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खड़गे के नाम पर INDIA में घमासान, नीतीश परेशान! आर-पार के मूड में JDU

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पटना

विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A में अपनी फजीहत कराने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फिलहाल कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। उनके तमाम लटके-झटके और टोटके किसी काम नहीं आए। बैठक में तीन ऐसी बातें हो गईं, जिसे नीतीश की फजीहत मानी जा सकती है। अपनी इसी फजीहत की वजह से नीतीश इतने भड़के और गरम हुए कि इंडी गठबंधन ज्वाइंट मीडिया ब्रीफिंग में हिस्सा लिए बगैर चल दिए। नीतीश के साथ लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव भी निकल गए। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नीतीश कुमार ने तीन मौकों पर फजीहत झेली।

पहली घटना- हिन्दी में भाषण पर बवाल

बैठक में नीतीश कुमार ने अपना भाषण हिन्दी में दिया। हिन्दी में दिए गए उनके भाषण को बैठक में शामिल डीएमके के नेता नहीं समझ पाए। एमके स्टालिन ने आरजेडी के राज्यसभा सदस्य मनोज झा से इसके अंग्रेजी अनुवाद का आग्रह किया। मनोज झा ने डीएमके नेताओं के आग्रह पर जब नीतीश के भाषण का अंग्रेजी अनुवाद बताना शुरू किया तो नीतीश यह कहते हुए भड़क गए कि अपने को हम लोग हिन्दुस्तानी कहते हैं तो हमें हिन्दी समझ में आनी चाहिए। नीतीश के गुस्से पर बैठक में किसी ने प्रतिक्रिया तो नहीं दी, लेकिन बैठक में शामिल सभी नेता उनके इस जवाब और तेवर से दंग थे।
 

दूसरी घटना- भारत के नाम पर फंसाया

नीतीश कुमार ने प्रसंगवश विपक्षी गठबंधन का नाम I.N.D.I.A रखने के बाद बीजेपी की पहल पर देश का नाम भारत रखने को उचित बताया। जिस वक्त वे भारत नाम रखने को भाजपा का बेहतर कदम बता रहे थे, उस वक्त सोनिया गांधी की हालत देखने लायक थी। दूसरे नेता भी आश्चर्य करने लगे। किसी ने कोई प्रतिक्रिया तो नहीं दी, लेकिन बैठक में भाजपा की उपलब्धि की चर्चा जरूर लोगों को बेमानी लगी। इससे पहले गठबंधन के I.N.D.I.A नामकरण पर भी नीतीश कुमार ने आपत्ति जताई थी। हालांकि उन्हें छोड़ कर सबने इस नाम को स्वीकार लिया था।
 

तीसरी घटना- मीडिया ब्रीफिंग से दूर रहे

पहली बार विपक्षी दलों की पटना में हुई बैठक में जिस तरह के तेवर अरविंद केजरीवाल ने दिखाए थे, ठीक उसी अंदाज में नीतीश भी गठबंधन की चौथी बैठक में नजर आए। बैठक समाप्त होने पर नीतीश कुमार ने मीडिया ब्रीफिंग में शामिल होना मुनासिब नहीं समझा। वे चुपचाप निकल लिए। उनको निकलते देख लालू और तेजस्वी भी साथ हो लिए। नीतीश के इस आचरण को उनकी नाराजगी से जोड़ कर देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार बेहद खफा होने की स्थिति में ही ऐसा कदम उठाते हैं।

भाव नहीं मिलने से नीतीश की नाराजगी

बैठक में एक-दो बातों को छोड़ सारी चीजें नीतीश के मनोनुकूल थीं। जैसे- राज्य स्तर पर सीट शेयरिंग का फैसला हुआ। यह नीतीश कुमार के मन की बात थी। 31 दिसंबर तक सीट बंटवारे का काम हो जाना है। नीतीश कुमार भी यही चाहते थे कि अब और देर नहीं होनी चाहिए। 30 जनवरी से साझा रैलियों की बात हुई। यह भी नीतीश के मन के ही मुताबिक है। नीतीश का गुस्सा सिर्फ इस बात को लेकर माना जा रहा है कि ममता ने मल्लिकार्जुन खरगे को पीएम कैंडिडेट बनाने का प्रस्ताव रखा तो अरविंद केजरीवाल ने तुरंत समर्थन कर दिया। संयोजक बनाने की बात हवा में उड़ गई।

नीतीश पर अब बढ़ेगा आरजेडी का दबाव

आरजेडी नेताओं को लंबे समय से इस बात का इंतजार रहा है कि जितनी जल्दी हो, नीतीश कुमार बिहार की राजनीति छोड़ कर केंद्र में जाएं। उन्हें आरंभ में आरजेडी ने चने के झाड़ पर चढ़ा कर पीएम पद का सपना दिखाया। आरजेडी की ओर से बार-बार यह कहा गया कि नीतीश विपक्ष की ओर से पीएम कैंडिडेट होंगे। दूसरी ओर मन ही मन गदगद होने के बावजूद नीतीश कुमार इनकार करते रहे कि उन्हें पीएम नहीं बनना। फिर बात विपक्षी गठबंधन के संयोजक की हुई। पहली बैठक से ही इसकी सुगबुगाहट शुरू हुई और चौथी बैठक आते-आते इसकी अवधारणा ही समाप्त हो गई। अब यह निश्चित हो गया है कि नीतीश न पीएम बनेंगे और न संयोजक, तो आरजेडी को निराशा हाथ लगी है। ऐसे में आरजेडी का हल्लाबोल ब्रिगेड एक बार फिर नीतीश पर हमलावर हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।

सुनील-सुधाकर का पहले से रहा है प्रेशर

आरजेडी के विधायक सुधाकर सिंह और एमएलसी सुनील कुमार सिंह की लालू परिवार से काफी नजदीकी है। सुधाकर सिंह के पिता जगदानंद सिंह आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। सुनील सिंह लालू की पत्नी को मुंहबोली बहन मानते हैं। दोनों की पहचान नीतीश कुमार की बखिया उधेड़ने वालों के रूप में होती रही है। सुनील कुमार सिंह तो इशारों में ही नीतीश को आड़े हाथों लेते रहे हैं। बिहार में शराब बिक्री को लेकर सुनील सिंह ने मंगलवार को तंज कसा। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा- ‘बिहार में शराबबंदी की हालत वही है, जैसे मानिए कि किसी व्यक्ति का पूरा शरीर नंग-धड़ंग हो और उसने पैर में चांदी की पाजेब पहन रखाी हो।‘ उसी दिन उनका दूसरा पोस्ट आया- ‘मेरी प्रबल इच्छा है कि गरीब जनता के टैक्स से बिहार संग्रहालय से राजगीर तक एक सुरंग बने, जिसका नाकरण उनके ही नाम पर हो।‘ राजगीर को नीतीश का कोप भवन माना जाता है और यह नीतीश के गृह जिले में है। सुनील का इशारा सीधे-सीधे नीतीश कुमार की ओर है। नीतीश जब-जब नाराज होते हैं तो राजगीर चले जाते हैं। माना जाता है कि वहां जाकर उनकी अंतरात्मा जागती है।

लालू-नीतीश के बीच अनबन तो नहीं !

बेंगलुरु में विपक्षी गठबंधन की बैठक हुई तो वहां भी नीतीश का ऐसा ही रूप देखने को मिला था। वहां से भी वे बिना ज्वाइंट प्रेस कान्फ्रेंस में हिस्सा लिए चल दिए थे। साथ में लालू भी थे। तब लालू का मन रुकने का था, लेकिन नीतीश की हड़बड़ी की वजह से उन्हें भी निकलना पड़ा। इस बार भी नीतीश के तेवर में कोई बदलाव नहीं आया। जिन दिनों संयोजक की बात शुरू हुई थी, उसी वक्त लालू ने सबसे पहले बताया था कि संयोजक की कोई जरूरत नहीं। कांग्रेस के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाना है तो अलग से संयोजक की क्या जरूरत। स्थितियां देख कर तो यही लगता है कि लालू और नीतीश के बीच शीत युद्ध चल रहा है, जो बाहर से तो नहीं दिखता, लेकिन भीतर से दोनों भारी गुस्से में हैं।

 

जनता दल (यूनाइटेड) के एक वरिष्ठ नेता ने खड़गे का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ाए जाने पर नाराजगी व्यक्त की है। इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 29 दिसंबर को जेडीयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुला ली है।

इंडिया गठबंधन की बैठक के बाद दिल्ली के सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नाराज हो गए हैं। उन्होंने दिल्ली में अपनी पार्टी के सभी सांसदों से मुलाकात की। साथ ही 29 दिसंबर को दिल्ली में ही पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाने का फैसला किया। हालांकि जेडीयू के लिए यह तारीख पहले से ही तय था। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होने वाली है। हालांकि, इंडिया की बैठक के बाद जेडीयू ने राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाने का फैसला किया, जिसमें पार्टी के सभी बड़े नेता मौजूद रहेंगे। पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अफाक अहमद ने इसकी पुष्टि की है कि दोनों बैठकें एक ही दिन होंगी। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि अल्प सूचना पर परिषद की बैठक बुलाने का क्या कारण है।

जेडीयू में बेचैनी
जेडीयू के वरिष्ठ नेता ने यह स्वीकार किया है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम पर पार्टी के भीतर बेचैनी है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी के साथ ही उसी दिन राष्ट्रीय परिषद बुलाने का निर्णय असामान्य है। अक्सप प्रमुख राजनीतिक निर्णय लेने के लिए यह बैठक बुलाई जाती है। जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “यह निश्चित रूप से भविष्य में कुछ महत्वपूर्ण निर्णयों का संकेत है। राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाने के फैसले ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया है।''

ममता का प्रस्ताव, केजरीवाल-उद्धव का समर्थन
आपको बता दें कि इंडिया गठबंधन की मंगलवार की बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में खड़गे के नाम की वकालत की। इस सुझाव का दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी समर्थन किया।