौकियां स्थापित कर रहा चीन
बीआरआई में शामिल देशों अपने लोगों, व्यवसायों और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, चीन निहत्थे निजी सुरक्षा कंपनियों (पीएससी) को तैनात कर रहा है। दिशानिर्देश और नियम पीएससी को विदेशी सरकारों के साथ अच्छे संबंध बनाने और बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उदाहरण के लिए, ताजिकिस्तान में, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने गोर्नो-बदख्शां स्वायत्त क्षेत्र में एक सैन्य चौकी स्थापित की है। यह चौकी चीन के शिनजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र की सीमा पर स्थित है। यहां से अफगानिस्तान का वाखान कॉरिडोर भी कुछ मील की दूरी पर है।