नई दिल्ली
दिल्ली से लुप्त हो रहे स्थानीय पौधों को बचाने के लिए असोला भाटी वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी में वन विभाग टिशू कल्चर लैब बनाने जा रहा है। इसका मकसद पौधों की प्रजातियों के संरक्षण के साथ ही पर्यावरण की रक्षा करना है। इस लैब में उन प्रजातियों के पौधों को रीजनरेट किया जाएगा तो आसानी से नहीं मिल रहे हैं।
विलायती कीकर की वजह से नहीं बच पाते पौधे
वन विभाग के अधिकारी के अनुसार अरावली व रिज क्षेत्र में विलायती कीकर की अधिकता की वजह से कुछ पौधों की प्रजातियों को बचाना चुनौती बनता जा रहा है। वन विभाग के अडिशनल चीफ कंसर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट सुनीश बक्शी ने बताया कि विलायती कीकर की वजह से यह प्रजातियां पनप नहीं पा रही हैं। ऐसी प्रजातियों की एक लिस्ट भी डिपार्टमेंट ने तैयार की है। इसमें हिंगोट, खैर, बिस्टेंदु, सिरिस, पलाश, चमरोड, दूधी, धऊ, देसी बबूल और कुलु आदि शामिल हैं।
बोटेनिस्ट और साइंटिस्ट्स करेंगे मदद
वन विभाग के एक अधिकारी के अनुसार इस लैब को बनाने के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू हो गई है। अगर बिडर नहीं आए तो सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग से इस लैब को बनाने को कहा जाएगा। लैब के लिए बोटेनिस्ट और फॉरेस्ट स्टाफ की जरूरत होगी। इस काम में विभाग इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (ICFRE) और देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एफआरआई) के बोटेनिस्ट और साइंटिस्ट्स की मदद लेगा। लैब तैयार होने के बाद बड़े पेड़ों के प्लांट टीशू को निकाला जाएगा और इनसे कई पौधे तैयार किए जाएंगे। हालांकि बायोडायवर्सिटी एक्सपर्ट के अनुसार यह प्रक्रिया सिर्फ उन पौधों के साथ होनी चाहिए जो काफी कम रह गए है। इकोलॉजिस्ट विजय दशमाना के अनुसार टीशू से पौधे बनाना एक तरह का क्लोन तैयार करना है। वहीं वन विभग के अनुसार पौधों को लगाने से पहले यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इन पौधों में क्लोनिंग स्टेज पर कोई वायरस या बीमारी न हो।
पहले भी हो चुकी है पहल
इससे पहले 1986 में दिल्ली में नैशनल फेसिलिटी फॉर प्लांट टीशू कल्चर रिपोसिटोरी की स्थापना नैशनल ब्यूरो ऑफ प्लंट जैनेटिक रिसोर्स ने की थी। यह सिर्फ पांच तरह के पौधों के टिशू कल्चर एक्सपेरिमेंट और रिसर्च करती है। वहीं देश भर में 125 से अधिक टीशू कल्चर लैब हैं। टीशू कल्चर की यह प्रक्रिया केले, सेब, अनार और जट्रोफा में काफी अधिक इस्तेमाल भी हो रही है। वन विभाग के अनुसार कुछ प्रजातियों के पेड़ जैसे कुलु, पलाश, दूधी, धऊ आदि अब दिल्ली रिज में काफी कम रह गए हैं। इन्हें रिजनरेट करना और बढ़ाना चुनौती बन रहा है। इसी वजह से टीशू कल्चर लैब की जरूरत है।