नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव से पहले गरमा रही ओबीसी और जातिगत राजनीति में हर दल दांव चल रहा है। कांग्रेस भी पूरी तरह ओबीसी के नारों पर कूद गई है। वैसे इसकी असली परीक्षा ओबीसी में भी अगड़े और पिछड़े की लड़ाई से होगी। दरअसल ओबीसी में पिछड़ी जातियों का रुझान मुख्यत: राष्ट्रीय दलों के साथ रहा है, जबकि भाजपा और कांग्रेस के बीच लड़ाई की स्थिति में 65 प्रतिशत से अधिक वोट भाजपा के खाते में जाता रहा है।
बिहार में जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी हो गए हैं और आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी का नारा बुलंद किया जा रहा है। यह और बात है कि उस आंकड़े पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। यादव और मुस्लिम को छोड़कर हर जाति के नेता की ओर से आंकड़ों की सच्चाई पर सवाल खड़ा किया जा रहा है।
वैसे 2014 के बाद से भाजपा का पूरा रूपांतरण हो चुका है और जो पार्टी पहले अगड़ी जातियों की मानी जाती थी, वह उस वोट वर्ग को संभालते हुए ओबीसी की पार्टी भी बन गई। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह गिनाया भी था कि वर्तमान में पार्टी के 303 सांसदों में 85 ओबीसी वर्ग से हैं। यही हाल विधानसभाओं और विधानपरिषदों में भी है जहां लगभग 30 प्रतिशत ओबीसी विधायक हैं।
भाजपा के ओबीसी समर्थकों में वृद्धि हुई तेज
वस्तुत: 10 वर्षों में भाजपा के ओबीसी समर्थकों में वृद्धि तेज हुई है। 2014 में पहली बार भाजपा के ओबीसी समर्थकों में 10 प्रतिशत से ज्यादा वृद्धि हुई। 2019 में फिर से 10 प्रतिशत का उछाल आया और यह आंकड़ा 44 प्रतिशत पर पहुंच गया। 2019 में कांग्रेस को 15 प्रतिशत ओबीसी ने समर्थन दिया। सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे के अनुसार मई 2023 में भाजपा को ओबीसी समर्थन एक प्रतिशत और बढ़कर 45 प्रतिशत तक पहुंच गया। यह वह वक्त है जब बिहार में जाति आधारित गणना को लेकर शोर उठ रहा था।