चेन्नै
हम जिस जाति व्यवस्था को आज जानते हैं, उसका इतिहास एक सदी से भी कम का है। इसलिए जाति के आधार पर समाज में पैदा हुए विभाजन और भेदभाव के लिए पूरी तरह वर्ण व्यवस्था को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। मद्रास हाई कोर्ट ने उदयनिधि स्टालिन की ओर से सनातन धर्म पर दिए बयान को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह अहम टिप्पणी की। जस्टिस अनीता सुमंत ने कहा कि यह माना जा सकता है कि जाति व्यवस्था के चलते भेदभाव हो रहा है। लेकिन इस व्यवस्था का इतिहास एक शताब्दी से भी कम का है।
यही नहीं अदालत ने कहा कि तमिलनाडु में 370 पंजीकृत जातियां हैं। अलग-अलग जातियों के बीच अकसर तनाव की स्थिति भी पैदा हो जाती है। लेकिन इसकी वजह सिर्फ जाति नहीं होती बल्कि उन्हें मिलने वाले फायदे भी होते हैं। अदालत ने कहा, 'हम मानते हैं कि समाज में जाति के आधार पर भेदभाप है और इसे खत्म किए जाने की जरूरत है। लेकिन हम जिस जाति व्यवस्था को आज जानते हैं, उसका इतिहास एक सदी से ज्यादा पुराना नहीं है। तमिलनाडु में ही 370 से ज्यादा रजिस्टर्ड जातियां हैं। उनके बीच भी कई बार इसलिए मतभेद होते हैं कि कोई कहता है कि हमारी उपेक्षा हो रही है और दूसरे को महत्व मिल रहा है। इस संघर्ष की एक वजह एक-दूसरे को मिल रहे फायदे भी होते हैं।'
जस्टिस अनीता सुमंत ने कहा कि जब ऐसी स्थिति है तो फिर पूरा दोष सिर्फ प्राचीन वर्ण व्यवस्था पर ही कैसे मढ़ा जा सकता है। इसका जवाब हम तलाशेंगे तो ना में मिलेगा। अदालत ने कहा कि इतिहास में भी ऐसा होता रहा है कि लोग जाति के नाम पर एक-दूसरे पर हमला बोलते रहे हैं। बेंच ने कहा कि पुराने दौर की इन बुराइयों को खत्म करने के लिए यह जरूरी है कि लगातार सुधार किए जाएं। आत्मविश्लेषण हो और हम उन तरीकों के बारे में सोचें, जिनके जरिए भेदभाव खत्म किया जा सके।
बेंच ने कहा, 'वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर भेदभाव नहीं करती। यह लोगों के काम या पेशे पर आधारित थी। यह व्यवस्था इसलिए बनी थी कि समाज सुचारू रूप से काम कर सके। यहां लोगों की पहचान उनके काम से की जाती थी। यहां तक कि आज भी लोगों की पहचान काम के आधार पर ही होती है।' अदालत ने अपने फैसले में स्टालिन को नसीहत दी है कि वह किसी वर्ग को आहत करने वाले बयान देने से बचें। बता दें कि हाल ही में उनकी पार्टी डीएमके के नेता ए. राजा ने भगवान राम और मंदिर को लेकर भी टिप्पणी की थी, जिस पर एक वर्ग ने ऐतराज जताया था।