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बिरनपुर में जनवरी से ही बिगड़ने लगा था सौहार्द, यूं भड़की हिंसा की आग

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 बेमेतरा

छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के बिरनपुर गांव में शनिवार को भड़की सांप्रदायिक हिंसा में दो घरों के चिराग बुझ गए। अब गांव और आस-पास के इलाके में ​वीरानी है। दुकानें बंद हैं और लोग घरों में कैद हैं। बिरनपुर के लोग कहते हैं कि गांव में कभी ऐसी घटना नहीं हुई थी। दोनों ही समुदायों के लोग मिलजुल कर रहते थे। एक दूसरे के दुखदर्द में शरीक होते थे। ऐसे में पहला सवाल उठता है कि अचानक ऐसा क्या हो गया कि गांव के लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। गांव के लोग इसी वजहें भी बताते हैं। इस रिपोर्ट में पड़ताल उन्हीं वजहों की…

हिंदू-मुस्लिम मिलकर रहते थे साथ
 रिपोर्ट के मुताबिक, बिरनपुर (Biranpur Village) के लोगों का कहना है कि गांव में पहले मामूली झड़पों को छोड़कर गांव में इस तरह की सांप्रदायिक हिंसा कभी नहीं हुई थी। गांव में लगभग 1200 मतदाता हैं। इनमें लगभग 300 मुसलमान हैं। मुसलमान कई वर्षों से गांव में रह रहे हैं लेकिन इस तरह की सांप्रदायिक हिंसा कभी नहीं हुई। हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग एक दूसरे के त्योहारों में शरीक होते थे। पड़ोसियों में उपहारों का आदान-प्रदान होता था। गांव के लोगों के बीच संबंध हमेशा से सौहार्दपूर्ण था।

इन घटनाओं से बिगड़ता गया माहौल
गांव के लोगों का कहना है कि गांव में इस साल जनवरी से ही माहौल बिगड़ने लगा था। गांव के ही मुस्लिम युवकों ने साहू परिवार की दो युवतियों से शादियां कर ली। इस वजह से गांव में तनाव बढ़ता शुरू हो गया था। गांव में हर समुदाय के लोग आस पड़ोस की बेटियों को अपनी बहन बेटियां ही मानते थे लेकिन इस साल जनवरी के महीने में हुई इन घटनाओं ने सामाजिक सौहार्द को छिन्न भिन्न कर दिया। इन घटनाओं से लोग आक्रोशित थे। ऐसी घटनाएं दोबारा ना होने पाएं सर्व हिंदू समाज ने इसको लेकर बैठकें आयोजित की थी।

बच्चों के बीच की लड़ाई के बाद फूटा आक्रोश
ग्रामीणों का कहना है कि लोगों ने भविष्य में इस तरह के विवाहों को रोकने के उपायों पर चर्चा करने के लिए एक सम्मेलन भी आयोजित किया था। पुलिस को पहले ही ऐसी घटनाओं पर कदम उठाना चाहिए था। लोगों ने बताया कि आठ अप्रैल को दो समुदायों के स्कूली बच्चों के बीच एक छोटी लड़ाई हो गई। बच्चों के बीच हुई इस छोटी लड़ाई ने लोगों में दबे आक्रोश को ईंधन दिया नतीजतन हिंसा भड़क गई। पहले से आक्रोशित लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। किसी ने यह उम्मीद नहीं की थी कि बच्चों के बीच हुई लड़ाई सांप्रदायिक हिंसा में तब्दील हो जाएगी।

वक्त ही देगा सवालों के जवाब...
अब इस हिंसा की चर्चा पूरे देश में हो रही है। हिंसा में कुल तीन लोग मारे गए हैं। अब भूपेश बघेल सरकार ने अपनों को खो चुके लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने की पहल की है। पीड़ित परिवार के सदस्य को सरकारी नौकरी देने का एलान किया है। वहीं लोग दोषियों को फांसी देने की मांग कर रहे हैं। आज तो पुलिस भी मुस्तैद है। इलाके में धारा-144 लागू है। गांव में सड़कों और गलियों में छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल (सीएएफ) और पुलिस कर्मियों का पहरा है। सवाल यह कि क्या इन पहलकदमियों से जख्म भरेंगे और गांव में सदियों से चला आ रहा पुराना सौहार्द वापस लौटेगा..?