नई दिल्ली
28 दलों के INDIA अलायंस ने मंगलवार को नई दिल्ली के अशोका होटल में तीन घंटे तक बैठक की। हालांकि, इस दौरान आगामी लोकसभा चुनावों में गठबंधन के प्रधानमंत्री पद के चेहरे के तौर पर किसी नाम पर कोई आधिकारिक चर्चा नहीं हुई लेकिन बैठक के दौरान ही पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रस्तावित करते हुए उन्हें दलित चेहरा के तौर पर पेश किया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ममता का समर्थन किया। हालांकि, खड़गे ने खुद कहा कि चुनाव बाद किसी चेहरे के नाम पर सहमति बनाई जाएगी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इंडिया महागठबंधन दलित चेहरे के तौर पर खड़गे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने खड़ी कर पाएगा? या पूरे इंडिया गठबंधन को या खुद कांग्रेस को ही मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम स्वीकार होगा?
मल्लिकार्जुन खड़गे कौन?
82 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। वह दलित नेता हैं जो पिछले 55 सालों से भारतीय राजनीति में सक्रिय हैं। फिलहाल वह राज्यसभा में नेता विपक्ष हैं।खड़गे मूलरूप से कर्नाटक के बीदर जिले के वासी हैं। वह डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुयायी हैं। 1969 में वह गुलबर्गा शहर कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बने थे और पहली बार 1972 में मैसूर विधानसभा का चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। वह 1972 से लगातार 9 बार विधायक रहे हैं। 2009 में उन्होंने गुलबर्गा सीट से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे। 2014 में भी वह गुलबर्गा से जीतने में कामयाब रहे लेकिन 2019 में उन्हें पहली बार हार का स्वाद चखना पड़ा। इसके बाद 2020 में वह राज्यसभा के लिए चुने गए। 2021 से वह सदन में नेता विपक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
इंडिया गठबंधन का दलित कार्ड
भारतीय राजनीति और लोकतंत्र के इतिहास में अब तक कोई दलित चेहरा प्रधानमंत्री नहीं बन सका है। कांग्रेस के शासनकाल में के आर नारायणन देश के पहले दलित राष्ट्रपति बन चुके हैं और रामनाथ कोविंद के रूप में एनडीए के शासन काल में देश को दूसरे दलित राष्ट्रपति मिल चुके हैं। द्रौपदी मुर्मू के रूप में देश को पहली आदिवासी (ST) राष्ट्रपति भी मिल चुकी हैं लेकिन अभी तक दलित प्रधानमंत्री का देश को इंतजार है। ऐसे में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए खड़गे दलित कार्ड हो सकते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए ममता और केजरीवाल ने पासा फेंका है। वैसे तो देश में सभी जातियों की आबादी के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन माना जाता है कि देश में दलितों की आबादी 25 फीसदी है। 2011 की जनगणना के मुताबिक अनुसूचित जाति (SC) की आबादी 17 फीसदी है, जबकि अनुसूचित जनजाति (ST) की आबादी 9 फीसदी है।
कहां-कहां ज्यादा दलित आबादी और किसकी सरकार?
2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, चार राज्यों में देश की दलित आबादी का आधा हिस्सा वास करता है। इनमें उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और तमिलनाडु शामिल है। गौर करने वाली बात है कि इन चार में से तीन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है। सिर्फ यूपी में ही बीजेपी की सरकार है। यहां राज्यों की आबादी का क्रमश: 20.5%, 10.7%, 8.2% और 7.2% फीसदी आबादी दलित है। बिहार में हुए हालिया जातीय गणना में वहां अनुसूचित जाति की आबादी अब 19 फीसदी बताई गई है। अन्य राज्यों पर गौर करें तो पाते हैं कि पंजाब, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा की कुल आबादी का 20 फीसदी से ज्यादा हिस्सा दलित है। हरियाणा छोड़कर दो राज्यों में भी बीजेपी की सरकार नहीं है।
खड़गे कार्ड से क्या नफा-नुकसान?
पिछले दो लोकसभा चुनावों की ही तरह बीजेपी फिर से नरेंद्र मोदी के चेहरे पर 2024 के लोकसभा चुनाव में उतरेगी। मोदी ओबीसी चेहरा और विकास पुरुष का छवि रखते हैं। इंडिया गठबंधन की तरफ से नीतीश कुमार मोदी के सामने ओबीसी चेहरा और विकास पुरुष की छवि वाले नेता हो सकते थे लेकिन अब इस पर पानी फिरता नजर आ रहा है। ऐसे में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की तरफ से अगर खड़गे को दलित कार्ड के तौर पर पीएम चेहरा बनाया जाता है तो पहला नुकसान उसे बिहार में उठाना पड़ सकता है। लालू और नीतीश दोनों नाराज हो सकते हैं। ओबीसी वोट बैंक पर फिर से कब्जे की कोशिश अधूरी रह सकती है और कई क्षेत्रीय छत्रप नुकसान पहुंचा सकते हैं। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश, जहां दलितों का वोट खंडित हो चुका है, वहां भी इंडिया गठबंधन दलित कार्ड से कुछ नया हासिल नहीं कर पाएगा क्योंकि कांग्रेस का जमीनी आधार हिन्दी पट्टी के राज्यों में बहुत कमजोर हो चुका है। मायावती ने अभी तक इंडिया अलायंस में शामिल होने के संकेत नहीं दिए हैं। अगर मायावती भी उस गठबंधन में शामिल होती हैं तब दलित कार्ड असरदार हो सकता है।
बसपा साथ आई तो दलित कार्ड का क्या असर
बसपा के इंडिया अलायंस में शामिल होने से ना केवल यूपी बल्कि एमपी, राजस्थान, बिहार, दिल्ली, पंजाब और अन्य राज्यों में दलित वोट बैंक एकजुट हो सकता है। वैसे नरेंद्र मोदी और बीजेपी 2017 में ही रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर इस दलित कार्ड का तिलिस्म अपने पाले में कर चुकी है। बावजूद इसके ग्रैंड अलायंस बनने पर बीजेपी को खासकर यूपी में नुकसान उठाना पड़ सकता है लेकिन इसमें खड़गे की व्यक्तिगत भूमिका नगण्य रह सकती है। मायावती के गठजोड़ में शामिल होने से दलित वोट सहजता से गठबंधन के पाले में आ सकता है।
आंकड़ों में दलित का पत्ता
लोकसभा में कुल 131 सीटें आरक्षित हैं। इनमें 84 सीटें अनुसूचित जाति के लिए और 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित हैं। SC के लिए रिजर्व 84 में से 46 सीटें फिलहाल बीजेपी के पास हैं। कांग्रेस के पास सिर्फ पांच सीटें हैं। यूपी में अनुसूचित जाति के लिए कुल 17 सीटें हैं, इनमें से 12 पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि दो पर बसपा का कब्जा है। सपा और कांग्रेस के पास एक भी सीट नहीं है। वैसे बसपा की जीत में सपा का भी योगदान रहा है क्योंकि 2019 में दोनों ने मिलकर चुनाव लड़ा था। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि अगर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन ने मल्लिकार्जुन खड़गे को पीएम चेहरा बना भी दिया तो उसे क्या हासिल हो सकेगा?