कोटा.
राजस्थान में पहले चरण के चुनाव खत्म होने के बाद अब बीजेपी ने अपना फोकस कोटा सीट पर बढ़ा दिया है। पिछले 2 लोकसभा चुनावों से इस सीट को जीतने वाली भाजपा के लिए बागी प्रहलाद गुंजल ने मुकाबले को बेहद टक्कर का बना दिया है। पहले चरण में मतदान प्रतिशत घटने के बाद अब बीजेपी की चिंता दूसरे चरण की उन सीटों पर बढ़ गई है, जिन पर मुकाबला कांटे का बताया जा रहा है।
इनमें सबसे हॉट सीट कोटा है, जहां बीजेपी के ओम बिड़ला का मुकाबला कांग्रेस के प्रहलाद गुंजल से होना है। इस पर सीट पर 26 अप्रैल को वोटिंग होनी है लेकिन इस बार यहां के सियासी समीकरण बेहद उलझे हुए नजर आ रहे हैं।
बीते 2 लोकसभा चुनाव की बात करें तो 2019 का चुनाव ओम बिड़ला ने 2 लाख 79 हजार के अंतर से जीता, वहीं 2014 का चुनाव भी 2 लाख वोटों के अंतर से जीता लेकिन इस बार मुकाबला कांटे का माना जा रहा है।
जानिये क्या कारण हैं —————–
वसुंधरा को निगलेक्ट करना पड़ सकता है भारी
हाड़ौती का यह इलाका बीजेपी की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के प्रभाव वाला माना जाता है। इस बार बीजेपी ने राजे को पूरी तरह साइड लाइन कर दिया।
गुर्जरों पर है गुंजल की पकड़
कोटा सीट पर करीब 20 लाख मतदाता हैं, इनमें लगभग ढाई लाख के आसपास गुर्जर वोटर हैं। हालांकि गुर्जरों का झुकाव इस सीट पर बीजेपी की तरफ रहा है लेकिन इसकी कई वजह भी थीं। इनमें से एक वजह वसुंधरा राजे हैं, जिनकी बहू गुर्जर समुदाय से आती हैं। इसके अलावा प्रहलाद गुंजल खुद गुर्जर हैं और बीजेपी के गुर्जर वोटरों पर उनका खासा प्रभाव भी है।
सरदार भी असरदार
कोटा सीट पर सिख वोटरों की संख्या भी लगभग 60 हजार के आसपास बताई जाती है। इस बार सिख वोटरों में किसान आंदोलन को लेकर नाराजगी देखने को मिल रही है। इसके अलावा यहां अल्पसंख्यक समुदाय में मुस्लिम वोटर भी बड़ा संख्या में हैं।
एसटी के लिए आरक्षण मुद्दा बना
यहां मीणा वोट बड़ी संख्या में हैं, जो कि एसटी में आते हैं। बीजेपी नेताओं के संविधान बदलने वाले बयान ने आरक्षित वर्ग के मन में संशय पैदा कर दिया है। हालांकि खुद पीएम और गृह मंत्री अपने हर भाषण में यह बात कह रहे हैं कि आरक्षण से कोई छेड़छाड़ नहीं होगी लेकिन एससी और एसटी के लिए तो यह मुद्दा बन चुका है। कोटा लोकसभा में बूंदी और पीपलदा में मीणा वोटरों की संख्या बहुत है। इनमें पीपलदा में कांग्रेस के विधायक चेतन पटेल हैं और बूंदी में कांग्रेस के हरिमोहन शर्मा। हालांकि परंपरागत रूप से मीणा वोट गुर्जर प्रत्याशी के लिए ट्रांसफर नहीं होते लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट के लिए यह समीकरण बदला जा चुका है।