23 नवंबर से 15 दिसंबर तक विवाह के लिए केवल 13 मुहूर्त, यहां देखें तिथियों की लिस्टइस साल 23 नवंबर से 15 दिसंबर तक केवल 15 मुहूर्त हैँ. इस अबूझ मुहूर्त में भी बड़ी संख्या में लग्न होते हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह के आयोजन ज्यादा होते हैं. ऐसे में देवउठनी एकादशी से शादियां प्रारंभ हो जाएगी. नवंबर-दिसंबर में 13 दिन के शादियों के मुहूर्त में कई जोड़े शादी के बंधन में बंधेंगे.
23 से 30 नवंबर तक यानी 8 दिन में विवाह के 6 शुभ मुहूर्त है. इनमें 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी को स्वयं सिद्ध अबूझ सावा रहेगा. नवंबर में 6 और साल के अंतिम महीने दिसंबर में 7 सावे रहेंगे. 29 जून 2023 को श्रीहरि विष्णु योग निद्रा में चले गए थे तथा इसी दिन से चातुर्मास शुरू हो गए.
वहीं इस बार सावन अधिक मास के कारण चातुर्मास चार की जगह पांच माह का रहा. चातुर्मास के साथ ही शहनाइयों की धूम थम गई थी. 16 दिसंबर 2023 से 14 जनवरी 2024 तक धनु के सूर्य खरमास में विवाह बंद रहेंगे.
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी से 15 दिसंबर तक विवाह के लिए कुल 13 मुहूर्त होंगे. 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी से शुभकार्य प्रारंभ हो जाते हैं. कम मुहूर्त होने के कारण अधिकांश स्थानों पर मैरिज गार्डन, होटल में लोगों को मनचाही तारीख की बुकिंग नहीं मिल रही है. पंडितों के पास भी मुहूर्त की सभी तारीखें बुक हो चुकी है.
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि हिंदू धर्म में विवाह को एक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है. सनातन धर्म में किसी भी जातक का विवाह कुंडली मिलान कर तय किया जाता है. ज्योतिष शास्त्र में यह मान्यता है कि कुंडली में गुणों के मिलान के साथ-साथ शुभ मुहूर्त में विवाह करने पर वर और वधु को सौभाग्य की प्राप्ति होती है. हिंदू धर्म में कार्तिक माह में देवउठनी एकादशी तिथि से विवाह का लग्न शुरू होता है.
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है. ऐसे में इस साल 23 नवंबर को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी और 24 नवंबर को तुलसी विवाह होगा. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 नवंबर को 11.03 मिनट बजे शुरू होगी और 23 नवंबर को 09.01 मिनट पर खत्म होगी.
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि सनातन धर्म में विवाह को पवित्र कर्म कांड माना गया है. ज्योतिष पंचांग देखकर और कुंडली मिलान कर विवाह मुहूर्त निकालते हैं. शास्त्रों में निहित है कि शुभ मुहूर्त में विवाह करने से वर और वधु को सौभाग्य की प्राप्ति होती है. साथ ही उनका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है. अतः विवाह तय करते समय तिथि का विशेष ध्यान रख जाता है. वर्तमान समय में चातुर्मास चल रहा है. इस दौरान शादी-विवाह समेत अन्य शुभ कार्य करने की मनाही होती है. वहीं, कार्तिक माह में देवउठनी एकादशी तिथि से विवाह का लग्न शुरू होता है.
देवोत्थान एकादशी पर शुभ कार्य
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है. यह एकादशी दीपावली के बाद आती है. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं, इसलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है. कहते हैं कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं. भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. इसलिए देवोत्थान एकादशी पर श्री हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं. इसके बाद तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है.
नवंबर-दिसंबर में 13 दिन शादी
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पंचांग के अनुसार नवंबर में 6 और दिसंबर में 7 विवाह मुहूर्त हैं.
नवंबर: 23, 24, 25, 27, 28, 29
दिसंबर- 5, 6, 7 8, 9, 11, 15
विवाह मुहूर्त में लग्न का महत्व
शादी-ब्याह के संबंध में लग्न का अर्थ होता है फेरे का समय. लग्न का निर्धारण शादी की तारीख तय होने के बाद ही होता है. यदि विवाह लग्न के निर्धारण में गलती होती है तो विवाह के लिए यह एक गंभीर दोष माना जाता है. विवाह संस्कार में तिथि को शरीर, चंद्रमा को मन, योग व नक्षत्रों को शरीर का अंग और लग्न को आत्मा माना गया है यानी लग्न के बिना विवाह अधूरा होता है.
क्यों मिलाई जाती है कुंडली
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि रीति-रिवाज और पंचांग के अनुसार विवाह में वर और वधू के बीच दोनों की कुंडलियों को मिलाया जाता है. इस व्यवस्था को कुंडली मिलान या गुण मिलान के नाम से जानते हैं. इसमें वर और कन्या की कुंडलियों को देखकर उनके 36 गुणों को मिलाया जाता है. जब दोनों के न्यूनतम 18 से 32 गुण मिल जाते हैं तो ही उनकी शादी के सफल होने की संभावना बनती है. बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके गुण मिलान में 24 से 32 गुण तक मिलते हैं लेकिन वैवाहिक जीवन बहुत ही दुश्वारियों भरा होता है. इसका मुख्य कारण यह है कि पुरुष-स्त्री दोनों के जीवन का अलग-अलग विश्लेषण करने से पता चलता है.
शादी के लिए 10 रेखा सावा सबसे मंगलकारी
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि शादी-विवाह को आज भी परिवारों में शुभ मुहूर्त में मंगलकारी मानते हैं. सबसे बेहतर 10 रेखा सावा रहता है. विवाह मुहूर्त में मार्च में सबसे कम दो दिन शहनाई बजेगी. साथ ही बसंत पंचमी, रामनवमी, भड़ल्या नवमी, अक्षय तृतीया सहित कई अबूझ सावे होंगे. मार्च 2023 में होलाष्टक और अप्रैल में खरमास लगने पर मांगलिक कार्य नहीं होंगे. 29 जून से चातुर्मास शुरू हो जाएगा. अधिकमास होने से पांच महीने चातुर्मास रहेगा. इससे देवशयनी एकादशी 29 जून से 23 नवंबर देवउठनी एकादशी तक सावे नहीं हो सकेंगे. देवउठनी एकादशी का अबूझ सावा रहेगा. इसके बाद लग्न मुहूर्त शुरू होंगे. ज्योतिष के मुहूर्त चिंतामणी ग्रंथ में रेखीय सावों का जिक्र है. इसमें यह माना जाता है कि 10 रेखा सावा में यानी जिसमें एक भी दोष नहीं होते हैं. वो 10 रेखा सावा होता है.
ग्रह-नक्षत्रों की मौजूदगी के अनुसार होता है रेखा का निर्धारण
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि ग्रह-नक्षत्र वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते हैं। ग्रह-नक्षत्रों की मौजूदगी के अनुसार रेखा का निर्धारण होता है. सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त दस रेखाओं का माना जाता है. नौ रेखाओं का सावा भी उत्तम माना है. सात से आठ रेखाओं का मुहूर्त मध्यम मानते हैं. इनमें लता, पात, युति, वेध, जामित्र, पंच बाण, तारा, उपग्रह दोष, कांति साम्य एवं दग्धा तिथि, इन 10 तरह के दोषों का विचार के बाद ही विवाह का शुभ मुहूर्त रेखीय के आधार पर निकाला जाता है. जितनी ज्यादा रेखाएं होंगी, मुहूर्त उतना ही शुद्ध होता है. अगर किसी जातक के गुण मिलान भी नहीं हो तो 10 रेखा में शुद्ध लगन देकर विवाह को प्राथमिकता प्रदान करते हैं.
नवंबर 2023 के विवाह मुहूर्त
– 23 नवंबर (गुरुवार) का दिन विवाह मुहूर्त के लिए सबसे शुभ रहने वाला है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागेंगे.
– 24 नवंबर (शुक्रवार) को तुलसी विवाह का दिन है. अत: यह दिन भी शुभ माना जा रहा है.
– 27 नवंबर (सोमवार), कार्तिक पूर्णिमा.
– 28 नवंबर (मंगलवार) का दिन भी विवाह के लिए शुभ माना जा रहा है.
– 29 नवंबर (बुधवार) का दिन भी बेहद शुभ माना जा रहा है क्योंकि इस दिन मृगशिरा नक्षत्र बनने जा रहा है.
दिसंबर 2023 के विवाह मुहूर्त
– 5 दिसंबर (मंगलवार) को दिसंबर माह का पहला मुहूर्त रहेगा. इस दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र और नवमी तिथि का संयोग बन रहा है.
– 6 दिसंबर (बुधवार), 7 दिसंबर (गुरुवार), 8 दिसंबर (शुक्रवार) और 9 दिसंबर (शनिवार) भी शुभ दिन रहेगा.
– 11 दिसंबर (सोमवार) को अमावस्या पड़ रही है और अनुराधा नक्षत्र का संयोग बन रहा है.
–15 दिसंबर (शुक्रवार) को विवाह मुहूर्त का अंतिम दिन रहेगा क्योंकि इसके बाद से खरमास की शुरुआत हो जाएगी.
जनवरी 2024 में विवाह मुहूर्त
16 जनवरी 2024 (मंगलवार), 17 जनवरी 2024 (बुधवार), 20 जनवरी 2024 (शनिवार), 21 जनवरी 2024 (रविवार), 22 जनवरी 2024 (सोमवार), 27 जनवरी 2024 (शनिवार), 28 जनवरी 2024 (रविवार), 30 जनवरी 2024 (मंगलवार), 31 जनवरी 2024 (बुधवार)
फरवरी 2024 में विवाह मुहूर्त
4 फरवरी 2024 (रविवार), 6 फरवरी 2024 (मंगलवार), 7 फरवरी 2024 (बुधवार), 8 फरवरी 2024 (गुरुवार), 12 फरवरी 2024 (सोमवार), 13 फरवरी 2024 (मंगलवार), 17 फरवरी 2024 (शनिवार), 24 फरवरी 2024 (शनिवार), 25 फरवरी 2024 (रविवार), 26 फरवरी 2024 (सोमवार), 29 फरवरी 2024 (गुरुवार)
मार्च 2024 में विवाह मुहूर्त
1 मार्च 2024 (शुक्रवार), 2 मार्च 2024 (शनिवार), 3 मार्च 2024 (रविवार), 4 मार्च 2024 (सोमवार), 5 मार्च 2024 (मंगलवार), 6 मार्च 2024 (बुधवार), 7 मार्च 2024 (गुरुवार), 10 मार्च 2024 (रविवार), 11 मार्च 2024 (सोमवार), 12 मार्च 2024 (मंगलवार)
अप्रैल 2024 में विवाह मुहूर्त
18 अप्रैल 2024 (गुरुवार), 19 अप्रैल 2024 (शुक्रवार), 20 अप्रैल 2024 (शनिवार), 21 अप्रैल 2024 (रविवार), 22 अप्रैल 2024 (सोमवार)
जुलाई 2024 में विवाह मुहूर्त
9 जुलाई 2024 (मंगलवार), 11 जुलाई 2024 (गुरुवार), 12 जुलाई 2024 (शुक्रवार), 13 जुलाई 2024 (शनिवार), 14 जुलाई 2024 (रविवार) 15 जुलाई 2024 (सोमवार)
नवंबर 2024 में विवाह मुहूर्त
12 नवंबर 2024 (मंगलवार), 13 नवंबर 2024 (बुधवार), 16 नवंबर 2024 (शनिवार), 17 नवंबर 2024 (रविवार), 18 नवंबर 2024 (सोमवार), 22 नवंबर 2024 (शुक्रवार), 23 नवंबर 2024 (शनिवार), 25 नवंबर 2024 (सोमवार), 26 नवंबर 2024 (मंगलवार), 28 नवंबर 2024 (गुरुवार), 29 नवंबर 2024 (शुक्रवार)
दिसंबर 2024 में विवाह मुहूर्त
4 दिसंबर 2024 (बुधवार), 5 दिसंबर 2024 (गुरुवार), 9 दिसंबर 2024 (सोमवार), 10 दिसंबर 2024 (मंगलवार), 14 दिसंबर 2024 (शनिवार), 15 दिसंबर 2024 (रविवार)
देवउठनी एकादशी से इन शुभ कार्यों की हो जाएगी शुरुआत
देवउठनी एकादशी से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाएगी. जिनमें शामिल हैं- विवाह, मुंडन, जनेऊ धारण और गृह प्रवेश आदि. देवउठनी एकादशी को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि इससे चातुर्मास का समापन होता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार देवउठनी एकादशी पर रखे गए व्रत और भगवान विष्णु-माता लक्ष्मी की पूजा से दोगुना फल प्राप्त होता है.