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रेवदर और आबू-पिंडवाड़ा में निर्दलियों से खतरा, कांग्रेस को मिल रही कड़ी टक्कर

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सिरोही.

विधानसभा चुनाव 2023 के मतदान में अब महज एक दिन का समय शेष रह गया है। सिरोही जिले की तीनों विधानसभा सीटों पर चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों ने मतदाताओं का समर्थन पाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इस बार के चुनाव में रेवदर एवं आबू-पिंडवाड़ा विधानसभा क्षेत्रों में निर्दलीय उम्मीदवार भाजपा एवं कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ सकते हैं, जबकि विधानसभा सिरोही में कांग्रेस विधायक एवं मुख्यमंत्री सलाहकार संयम लोढ़ा को भाजपा प्रत्याशी ओटाराम देवासी कड़ी टक्कर दे रहे हैं। यहां पर भाजपा एवं कांग्रेस ने मतदाताओं को रिझाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। अब देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठेगा।

रेवदर विधानसभा :—
0- छह बार भाजपा तो पांच बार कांग्रेस प्रत्याशी बने विधायक, निर्दलीय प्रत्याशी कभी नहीं जीत सके
0- 1967 में आबू पिंडवाड़ा से अलग रेवदर विधानसभा बनने के बाद 13वीं बार चुना जाएगा विधायक, लगातार चार बार जीतने के बाद पांचवीं बार चुनाव लड़ रहे जगसीराम कोली- कुल मतदाता- 2 लाख 83 हजार 551
0- पुरुष मतदाता- 1 लाख 49 हजार 654
0- कुल महिला मतदाता- 1 लाख 33 हजार 888
0- थर्ड जेंडर- 9

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रेवदर विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती रही है। लगातार चौथी बार जीत के बाद 5वीं बार भाजपा ने जगसीराम कोली को मैदान में उतारा है। वहीं रेवदर से प्रधान रह चुके वर्तमान जिला परिषद सदस्य मोतीराम कोली भी मैदान में पूरा जोर लगा रहे हैं। जिले के सबसे अधिक आबादी वाले आबूरोड शहर व टीएसपी ब्लॉक आबूरोड समेत गुजरात से लगती जिले की सीमा को जोड़ने वाली रेवदर विधानसभा सीट पर गुजरात की राजनीति का असर भी देखने को मिलता है। इस बार के विधानसभा चुनाव में कुल 2 लाख 83 हजार 551 मतदाता विधायक का चयन करेंगे। इनमें 1 लाख 33 हजार 888 महिला मतदाता भी अहम भूमिका निभाएगी। इस बार चुनावी मैदान में भाजपा कांग्रेस के अलावा भारत आदिवासी पार्टी से गणपतलाल मेघवाल, भीम ट्राइबल कांग्रेस से संगीता रल्हान, बहुजन समाज पार्टी से वीनाराम व एक निर्दलीय प्रत्याशी गोपाल दाना समेत कुल 6 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें एक महिला प्रत्याशी भी शामिल है।

विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास
विधानसभा के इतिहास की बात करें तो 1967 में अलग रेवदर विधानसभा बनने के बाद भाजपा के जगसीराम कोली और कांग्रेस के छोगाराम बाकोलिया ही विधायक रहते हुए दोबारा जीत सकें। रेवदर विधानसभा के सबसे पहले चुनाव 1967 में स्वतंत्र पार्टी (एसडब्ल्यूए) के मोतीलाल पहली बार विधायक बने थे। इससे पूर्व 1952 में जिले भावरी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी मोहब्बसिंह विधायक बने थे, लेकिन रेवदर विधानसभा बनने के बाद कोई निर्दलीय प्रत्याशी विजयी नहीं हो सका। 1972 के बाद चार बार लगातार कांग्रेस के प्रत्याशी विजयी रहे। इसमें 1972 में जेठमल आर्य, 1977 में माधो सिंह, 1980, 1985 व 1998 में छोगाराम बाकोलिया विजयी रहे थे। बाकोलिया 1981 में कांग्रेस सरकार में मंत्री बने थे। इसके बाद वें 1998 में यातायात मंत्री बने थे। 1990 में भाजपा के टिकमचंद कांत व 1993 में वर्तमान विधायक जगसीराम कोली के रिश्तेदार जयंतीलाल कोली विधायक बने थे। 1998 के बाद रेवदर विधानसभा सीट से कांग्रेस कभी जीत नहीं सकी। 2003 से लगातार भाजपा के जगसीराम कोली इस सीट से विधायक हैं। विधानसभा चुनावों में सबसे बड़े अंतर से जीत 2013 में भाजपा के जगसीराम कोली ने कांग्रेस के लखमाराम कोली के सामने 32 हजार 244 वोट से दर्ज की थी। वहीं, सबसे कम जीत का अंतर 1990 में भाजपा के टिकमचंद कांत ने कांग्रेस के छोगाराम बाकोलिया के समक्ष 1889 वोट से दर्ज किया था।

कृषि और चिकित्सा के लिए गुजरात का रुख
विधानसभा क्षेत्र आबूरोड और रेवदर ब्लॉक गुजरात से सटे होने के कारण चिकित्सा, कृषि समेत कई क्षेत्रों में गुजरात पर निर्भर है। वर्तमान में विधानसभा क्षेत्र में सीएचसी से उच्च श्रेणी का अस्पताल नहीं होने से मरीजों को पालनपुर की तरफ का रुख करना पड़ता है। वहीं, कृषि मंडी नहीं होने के कारण अपनी फसल को बेचने के लिए गुजरात के ऊंझा मंडी जाना पड़ता है। रेवदर और आबूरोड में खेती अधिक होने से सौफ, अरंडी, टमाटर समेत विभिन्न फसलें यहां से बिक्री के लिए गुजरात जाती हैं। क्षेत्र के प्रमुख मुद्दों में कृषि उपज मंडी खोलना, रेवदर में ट्रोमा सेंटर और आबूरोड में जिला अस्पताल, रेवदर और आबूरोड में महिला कॉलेज आदि प्रमुख मुद्दे हैं, जिन्हें देखकर जनता इस बार मताधिकार का प्रयोग करेगी।

आबू पिंडवाड़ा में लगातार तीसरी बार नहीं जीता कोई विधायक-
आबू पिंडवाड़ा से लगातार दो बार विधायक रह चुके समाराम गरासिया हैट्रिक के लिए चुनावी मैदान में कर रहे प्रयास, तो कांग्रेस से आबूरोड प्रधान लीलाराम गरासिया भी लगा रहे जोर-भारत आदिवासी पार्टी से मेघाराम गरासिया भी भाजपा-कांग्रेस को दे रहे चुनौती।

आबू पिंडवाड़ा विधानभा –
    कुल मतदाता – 2 लाख 28 हजार 282
    पुरुष मतदाता – 1 लाख 17 हजार 961
    कुल महिला मतदाता – 1 लाख 10 हजार 320
    थर्ड जेंडर – 1

जिले के आदिवासी बहुल व अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित आबू पिंडवाड़ा विधानसभा में गत दो बार से भाजपा के प्रत्याशी विजयी हो रहे हैं, लेकिन विधानसभा क्षेत्र के इतिहास की बात करें तो यहां से कोई भी विधायक लगातार तीसरी बार नहीं जीत सका है। ऐसे में ये देखना होगा कि भाजपा के समाराम विधानसभा क्षेत्र के इतिहास को बदलने में कामयाब होते हैं या फिर क्षेत्र की जनता कांग्रेस से प्रत्याशी लीलाराम गरासिया को मौका देकर विधानसभा के इतिहास को कायम रखती है। भाजपा-कांग्रेस के अलावा भारत आदिवासी पार्टी से मेघाराम गरासिया भी आदिवासी क्षेत्र में अच्छी पकड़ बनाते नजर आ रहे हैं। चुनावी मैदान में भीम ट्राइबल कांग्रेस के अमरसिंह कलूंधा, बहुजन समाज पार्टी के सुरेंद्र कुमार व निर्दलीय प्रत्याशी कपूराराम मीणा समेत कुल 6 उम्मीदवार है। इन उम्मीदवारों के किस्मत का फैसला क्षेत्र के 2 लाख 28 हजार 282 मतदाता अपने मताधिकार से करेंगे। इनमें 1 लाख 10 हजार 320 महिला मतदाता अहम भूमिका निभाएंगे।

शुरुआती चुनाव में एक बार जीते निर्दलीय प्रत्याशी
आबू पिंडवाड़ा विधानसभा बनने के बाद से अब तक केवल शुरुआती चुनाव में एक बार निर्दलीय प्रत्याशी की जीत हुई है। इसके बाद कांग्रेस से 8 बार व भाजपा से 5 बार विधायक चुने जा चुके हैं। शुरू से अब तक केवल तीन प्रत्याशी लगातार दो बार चुनाव जीते हैं। तीसरी बार लगातार कोई विधायक जीत हासिल नहीं कर सका है। 1957 में निर्दलीय प्रत्याशी दलपतसिंह विधायक बने थे। उसके बाद 1962 में दलपतसिंह पुन: कांग्रेस से विजयी हुए थे। 1962 में आबू विधानसभा के पिंडवाड़ा विधानसभा बनने पर हुए पुन: चुनाव में कांग्रेस के रविशंकर विधायक बने थे। 1967 में विधानसभा के सामान्य से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होने पर कांग्रेस के गमाराम व 1972 व 1980 में भूराराम विधायक बने। 1977 में जेएनपी पार्टी के अलदाराम विधायक बने थे। 1985 में कांग्रेस के सुरमाराम के विधायक बनने के बाद 1990 में पहली बार भाजपा के प्रभुराम गरासिया विधायक बने। जो लगातार दो बार जीतने के बाद तीसरी बार उन्हें 1998 में कांग्रेस के लालाराम गरासिया के समक्ष हार का सामना करना पड़ा था। 2003 में भाजपा के समाराम गरासिया पहली बार विधायक बने थे। 2008 में कांग्रेस की गंगाबेन ने भाजपा के दुर्गाराम को हरा कर जीत दर्ज की थी। एक बार टिकट कटने के बाद समाराम को भाजपा ने दो बार 2013 व 2018 में मौका दिया और दोनों बार ही समाराम ने जीत हासिल कर विधायक चुने गए हैं। अब भाजपा ने पुन: समाराम गरासिया को चुनावी मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस से आबूरोड प्रधान लीलाराम गरासिया प्रत्याशी के रूप में कड़ी टक्कर दे रहे हैं।

पिंडवाड़ा ब्लॉक को पूर्ण टीएसपी बनाना व माउंट आबू का विकास अहम मुद्दा
विधानसभा क्षेत्र के आदिवासी बहुल होने के बावजूद अब तक पिंडवाड़ा के सभी आदिवासी बहुल गांव टीएसपी में शामिल नहीं हो सके हैं। करीब पांच वर्ष पूर्व आबूरोड ब्लॉक के सम्पूर्ण क्षेत्र व पिंडवाड़ा के कुछ गांवों को ही टीएसपी में शामिल किया गया था। पिंडवाड़ा के वंचित रहे गांवों को टीएसपी में शामिल करना, विधानसभा क्षेत्र में आने वाले प्रदेश के एकमात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबू में विकास करवाना अहम मुद्दों में शामिल है। पिंडवाड़ा में करीब पांच वर्ष पूर्व खुले राजकीय महाविद्यालय भवन नहीं होने से किराए के भवन में ही संचालित हो रहा है। पिंडवाड़ा में अस्पताल को क्रमोन्नत करने, नए कॉलेज भवन का निर्माण, देलदर तहसील के आदिवासी बहुल भाखर क्षेत्र में एक भी पीएचसी नहीं होने से यहां पीएचसी खोलने, देलदर तहसील मुख्यालय से भाखर क्षेत्र को जोड़ने के लिए सीधा सड़क मार्ग समेत विभिन्न प्रमुख मुद्दे हैं, जिन्हें देखकर क्षेत्र के मतदाता इस बार मतदान करेंगे।