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राजस्थान में तीसरा मोर्चा 60 साल से मौजूद लेकिन सत्ता पाने में जानें क्यों हुआ फेल

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जयपुर

 राजस्थान के विधानसभा चुनावों में अब तक दो ही पार्टियों का दबदबा रहा है। एक कांग्रेस और दूसरी भाजपा। 1980 के विधानसभा चुनावों के बाद से कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस की सरकारें बनती आई। इस दरमियान बसपा, सीपीएम, रालोपा सहित कुछ पार्टियों ने अपना वोट बैंक बनाया लेकिन सत्ता पाने में कामयाब नहीं हो सके। वर्ष 1998 से अब तक यानी पिछले 25 सालों में राजस्थान में सिर्फ दो ही व्यक्ति मुख्यमंत्री बने। इनमें एक अशोक गहलोत हैं और दूसरी वसुंधरा राजे। राजे दो बार और गहलोत तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

60 साल से तीसरे मोर्चे की मौजूदगी
भले ही राजस्थान में अब तक तीसरा मोर्चा सत्ता तक नहीं पहुंच पाया लेकिन प्रदेश में तीसरे मोर्चे की मौजूदगी पिछले 60 साल से है। स्वतंत्र पार्टी, रामराज्य पार्टी, कांग्रेस आई, कांग्रेस यू, जनता पार्टी, जनता पार्टी जेपी, जनता पार्टी सेक्यूलर, लोकदल सीपीआई, सीपीएम, बसपा, रालोपा, लोजपा, बीटीपी, आप सहित कई अपंजिकृत राजनैतिक दलों ने चुनाव मैदान में किस्मत आजमाई। अलग अलग दलों का अपना वोट बैंक भी रहा लेकिन प्रदेश स्तर पर जीत दर्ज नहीं कर सके।

इस बार रालोपा लगा रही जोर
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी इस बार काफी जोर लगा रही है। पांच साल पहले बनी इस पार्टी ने अपने पहले ही चुनाव में 58 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे। इनमें से 3 प्रत्याशियों ने जीत हासिल की और आधा दर्जन सीटों पर आरएलपी के प्रत्याशियों ने कांग्रेस और बीजेपी के प्रत्याशियों को सीधी टक्कर दी। कुल मतदान का 3 फीसदी वोट आरएलपी ने हासिल करके बड़ी पहचान बनाई। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक हनुमान बेनीवाल का दावा है कि इस बार उनकी पार्टी सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बेनीवाल का कहना है कि इस बार तीसरे मोर्चे के सहयोग के बिना किसी भी पार्टी की सरकार नहीं बन पाएगी।

बसपा ने दो बार 6-6 सीटें जीती
मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने वर्ष 2008 और वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों में 6-6 सीटें जीती लेकिन दोनों ही बार प्रदेश में कांग्रेस की सरकारें बनी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बने। दोनों ही बार बसपा के टिकट पर जीते सभी विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। हालांकि इन विधायकों के पार्टी छोड़ने का मामला कोर्ट में चलता रहा लेकिन सरकारें अपना कार्यकाल पूरा करती गई। इस बार बसपा के साथ आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम दो दर्जन सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी। एआईएमआईएम के चुनाव मैदान में उतरने से मुस्लिम वोट डायवर्ट होंगे जिसका बड़ा नुकसान कांग्रेस को हो सकता है।