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बिहार के नवादा लोकसभा क्षेत्र का इतिहास रहा है, यहां जाति के भरोसे ही चुनाव लड़े जाते रहे हैं, यादव तय करते हैं रिजल्ट की दिशा

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नवादा
बिहार के नवादा लोकसभा क्षेत्र का इतिहास रहा है, यहां जाति के भरोसे ही चुनाव लड़े जाते रहे हैं। आरंभ से लेकर आज के परिदृश्य की बात की जाए तो कोई बहुत ज्यादा फर्क इसमें नहीं पड़ा है। हमेशा से विकास और तमाम मुद्दे हाशिए पर चले जाते रहे हैं और अंतत: जातीय फैक्टर ही प्रभावी बन जाता है। चूंकि यहां का गणित बहुत स्पष्ट है, इसलिए उम्मीदवार भी बहती गंगा में हाथ धोने से नहीं चूकते। रोचक बात यह है कि इसका लाभ हमेशा उम्मीदवारों को मिला है इसलिए सभी इसी अमोघ अस्त्र के भरोसे चुनावी महासमर में कूद पड़ते हैं।

नवादा लोकसभा सीट के लिए होने वाले चुनावों में भूमिहार और यादवों के 30-30 फीसदी वोट हमेशा से चुनाव परिणामों को दिशा देने वाले रहे हैं। हालांकि इस परिणाम को इधर-उधर कर डालने में हर बार प्रभावी साबित हुए पिछड़े और दलित वर्ग के 10-10 फीसदी वोट भी बहुत महत्व के साबित होते रहे हैं। इसके अलावा मुस्लिमों के पांच प्रतिशत एक तरफा वोट तथा अन्य के पांच फीसदी मिश्रित वोट को तोड़-फोड़ कर अपने लिए साजगार बनाने की जिसने सफल कोशिश कर ली, नवादा में उसके सिर पर ही ताज सुशोभित होता रहा है।

नवादा लोकसभा क्षेत्र में कुल 20 लाख 06 हजार 124 मतदाता हैं। इसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 10 लाख 43 हजार 788 जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 09 लाख 62 हजार 186 है। यहां 150 मतदाता थर्ड जेंडर के भी हैं। इनमें बरबीघा विधानसभा क्षेत्र के 02 लाख 33 हजार 944 मतदाता भी शामिल हैं। नवादा लोकसभा क्षेत्र के 2043 बूथों जबकि नवादा जिले के 1795 बूथों पर सभी मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। हालांकि नवादा में अधिकतम 50-55 फीसदी मतदाता ही उम्मीदवारों के भाग्यविधाता बन पाते हैं।
 
एनडीए और महागठबंधन में होगा मुकाबला, निर्दलीय भी मैदान में
नवादा में सीधा मुकाबला की स्थिति बन रही है। इस बार एनडीए और महागठबंधन के उम्मीदवारों के बीच ही मुकाबले की संभावना है। उम्मीदवारी तय होने के पहले से ही इतना तय था कि एनडीए प्रत्याशी विवेक ठाकुर का महागठबंधन के उम्मीदवार श्रवण कुशवाहा से ही टकराव होना है। ऐन चुनाव के वक्त के पूर्व तक दोनों ही दलों द्वारा यह कोशिश की जा रही है अपने कद्दावर नेता का दौरा करा कर माहौल को अपने पक्ष में बना लिया जाए। अभी रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा हुई है जबकि तेजस्वी यादव के आने की तैयारी है। निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपनी जोर-आजमाइश में लगे आरजेडी के बागी विनोद यादव चुनावी रंगत में कुछ बदलाव लाने की कोशिश में जी-तोड़ जुटे हैं अन्यथा अभी तक एनडीए और इंडिया गठबंधन में सीधा मुकाबला का ही नजार आ रहा है।