नई दिल्ली
महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्हें ऐसे मामलों में संवेदनशील होने की आवश्यकता है। दरअसल, एक व्यक्ति और उसकी मां द्वारा अपनी पत्नी के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने की सजा के खिलाफ दायर अपील को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह उम्मीद की जाती है कि अदालतें अपराधियों को अधूरे जांच या सबूतों में महत्वहीन कमियों के कारण आजाद रहने की अनुमति नहीं देंगी, क्योंकि ऐसे मामलों से पीड़ित इस अपराध से पूरी तरह हतोत्साहित हो जाएंगे और अपराधियों को सजा नहीं मिलेगी।
2014 के मामले में कोर्ट ने की सुनवाई
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने शुक्रवार को दिए अपने फैसले में कहा, "महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े मामलों में अदालतों से संवेदनशील होने की उम्मीद की जाती है।" यह फैसला उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मार्च 2014 के आदेश को चुनौती देने वाली दो दोषियों की अपील पर आया है।
कई धाराओं के तहत मामला दर्ज
उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा था, जिसने 2007 में दर्ज मामले में मृतक के पति और सास को दोषी ठहराया था। पति बलवीर सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 498-ए (एक विवाहित महिला के साथ क्रूरता करना) के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था। वहीं, मृतक की सास को आईपीसी की धारा 498-ए (किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता करना) के तहत अपराध का दोषी ठहराया गया था।