नागौर.
राजस्थान में जाट राजनीति का रुख किस तरफ होगा इसका अंदाजा नागौर से लगाया जाता है, इसीलिए इसे जाट हार्टलैंड कहा जाता है। भाजपा ने लोकसभा चुनावों के लिए यहां से नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा को टिकट दिया है। इसकी बड़ी वजह है कि 1977 से ही इस सीट पर लगातार जाटों का वर्चस्व रहा है और मिर्धा परिवार इनमें शीर्ष पर रहा है।
लेकिन इस बार ये सीट सिर्फ इसलिए चर्चा में नहीं है कि भाजपा ने ज्योति मिर्धा को यहां से टिकट दिया है बल्कि चर्चा इसलिए है कि अब नागौर के पूर्व सांसद और खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल किस तरफ रुख करेंगे। हनुमान को भी ज्योति की तरह ही नागौर की सियासत विरासत में मिली है।
हनुमान के पिता रामदेव चौधरी किसी जमाने में नाथूराम मिर्धा के सबसे खास माने जाते थे। नागौर लोकसभा सीट पर हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा 2 बार सीधे आमने-सामने हो चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस से ज्योति के हारने की वजह हनुमान बेनीवाल को ही माना गया था क्योंकि उन्होंने ज्योति के वोट काटने का काम किया था। वहीं साल 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में हनुमान ने ज्योति को हराकर लोकसभा सीट जीती थी। यह तो तय है कि हनुमान बेनीवाल लोकसभा चुनाव लड़ने मन बना चुके हैं लेकिन उनका एलायंस किसके साथ होगा इस पर आगे के कई समीकरण तय होंगे। भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनावों में नागौर की सीट के लिए उनके साथ गठबंधन किया था। हालांकि किसान आंदोलन के दौरान हनुमान इस गठबंधन से बाहर चले गए थे। इसके बाद नागौर में भाजपा ने हनुमान के विकल्प के तौर पर मिर्धा परिवार पर हाथ रखा। दरअसल भाजपा हनुमान को नागौर से बाहर रखना चाहती है क्योंकि नागौर में उनके रहते यहां बीजेपी की राजनीति पनप नहीं पा रही। संभावना है कि भाजपा अजमेर लोकसभा सीट के लिए हनुमान को ऑफर दे लेकिन हनुमान के लिए नागौर उनके अस्तित्व वाली सीट है इसलिए इसे छोड़कर वे दूसरी जगह जाएंगे यह कहना मुश्किल होगा।
कांग्रेस भी है बेनीवाल से गठबंधन की लाइन में
यदि हनुमान बेनीवाल और कांग्रेस के बीच समझौता हो जाता है तो इसमें नागौर के साथ बाड़मेर सीट भी समझौते का हिस्सा होगी। हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश चौधरी बाड़मेर की बायतू सीट से आते हैं और वे लगातार हनुमान का विरोध करते रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस के साथ हनुमान के गठबंधन की राह भी आसान नहीं होगी।
गठबंधन से भाजपा को कितनी मुश्किल
हालांकि हनुमान का कांग्रेस के साथ गठबंधन अभी नहीं हुआ है लेकिन यदि यह हो जाता है तो बीजेपी के लिए नागौर, बाड़मेर, राजसमंद, अजमेर और जयपुर ग्रामीण की सीटों पर मुश्किलें बढ़ जाएंगी। अगर आरएलपी और कांग्रेस का गठबंधन हो जाता है और नागौर से बेनीवाल प्रत्याशी बनते हैं तो यह तीसरा मौका होगा जब ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी होंगे।
समझिये इस सीट का चुनावी गणित
2019 के लोकसभा चुनावों के अनुसार क्षेत्र में कुल वोटर 17,41,967 हैं। इनमें 9,06,246 पुरुष और 8,35,717 महिला वोटर हैं।
1977 से अब तक के लोकसभा चुनावों के नतीजे —————
साल 1977 में नाथूराम मिर्धा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1980 में नाथूराम मिर्धा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस यू)
1984 में रामनिवास मिर्धा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1989 में रामनिवास मिर्धा (जनता दल)
1991 में नाथूराम मिर्धा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1996 में नाथूराम मिर्धा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1997 में भानुप्रकाश मिर्धा (भारतीय जनता पार्टी)
1998 में राम रघुनाथ चौधरी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1999 में रामरघुनाथ चौधरी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
2004 में भंवर सिंह डांगावास (भारतीय जनता पार्टी)
2009 में ज्योति मिर्धा (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
2014 में सीआर चौधरी (भारतीय जनता पार्टी)
और साल 2019 में हनुमान बेनीवाल (आरएलपी एनडीए गठबंधन)
नागौर निर्वाचन क्षेत्र में लाडनूं, जायल, डीडवाना, नागौर, खींवसर, मकराना, परबतसर और नवां कुल मिलाकर आठ विधानसभा सीटें आती हैं। जातिगत समीकरणों को देखा जाए तो यहां मुख्य रूप से जाट, मुस्लिम और एससी में मेघवाल बहुलता में हैं। ऐसे में इनमें दो जातियां जिधर का रुख कर लेती हैं, चुनाव उसी दिशा में मुड़ना तय हो जाता है।