नई दिल्ली
भारत में महिला जन प्रतिनिधियों को विधायिका में 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए पेश किया गया विधेयक लोकसभा में पारित हो गया है। वहीं दुनिया के जिन देशों में महिला प्रतिनिधियों की संख्या का अनुपात अधिक है, उन देशों में आरक्षण के लिए कानून नहीं बनाया गया है बल्कि वहां कई राजनीतिक दलों ने अपनी पार्टी में महिला सदस्यों को आरक्षण दिया है। थिंक टैंक पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च के अध्ययन में कहा गया है कि संसद में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने से मतदाताओं की पसंद सीमित होगी। इसके बजाए राजनीतिक दलों के अंदर महिला सदस्यों के लिए आरक्षण या दो सदस्यों वाले संसदीय क्षेत्र बेहतर विकल्प होंगे।
महिला प्रतिनिधित्व
9% औसत प्रतिनिधित्व है महिला सदस्यों का राज्यों की विधान सभा में
13% राज्यसभा सांसद महिलाएं
42% महिला सांसद बीजेडी की
39% सांसद महिला हैं टीएमसी में
14% महिला सांसद हैं भाजपा की
आरक्षण के बिना बढ़ी हिस्सेदारी
स्वीडन और नार्वे में 46 प्रतिशत जनप्रतिनिधि महिला हैं। दक्षिण अफ्रीका में 45 प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया में 38 प्रतिशत, फ्रांस और जर्मनी में 35 प्रतिशत और जनप्रतिनिधि महिला हैं। इन देशों में कानून बना कर सीटें आरक्षित नहीं की गईं हैं लेकिन कुछ राजनीतिक दलों ने अपनी पार्टी में महिला सदस्यों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है।
28 राज्यों में सिर्फ एक महिला मुख्यमंत्री
राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने की बात सभी राजनीतिक दल करते हैं । लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। देश में मौजूदा समय में सिर्फ एक महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं, पश्चिम बंगाल की। वे तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो हैं। महिला सदस्यों को लोकसभा या विधानसभा चुनाव में टिकट देने की बात आती है तो राजनीतिक दल उम्मीदवार के जीतने की संभावना को पैमाना बना कर टिकट देते हैं। और यहीं पर महिला सदस्यों की हिस्सेदारी कम हो जाती है। आम तौर पर पहले से राजनीति में स्थापित परिवार की महिला सदस्यों को टिकट मिलता है। कुल मिलाकर महिला सदस्यों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर सभी राजनीतिक दलों का रवैया निराशाजनक रहा है।