नई दिल्ली
इजरायल में सबसे ज्यादा यहूदी धर्म मानने वाले लोग सबसे ज्यादा यहूदी धर्म मानने वाले लोग हैं। यह धर्म 4000 साल पुराना है और दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। माना जाता है कि इसी से इस्लाम और ईसाई धर्म का भी उदय हुआ है। यहूदी धर्म का उदय पैगंबर अब्राहम या इब्राहिम से हुआ माना जाता है, जो ईसा से 2000 साल पहले हुए थे। पैगंबर अब्राहम की दो बीवियों से दो बेटे हुए। एक का नाम हजरत इसहाक तो दूसरे का नाम हजरत इस्माइल था। पैंगबर को पोते का नाम हजरत याकूब था। कहा जाता है कि याकूब ने ही यहूदियों की 12 जातियों के मिलाकर इजरायल बनाया था। इसलिए याकूब का दूसरा नाम इजरायल था।
भारत में यहूदियों की मौजूदगी और उसके इतिहास पर कई निबंध लिखने वाले मनोचिकित्सक और दक्षिण एशियाई कला के संग्रहकर्ता केनेथ एक्स रॉबिंस के निबंध संग्रह 'जियूज एंड द इंडियन आर्ट प्रोजेक्ट' और 'वेस्टर्न जियूज इन इंडिया' के मुताबिक, आज से करीब 3000 साल पहले यानी 973 ईसा पूर्व में यहूदियों ने सबसे पहले केरल के मालाबार तट पर भारत में प्रवेश किया था। उस वक्त ये यहूदी दक्षिणी फिलिस्तीनी शरणार्थी और कारोबारी के रूप में समंदर के रास्ते भारत आए थे। फिर धीरे-धीरे यहां बसते चले गए और देशभर में फैल गए। कोच्चि के आसपास बसे ये यहूदी हिब्रू और मलयालम मिलाकर बोला करते थे।
बेने इजरायल
यहूदियों का एक समूह महाराष्ट्र के कोंकण तट पर आकर बस गया। इसे 'बेने इजरायल' कहा जाता था। इसका मतलब 'इजरायल के बच्चे' होता है। ये लोग भी जूडिया में करीब 2200 साल पहले रोमन के अत्याचार से तंग होकर कोंकण आकर बस गए थे। एक मान्यता यह भी है कि 3000 साल पहले यानी महाभारत युद्ध के बाद के कुछ वर्षों में यहूदी धर्म के 10 कबीला कश्मीर में आकर बस गए। धीरे-धीरे वे लोग हिन्दू और बौद्ध संस्कृति में घुल मिल गए। बाद में उनके वंशज मुसलमान बन गए।
चेन्नई के यहूदी
यहूदियों का एक जत्था मद्रास के तट पर भी आकर बसा। ये लोग 17वीं सदी में भारत आकर बसे। ये लोग पुर्तगाल से भागकर यहां आए थे। इन लोगों ने यहां आकर हीरे-जवाहरात और कीमती पत्थरों के खनन और मूंगों के कारोबार का काम शुरू किया था। इन लोगों ने व्यापार के जरिए यूरोप से अपना संबंध बनाए रखा था। कुछ यहूदी देश के उत्तर-पूर्वी इलाके में भी बसे, जिन्हें बनेई मेनाशे कहा जाता था। हाल के दिनों में इनकी बड़ी आबादी इजरायल पलायन कर चुकी है लेकिन जो भारत में रह गए उन लोगों ने भारतीय जीवन शैली को अपना लिया है।
बगदादी यहूदी
यहूदियों के एक किस्म को बगदादी यहूदी या मिजराही यहूदी कहा जाता है, जो करीब 300 साल पहले यानी 18वीं सदी में समंदर के रास्ते आकर कलकत्ता और मुंबई में आकर बस गए थे। यहूदियों का यह तबका पढ़ा लिखा और मेहनतकश था, जो बहुत ही जल्दी यहां समृद्ध और धनी हो गया था। ये लोग मराठी, हिंदी और बांग्ला बोलना जानते थे। ये लोग मुंबई के आसपास के शहरों पुणे-थाणे में भी बस गए थे। इन लोगों ने ब्रिटिश राज में नौकरी करनी शुरू कर दी थी। इनके जिम्मे सेना और प्रशासन का काम होता था।
क्या था कारोबार
बगदादी यहूदी 8वीं से 10वीं शताब्दी तक अब्बासिद ख़लीफ़ा के दौरान व्यापार में भी लगे हुए थे। वे व्यापारिक उद्देश्यों के लिए जहाज से यात्रा करते थे। बगदादी यहूदियों में सबसे प्रसिद्ध और धनी ससून राजवंश था, जिसने चीन के साथ अफ़ीम का व्यापार कर बहुत लाभ कमाया था और बाद में भारतीय कपास का कारोबार करने लगा था। 1860 के दशक के दौरान जब अमेरिकी कपास की आपूर्ति बाधित हो गई थी, तब लंकाशायर के मिलों को भारतीय कपास बेचने लगा था। इससे भी इन लोगों ने खूब पैसा कमाया था।
अब कहां अधिकांश यहूदी
1948 में जब इजरायल एक देश बना, तब करीब 80,000 भारतीय यहूदी वहां जाकर बस गए। ये पलायन 1950 से 1960 के दशक में हुआ। अब भारत में सिर्फ 5,000 यहूदी बचे रह गए हैं। इनमें से 3,500 सिर्फ मुंबई में हैं। यहां भारत का सबसे बड़ा यहूदी समुदाय केंद्रित है। केरल में भी अब केवल 100 कोच्चि यहूदी बचे हैं। वहां से भी करीब 7,000 से ज्यादा यहूदी इजरायल पलायन कर गए।