नई दिल्ली
देश 565 टुकड़ों में बंट चुका होता अगर सरदार पटेल नहीं होते लेकिन इस समर्थन और सहयोग में एक शख्स का नाम और शामिल है जिनकी ज़रूरत, योगदान और सहयोग को दरकिनार नहीं किया जा सकता. वप्पला पांगुन्नी मेनन का जन्म केरल के पलक्कड़ जिले में साल 1893 की तारीख 30 सितंबर को हुआ. एक शख्सियत जो यूं तो सरकारी दरवाजे पर एक मामूली क्लर्क तक सीमित थी. लेकिन बुद्धि इतनी तीक्ष्ण थी कि उनके द्वारा सुझाई गईं रणनीतियां हमेशा अव्वल दर्जे की होतीं। यही कारण था कि उन्होंने सीधा क्लर्क से ब्रिटिश भारत के प्रशासन में एक अधिकारी की जगह बना ली थी जो बाद में वायसरायों और कद्दावर राजनीतिज्ञों के विश्वासपात्रों में गिने जाने लगे थे। पिता पेशे से एक स्कूल के हेडमास्टर थे और 12 भाई- बहनों में सबसे बड़े थे.
कोयला खद्दानों में भी किया काम
आर्थिक स्थिति केवल एक ही कंधे पर टिकी थी सो मेनन ने 13 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ उन कंधों को सहारा देने का निर्णय लिया। मजदूरी की और कोयला खद्दानों में भी काम किया. और फिर अपने कठिन भरे जीवन को बेहतर मोड़ देने के लिए तंबाकू की फैकट्री में काम करने के साथ-साथ टाइपिंग सीखी और एक दिन होम डिपार्टमेंट में क्लर्क सह-टाइपिस्ट की जॉब में भर्ती हो गए और फिर यहीं से उनका राजनीतिक सफर शुरू हो जाता है…
रजवाड़ों को मिलाने में भूमिका….
जब देश आजाद हुआ तो देश के भीतर मौजूद 565 रियासतें भी आजाद हुई। ब्रिटिशर्स ने उन्हें यह आजादी दी हुई थी कि वे या तो भारत और पाकिस्तान में शामिल हो जाएं या खुद स्वतंत्र रह लें फैसला उनके ऊपर था। लिहाजा अधिकतर रियासतों ने अकेले और स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया।
रजवाड़ों को एकता के सूत्र में बांधा
लेकिन देश के लिए यह एक गंभीर मुद्दा था क्योंकि वह अगर स्वतंत्र रहने का का ऐलान करते तो देश कईं टुकड़ों मे विभाजित हो जाता और जिस भारत का मानचित्र आज हम देख रहें हैं वह फिर कुछ और ही होता. महात्मा गांधी सरदार पटेल पर बहुत विश्वास करते थे और उन्हें पूरा भरोसा था कि यही वह शख्सियत है जो बिखरे रजवाड़ों को एकता के सूत्र में बांध सकता है। सरकार वल्लभभाई पटेल गांधी जी के शब्दों पर खरे उतरें और उन्होंने देसी रियासतों को एकजुट कर अखंड भारत की मिसाल पेश की. लेकिन एक ऐसे शख्स के जरिये जो दक्षिण भारत से ताल्लुक़ात रखता था और रियासतों के महाराजाओं को
इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन-(विलय का सहमति पत्र) पर हस्ताक्षर कराने की तकनीक जानता था. उस समय उन रियासतों से भी बात करना जोखिम भरा था. जोधपुर के राजा ने तो मेनन पर बंदूक तक तान दी थी. यही नहीं जब कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भारत में विलय होने से इनकार कर दिया तो वह मेनन ही थे जिन्होंने जैसे-तैसे कश्मीर के राजा को भारत में शामिल होने के लिए हस्ताक्षर कराए.
कबाइलियों ने कश्मीर पर किया तो भेजी सेना
जब पाकिस्तानी कबाइलियों ने कश्मीर पर हमला किया तो मेनन ने कश्मीर में भारतीय सेना भिजवाने से पहले राजा से इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर कराए. तभी भारतीय सेना कश्मीर की मदद करने के लिए राजी हुई. हालांकि इसके बाद कश्मीर का भाग्य जनमत संग्रह पर टिका था. पर वह तत्कालीन हालात को देखते हुए हो न सका. लेकिन अगर मेनन कश्मीर में भारतीय सेना भेजने के लिए त्वरित दिल्ली सूचना नहीं देते तो आज भारत का नक्शा कुछ अलग होता.