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परिवार के कत्लेआम के बाद दिल्ली में बिताए थे 6 साल, क्यों भारत की अहसानमंद हैं शेख हसीना?

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नई दिल्ली
बांग्लादेश में आज यानी 7 जनवरी को चुनाव कराए जा रहे हैं। इस बार विपक्ष चुनाव का बहिष्कार कर रहा है। ऐसे में शेख हसीना का प्रधानमंत्री बनना तय माना जा रहा है। वोट देने के बाद शेख हसीना ने भारत को संदेश देते हुए कहा कि भारत हमेशा से ही भरोसेमंद दोस्त रहा है। उन्होंने कहा, हमारे मुक्ति संग्राम के दौरान भारत ने पूरा समर्थन दिया था। 1975 में परिवार खोने के बाद भारत ने ही आश्रय दिया था। बांग्लादेश में इस बार बीएनपी समेत विपक्षी दलों ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया है और 48 घंटे की हड़ताल की घोषणा की है।

भारत ने बांग्लादेश को दिलाई थी आजादी
पाकिस्तान के चंगुल से बांग्लादेश को बाहर निकालने में भारत ने अहम भूमिका निभाई थी। पाकिस्तान ने जब पूर्वी पाकिस्तान पर जुल्म करना शुरू किया तो वहां के लोगों ने भारत में शरण ली। शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान पाकिस्तानी शासन को अखरने लगे थे। मुजीबुर रहमान पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के लिए हीरो बन गए थे। जब पूर्वी पाकिस्तान में बगावत तेज हुई तो पाकिस्तान ने सेना को उतार दिया। इसके बाद बड़ी संख्या में आवामी लीग के सदस्य भारत में शरण लेने लगे। जब भारत में शरणार्थी बढ़ने लगे तो भारत ने भी पाकिस्तान के खिलाफ उतरने का फैसला कर लिया।

भारत ने मुक्तिवाहिनी की मदद की। इसके बाद पाकिस्तान की वायु सेना ने भारत पर हमला किया। इसके बाद युद्ध शुरू हो गया और अंत में पाकिस्तानी जनरल नियाजी को आत्मसमर्पण करना पड़ गया। बांग्लादेश इसके लिए हमेशा से ही एहसानमंद है। आजादी के बाद बांग्लादेश को सबसे पहले भारत ने ही राष्ट्र के तौर पर मान्यता दी थी।

साल 1975 में शेख मुजीब उर रहमान बांग्लादेश के पीएम थे। उस समय सेना की कुछ टुकड़ियों ने विद्रोह कर दिया। सेना की टुकड़ियों ने मुजीबुर्रहमान की हत्या का फैसला क लिया। इसके बाद शेख मुजीब उर रहमान के रिश्तेदारों को भी ढूंढा जाने लगा। उनके घर पर हमाल कर दिया गया। शेख मुजीब उर रहमान के घर पर हमला कया गया और उनके निजी सहायक के बेटे शेख कमाल को गोली मार दी गई। इसके बाद शेख कमाल की बीवी, छोटे बेटे और बाद में शेख मुजीब को भी गोली मार दी गई। शेख मुजीब के बेटे नासीर को भी मार दिया गया। उनके छोटे बेटे को गोलियों से भून दिया गया।  शेख हसीना उस समय पति के साथ जर्मनी में थीं इसलिए उनकी जान बच गई। बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें भारत में शरण दी। वह दिल्ली के लाजपत नगर में 1981 तक रहीं।