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भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों की नजरें एशियाई खेलों में पहले स्वर्ण पर

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हांगझोउ

पिछले कुछ समय में अप्रत्याशित सफलता हासिल करने वाले भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों की नजरें यहां एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने पर लगी होंगी। भारतीय खिलाड़ियों की बैडमिंटन की स्पर्धायें बृहस्पतिवार से शुरू होंगी।

भारत ने एशियाई खेलों में अब तक बैडमिंटन में दस पदक जीते हैं जिनमें पुरूषों की व्यक्तिगत स्पर्धा के तीन, पुरूषों की टीम स्पर्धा के तीन, महिलाओं की टीम स्पर्धा के दो और पुरूष युगल तथा मिश्रित युगल का एक एक पदक शामिल है।

भारत ने 1986 में सियोल एशियाई खेलों के बाद से पुरूषों की टीम स्पर्धा में कोई पदक नहीं जीता है। थॉमस कप चैम्पियन भारतीय टीम के पास हालांकि इस बार सुनहरा मौका है।

टीम में एच एस प्रणय, लक्ष्य सेन, सात्विक साइराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी हें जो अच्छे फॉर्म में चल रहे हैं। वैसे एशियाई खेलों में चीन, कोरिया, जापान, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे दिग्गजों के रहते यह आसान नहीं होगा।

लक्ष्य सेन ने कहा, ‘‘टीम अच्छी है। इसी टीम ने थॉमस कप जीता था लिहाजा हम विश्व चैम्पियन के रूप में जा रहे हैं। हम दुनिया की किसी भी टीम को हरा सकते हैं और हमें हराना आसान नहीं होगा।''

दो बार की ओलंपिक पदक विजेता पी वी सिंधू ने जकार्ता में चार साल पहले रजत पदक जीता था। उनके अलावा साइना नेहवाल ने कांस्य पदक जीता। पुरूष एकल में एकमात्र कांस्य सैयद मोदी ने जीता था।

पिछले कुछ समय में भारतीयों के प्रदर्शन को देखते हुए उनसे काफी उम्मीदें हैं। विश्व चैम्पियनशिप कांस्य पदक विजेता एच एस प्रणय और राष्ट्रमंडल खेलों के स्वर्ण पदक विजेता सात्विक साइराज और चिराग पदक के दावेदारों में होंगे।

सिंधू ने हमेशा बड़े टूर्नामेंटों में अच्छा प्रदर्शन किया है लेकिन पिछले साल एड़ी के आपरेशन के बाद उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। वह इस सत्र में कम से कम दस टूर्नामेंटों में शुरूआती दौर से ही बाहर हो गई। अप्रैल में स्पेन मास्टर्स में ही फाइनल तक पहुंच सकी थी।

भारतीय महिला टीम में गायत्री गोपीचंद और त्रिसा जॉली युगल में होंगे जबकि सिंधू के साथ अष्मिता चालिहा, अनुपमा उपाध्याय और मालविका बंसोड जैसे युवा खिलाड़ी हैं जिनका सामना अन सी यंग, ताइ जू यिंग और अकाने यामागुची जैसे धुंरधरों से होगा।

विश्व चैंपियन धावक डाफने शिपर्स ने लिया संन्यास

द हेग
नीदरलैंड की दो बार की विश्व चैंपियन एथलीट डाफने शिपर्स ने 31 साल की उम्र में संन्यास की घोषणा की। हर एक खिलाड़ी के जीवन में एक ऐसा क्षण आता है जब उसे न चाहते हुए भी अपने करियर को अलविदा कहना पड़ता है।

ऐसा ही समय अब विश्व चैंपियन एथलीट डाफने शिपर्स के करियर में आया है। काफी समय से चोटों से जूझने के बाद उन्होंने 31 साल की उम्र में संन्यास की घोषणा की।

शिपर्स के करियर का मुख्य आकर्षण बीजिंग में 2015 विश्व चैंपियनशिप थी जब उन्होंने 200 मीटर में स्वर्ण और 100 मीटर में रजत पदक जीता था।

फिर, दो साल बाद लंदन में उन्होंने 200 मीटर में अपने खिताब का बचाव किया और 100 मीटर में तीसरे स्थान पर रहीं। शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने 2016 के रियो ओलंपिक खेलों में 200 मीटर में रजत पदक जीता था।शिपर्स के पास अभी भी 2015 में बीजिंग में 21.63 सेकंड के समय के साथ 200 मीटर में यूरोपीय रिकॉर्ड है।

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में शिपर्स को कई चोटों का सामना करना पड़ा। उनका अभी भी पेरिस में 2024 ओलंपिक खेलों के लिए क्वालीफाई करने का सपना था, लेकिन अब उन्हें एहसास हुआ कि सपना सच नहीं होगा तो उन्होंने इसे छोडऩे का फैसला किया।
शिपर्स ने कहा, मैंने अपने जीवन को पटरी से उतारकर आगे बढऩे और जो भी आगे आएगा उसे अपनाने का फैसला किया है, लेकिन आप सबके समर्थन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कहे बिना नहीं। यह बिना किसी अफसोस के एक खास यात्रा रही है।