रांची/चतरा.
झारखंड का चतरा जिला कभी बेहतर गुणवत्ता वाले बांसों के लिए जाना जाता था। इन बांसों के बखार से प्रतिवर्ष वन विभाग को करोड़ों रुपए का राजस्व प्राप्त मिलता था, लेकिन उग्रवादियों की धमक के कारण पिछले 25 वर्षों से राजस्व पर ग्रहण लग गया है। चतरा के जंगलों से निकलने वाले बासों से उच्चकोटि के कागज तैयार होते थे।
बताया जाता है यहां के बासों की मांग इतनी थी कि प्रतिवर्ष एक से डेढ़ करोड़ रुपए के बांस रोहतास, डालमियां नगर और कोलकाता के पेपर मिलों में भेजे जाते थे। समय के साथ जंगलों में उग्रवादी गतिविधियां बढ़ने लगीं तो विभाग ने भी बासों के संरक्षण पर ध्यान देना बंद कर दिया। चतरा के जंगलों से बांस के बखार धीरे-घीरे नष्ट हो रहे हैं। इसका कारण यह है वन विभाग की ओर इसपर ध्यान नहीं दिया गया। बांस के बखारों की सफाई और कटाई समय-समय पर नहीं होने से इसका उत्पादन घटता गया। अगर इसकी कटाई और सफाई बंद कर दी जाए तो इसकी आयु मात्र 14 वर्ष रह जाती है।
उग्रवादियों के कारण जंगल की अर्थव्यवस्था हुई चौपट
चतरा के घने जंगल उग्रवादियों के सेफ जोन माने जाते हैं। उग्रवादी जंगलों में कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं। इस कारण जंगल की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो गई है। बांस के बखारों की सफाई-कटाई नहीं होने के कारण उसकी लगभग सभी प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। जंगल से बांस नहीं निकलने के कारण यहां का टोकरी उद्योग धीरे-धीरे दम तोड़ने लगा है। यहां निर्मित बांस की टोकरी, झाड़ू, पंखे और सूप झारखंड और बिहार में काफी प्रसिद्ध थे। जंगलों से बांस नहीं निकलने के कारण इस पर आश्रित हजारों परिवार बेरोजगार हो गए हैं और पलायन कर रहे हैं।
ग्रामीणों को पहले गांव में ही रोजगार मिलता था : मनोज
वन समिति से जुड़े गिद्धौर के मनोज कुमार ने बताया कि पहले चतरा के जंगलों से करोड़ों रुपए के बांस निकलते थे। इससे यहां के लोगों को गांव में ही रोजगार मिल जाता था। जंगलों में उग्रवादियों का कब्जा हुआ है बांस निकलना बंद हो गया। इससे सरकार के साथ-साथ स्थानीय लोगों को भी नुकसान हो रहा है।
क्या कहते हैं लोग
पत्थलगड्डा के राजकिशोर तिवारी का कहना है कि पहले कुंदा और प्रतापपुर प्रखंड बांस के लिए जाने जाते थे। बांस के बखारों की साफ-सफाई नहीं होने के कारण बांस बर्बाद हो रहे हैं। सिमरिया के गणेश दांगी का कहना है कि आज जंगली पशुओं का भी आतंक बढ़ गया है। इसके लिए लकड़ी माफिया जिम्मेवार हैं। टंडवा और सिमरिया के जंगलों का तस्कर जमकर दोहन कर रहे हैं।
हाथियों के उत्पात से रोकी गई बांस की कटाई : रेंजर
रेंजर सूर्यभूषण कुमार ने बताया कि जब से हाथियो का उत्पात बढ़ा है, तब से बांस की कटाई रोक दी गई है। बांस हाथियों का पसंदीदा भोजन है। भोजन नहीं मिलने पर हाथी गांवों में तबाही मचाते हैं।