Home राजनीति शिवराज सिंह चौहान को लेकर सारे कयास गलत साबित होंगे

शिवराज सिंह चौहान को लेकर सारे कयास गलत साबित होंगे

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भोपाल /जयपुर

2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भूपेंद्र पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था. तब कहा जा रहा था कि उनको चुनावों तक कुर्सी पर बिठाया गया है, जैसे टेस्ट क्रिकेट में नाइट वॉचमैन हुआ करते हैं. तब तो अगले मुख्यमंत्री का नाम भी चर्चा का हिस्सा बन चुका था, लेकिन चुनाव बाद क्या हुआ. भूपेंद्र पटेल ने मोदी का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया और वो कुर्सी पर बने हुए हैं.

राजस्थान और मध्य प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भी करीब करीब वैसी ही चर्चा है. राजस्थान में वसुंधरा राजे को लेकर और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को लेकर- चर्चा ये है कि बीजेपी नेतृत्व दोनों ही नेताओं को हाशिये पर भेज चुका है, और चुनाव बाद दोनों ही किनारे लगा दिये जाएंगे.

लेकिन क्या वाकई वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह के साथ वैसा ही होगा जैसे कयास लगाये जा रहे हैं? मान लेते हैं कि कुछ चीजों को लेकर दोनों ही नेताओं के मोदी-शाह के साथ निजी मतभेद हों, लेकिन राजनीति में ये सब कहां तक मायने रखते हैं? 

यहां हम कुछ ऐसे ही कारकों को समझने की कोशिश कर रहे हैं, जिनकी बदौलत राजस्थान में वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक हैसियत बरकरार रहने की प्रबल संभावना लग रही है.

1. क्योंकि 2024 का आम चुनाव सिर पर है

मध्य  प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को बुधनी विधानसभा सीट से उम्मीदवार बना दिया गया है, लेकिन वसुंधरा राजे को लेकर राजस्थान में सस्पेंस बना हुआ है. ये सस्पेंस उनके समर्थकों के टिकट काट दिये जाने से और बढ़ गया है. 

वसुंधरा राजे के समानांतर दीया कुमारी को मैदान में उतार दिया गया है. खास बात ये है कि दीया कुमारी को टिकट भी वसुंधरा राजे समर्थक विधायक की सीट से दिया गया है. ऐसा संकेत समझा जा रहा है कि वसुंधरा राजे के साथ-साथ राजस्थान बीजेपी के दिग्गज नेता और देश के उपराष्ट्रपति रहे भैरों सिंह शेखावत का प्रभाव पूरी तरह खत्म करने की कोशिश हो रही है.

लेकिन सौ की एक बात. 2024 का आम चुनाव सिर पर है. विधानसभा चुनाव खत्म नहीं हुए कि आम चुनाव का माहौल बन जाएगा, ऐसे में कोई क्यों इतना बड़ा जोखिम लेगा? 

ये भी नहीं भूलना चाहिये कि भले ही वसुंधरा राजे 2018 में विधानसभा चुनाव हार गयीं, लेकिन 2019 में भी 2014 की ही तरह राजस्थान की सभी 25 लोक सभा सीटें एनडीए की झोली में ही रहीं. ये ठीक है कि क्रेडिट मोदी लहर को मिला, लेकिन क्या वसुंधरा राजे का कोई योगदान नहीं रहा?

मध्य प्रदेश में भी 2018 का चुनाव हार जाने के बावजूद बीजेपी को 29 में से 28 लोक सभा सीटों पर जीत मिली – क्या ये नतीजे लाने में शिवराज सिंह चौहान का कोई योगदान नहीं रहा होगा?

2. क्योंकि दोनों नेताओं ने कोई गुनाह नहीं किया है

जब उमा भारती, कल्याण सिंह और बीएस येदियुरप्पा जैसे नेताओं की बीजेपी में वापसी हो सकती है, तो वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान ने कौन सा गुनाह किया है. उन नेताओं ने तो नेतृत्व को चैलेंज कर अलग रास्ता तक अख्तियार कर लिया था, लेकिन इन दोनों नेताओं ने तो ऐसा कभी कुछ नहीं किया है.

वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह दोनों में से किसी ने भी ऐसा कोई काम तो किया नहीं जिससे बीजेपी को नुकसान हुआ हो – फिर उनको सीएम न बनाये जाने की कोई वजह तो बनती नहीं.

3. क्योंकि दोनों ही नेताओं का अपने अपने राज्यों में कोई विकल्प नहीं है

ये तो हर कोई मानता है, और हर किसी को हकीकत भी मालूम है कि जैसे वसुंधरा राजे के कद का कोई भी नेता राजस्थान में नहीं है, बिलकुल वैसे ही शिवराज सिंह चौहान जैसा लोकप्रिय कोई भी चेहरा मध्य प्रदेश में नहीं है – फिर भला हड़बड़ी में किसे विकल्प बनाया जाएगा?

4. क्योंकि नेतृत्व से टकराव कहीं नजर तो आता नहीं

पिछले ही साल यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी आलाकमान के बीच तकरार की खबरें खूब चलीं. इस बात की भी खूब चर्चा हुई कि कैसे योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पसंदीदा नौकरशाह रहे अरविंद शर्मा को चुनाव से पहले मंत्री नहीं बनाया तो भी मोदी-शाह के साथ उनके टकराव की खासी चर्चा हुई – लेकिन चुनाव जीतने के बाद वो न सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं, बल्कि अब तो उनके समर्थक उनके लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी पर निगाह टिकाये हुए हैं. 

राजस्थान में संगठन से जुड़ी कुछ नियुक्तियों को छोड़ दें तो ऐसा भी कभी देखने को नहीं मिला है कि वसुंधरा राजे खुलेआम कभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या अमित शाह को चुनौती देती नजर आयी हों. 

और अगर शिवराज सिंह चौहान से मोदी-शाह को इतनी ही चिढ़ होती तो 2020 में उनको फिर से कमान क्यों सौंपी गयी? और शिवराज ने ऐसा क्या गलत कर दिया है कि उनको दोबारा मौका न दिया जाये?

5. क्योंकि अपने ही नेताओं को ठिकाने लगाने में हार जाने का भी तो खतरा है

2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव, 2022 में हिमाचल प्रदेश चुनाव और 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि बीजेपी को अपने स्थानीय और बड़े क्षेत्रीय नेताओं की नाराजगी बहुत भारी पड़ती है – तो क्या बीजेपी नेतृत्व थोड़े से टकराव के लिए दो राज्यों में सरकार लुटा देगा? वो भी मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में जो बीजेपी का गढ़ माने जाते हैं. 

ऐसी सूरत में इस बात की काफी संभावना है कि बीजेपी के चुनाव जीतने पर राजस्थान में वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ही मुख्यमंत्री बनें.