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नए साल में सुप्रीम कोर्ट कई मुद्दों पर सुनाएगा फैसला, इन 5 लंबित मामलों से प्रभावित होगी देश की दशा-दिशा

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नई दिल्ली
भारतीय न्यायपालिका ने अपने निर्णयों के माध्यम से भारतीय समाज पर व्यापक प्रभाव डाला है। इस वर्ष शीर्ष अदालत के न्यायिक निर्णयों से इस बात का आभास होता है कि हमारा लोकतंत्र किस दिशा में जा रहा है। इस साल सेम जेंडर मैरिज और आर्टिकल 370 के फैसले की उत्सुकता से प्रतीक्षा की गई तो अब 2024 में सुप्रीम कोर्ट की पीठ चुनावी बांड, ज्ञानवापी विवाद और फ्रीबीज पर अपना फैसला सुनाएगी।

इलेक्टोरल बांड योजना
चुनावी बांड के गड़बड़ी वाले मामले की भी सुनवाई हो चुकी है और नवंबर में शीर्ष अदालत ने फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया है। चुनौती चुनावी बांड योजना की संवैधानिक वैधता थी जिसने राजनीतिक फंडिंग को बेहद अपारदर्शी बना दिया है और मतदाताओं के जानने का अधिकार खत्म कर दिया गया है। चुनावी बांड वाहक उपकरण हैं जिन्हें व्यक्तियों द्वारा राजनीतिक दान के लिए खरीदा जा सकता है। क्रेता की पहचान छुपाई जाती है लेकिन केंद्र सरकार के पास पहचान जानने के साधन हैं। यह प्रतिष्ठान को असंगत रूप से लाभप्रद स्थिति में रखता है, जो अंततः चुनावी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है। संविधान पीठ ने चुनाव आयोग को सभी राजनीतिक दलों की राजनीतिक फंडिंग का डेटा सीलबंद लिफाफे में सौंपने का निर्देश दिया था। यह निर्णय भारत के चुनावी लोकतंत्र के भाग्य के लिए निर्णायक होगा।

राजनीतिक दलों के मुफ्त के वादे (फ्रीबीज)
राजनीतिक दल लोगों का वोट सुरक्षित करने के लिए मुफ्त बिजली/पानी की आपूर्ति, बेरोजगारों, दिहाड़ी मजदूरों और महिलाओं को मासिक भत्ता के साथ-साथ लैपटॉप, स्मार्टफोन आदि जैसे गैजेट देने का वादा करना फ्रीबीज राजनीति कहलाता है। इस मुद्दे को लेकर वकील अश्वनी उपाध्याय ने आपत्ति जताई और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उन्होंने अपने इस याचिका में कहा कि देश के करदाताओं पर मुफ़्त चुनावी वादों की मार पड़ती है। उन्होंने ऐसा करने वाले दलों की मान्यता रह करने की मांग की है। इस पर सुप्रीम कोर्ट 2024 में सुनवाई करेगा।

CAA की धारा 60 की संवैधानिकता
CAA की धारा 60 की संवैधानिकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने 12 दिसंबर 2023 को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 17 याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा था। कोर्ट इस पर नए साल में फैसला सुनाएगी।

ज्ञानवापी विवाद
ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है। इस मस्जिद को लेकर दावा किया जाता है कि इसे मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। हिंदू पक्ष का दावा है कि इस ढ़ाचे के नीचे 100 फीट ऊंची विशेश्वर का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग स्थापित है। पूरा ज्ञानवापी इलाका एक बीघा, नौ बिस्वा और छह धूर में फैला है। ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि इस विवादित ढांचे के नीचे ज्योतिर्लिंग है। यही नहीं ढांचे की दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र भी प्रदर्शित है। हालांकि कुछ इतिहाकारों का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण 14वीं सदी में हुआ था और इसे जौनपुर के शर्की सुल्‍तानों ने बनवाया था, लेकिन इस पर भी विवाद है। इलाहाबाद हाईकोर्ट मंदिर पक्ष के मामले को निचली अदालत में सुनवाई के लिए हरी झंडी देते हुए मस्जिद पक्ष की पांच याचिकाएं खारिज कर दी थीं। इस मामले में मंदिर पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दायर की है। जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई संभव।

दागी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध
दागी या दोषी ठहराए जा चुके नेताओं के संसद या विधानसभा चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी बनाने या किसी पार्टी का पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वे दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के मुद्दे पर बाद में विचार करेगा। जबकि केंद्र सरकार ने आजीवन प्रतिबंध लगाने पर विरोध जताया था। आरोपी सांसदों और विधायकों के मामलों की सुनवाई अगले साल 2024 में होने की संभावना है।