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हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन को साधने पर जोर, 15-17 जून को आसियान देशों संग भारत की बैठक

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हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन को साधने के लिए भारत आसियान देशों के साथ बैठक करेगा. ये बैठक 15 से 17 जून के बीच होगी. इसमें सभी सदस्य देशों के विदेश मंत्री भाग लेंगे. बता दें कि भारत पहली बार भारत आसियान के 10 देशों के विदेश मंत्रियों की मेजबानी करेगा. इस मीटिंग में हिंद प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क (IPEF) पर चर्चा की संभावना है. बता दें कि 7 आसियान देश IPEF में शामिल हुए हैं.

आसियान दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन है. इसका मकसद है आपस में आर्थिक विकास और समृद्धि को बढ़ावा देना. साथ ही क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करना. इसके 11 सदस्य देश हैं- ब्रुनेई, बर्मा (म्यांमार), कंबोडिया, तिमोर-लेस्ते, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम

चीन की बौखलाहट
पिछले दिनों जापान में हुए क्‍वाड सम्मेलन के दौरान IPEF पर समझौते के बाद चीन कूटनीति के मोर्चे पर घिरता हुआ दिख रहा है. लिहाजा कहा जा रहा है कि चीन वहां के तीन प्रमुख देशों की नई सरकारों को अपने पाले में लाने में जुटा है. कहा जा रहा है कि आस्‍ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और फ‍िलीपींस में नई सरकारों के साथ चीन अपने रिश्तों को सुधारना चाहता है. इसी कड़ी में पिछले दिनों चीन के विदेश मंत्री हिंद प्रशांत क्षेत्र के देशों के दौरे पर गए थे.

 

क्वाड देशों की चेतावनी
पिछले महीने जापान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन सहित क्वाड समूह के नेताओं ने हिंद प्रशांत क्षेत्र में बिना किसी उकसावे के और एकतरफा रूप से’ यथास्थिति को बदलने और तनाव बढ़ाने की किसी भी कोशिश का पुरजोर विरोध किया था. साथ ही इन नेताओं ने बल प्रयोग या किसी तरह की धमकी के बिना शांतिपूर्ण ढंग से विवादों का निपटारा करने का आह्वान किया था. इसे आक्रामक चीन के लिये साफ संदेश के तौर पर देखा जा रहा है. क्वाड समूह के नेताओं ने क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच अंतरराष्ट्रीय नियम आधारित व्यवस्था को बरकरार रखने का संकल्प व्यक्त किय था.

 

हिंद प्रशांत क्षेत्र की अहमियत
इंडो-पैसिफिक को ग्लोबल ट्रेड के लिए काफी अहम माना जाता है. लिहाजा इस क्षेत्र के देशों के लिए ये एक आर्थिक समृद्धि का संभावित इलाका है. इसके आस-पास दुनिया की पूरी जनसंख्या के 65 प्रतिशत लोग रहते हैं. इस क्षेत्र में विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का 63 प्रतिशत और विश्व के व्यापार का 46 प्रतिशत हिस्सा है. लिहाजा चीन इस पर अपना हक जमाने की कोशिश में है.