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स्वसहायता समूह की महिलाओं द्वारा तैयार किया जा रहा पहला आर्डर दो लाख दीये का, छत्तीसगढ़ से रौशन होगी इस बार दिल्ली की दीवाली, गोबर से बने दीये की मांग दिल्ली और नागपुर से आई हैं

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रायपुर। इधर गोबर है.. थोड़ा देख के चलो.. उधर गोबर है.. थोड़ा बच के चलो. तुम्हारें दिमाग में तो गोबर भरा है.. कुछ ऐस शब्दों और वाक्यों के साथ अक्सर कुछ लोग गाय के गोबर का देखते हुए कुछ इसी तरह से प्रतिक्रिया देते हैं। जैसे गोबर दुनिया की सबसे खराब चीज हो, लेकिन यह गोबर कितना कीमती हो सकता है, कितना उपयोगी हो सकता है यह इस प्रदेश के मुख्यमंत्री को और गांव में रहने वाली महिलाओं को मालूम हैं। तभी तो, कल तक सिर्फ कण्डे और खाद बनाने के लिए काम आने वाला यह गोबर अब इतना महत्व का हो गया है कि इससे बने उत्पादों का आर्डर देश की राजधानी दिल्ली से मिलने लगा हैंै। यहा के गोठानों से निकलने वाले गोबर से तैयार पूजन सामग्री और उत्पाद की मांग दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं। दिल्ली जैसे महानगर में जहां दीपावली त्यौहार के समय चाइनीज दीये, मोमबत्ती व झालर का बोलबाला रहता है ऐसे में पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये उपयोगी छत्तीसगढ़ के गोबर से बने बायो दीये प्रदूषण की मार झेल रहे दिल्लीवासियों के लिये एक राहत जैसा है। ईकोफ्रेण्डली होने के साथ-साथ लक्ष्मी पूजन, दीवाली में गाय के गोबर का खास महत्व होता हैं। इन्हीं खास महत्व की वजह से ही गाय के गोबर से बने दीये की मांग दिल्ली और नागपुर से आई हैं। पहला आर्डर दो लाख दीये का हैं। जिसे स्वसहायता समूह की महिलाओं द्वारा तैयार किया जा रहा है। यह शासन द्वारा नरवा,गरूवा,घुरवा और बाड़ी विकास योजना की दिशा में उठाये गये कदम का ही परिणाम है कि गोठान के माध्यम से आरंग विकासखंड के ग्राम बनचरौदा की स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा गोबर से बनाई गई कलाकृतियां दिन ब दिन प्रसिद्धि प्राप्त कर रही हैं। लाल, पीला हरा एवं सुनहरे सहित आकर्षक रंगों से सजे दीये, पूजन सामग्री के रूप में ओम, श्री, स्वास्तिक, छोटे आकार की मूर्तिया, हवन कुंड, अगरबत्ती स्टैण्ड, मोबाइल स्टैण्ड, चाबी छल्ला सहित अनेक उत्पाद देखने वालों को लुभा रही है। कीमत और अहमियत बढ़ने से गाय के गोबर की डिमांड तो बढ़ ही गई, गांव में आवारा घूमने वाले पशुओं का भी सम्मान बढ़ गया हैं। खासकर गोठान जहां गांव की सभी गाय इकट्ठी होती है वहा से निकलने वाला गोबर अब जैविक खाद और उपयोगी उत्पाद के रूप में गांव की बेरोजगार बैठी अनेक महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के साथ-साथ आत्मनिर्भरता की राह पर ले जा रही हैं। ग्राम बनचरौदा की स्व-सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं द्वारा गोठान में आने वाले पशुओं के गोबर से कलाकृतियां बनाने का कार्य किया जा रहा है। लगभग 46 महिलाएं है जो गाय के गोबर से दीया, हवनकुंड, गमले, फ्रेण्डशिप बैण्ड, राखी एवं पूजन सामग्री बनाने की कला में निपुण हो गई हैं। समूह से जुड़ी टुकेश्वरी चंद्राकर ने बताया कि समूह की महिलाओं का अलग-अलग दायित्व है। गोबर लाने से लेकर गोबर का पाउडर तैयार करने और अन्य सामग्री के साथ मिश्रण कर एक आकर्षक उत्पाद तैयार करने की जिम्मेदारी है। उन्होंने बताया कि आकृति तैयार होने के बाद उसे फिनिशिंग टच देने और अलग-अलग रंगों के माध्यम से सही रूप देने में महिलाओं का योगदान होता है। इसकी पैकेजिंग और मार्केटिंग की जिम्मेदारी भी है। हाल ही में सांचा आदि तैयार कर काम शुरू किया गया है। अभी दो हजार का आर्डर जिला स्तर पर पूरा किये है।

उन्होंने बताया कि दिल्ली से दो लाख दीयें का आर्डर मिला है। जिसे पूरा करने महिलाएं लगी हुई है। समूह की सदस्य हेमीन बाई और ममता चंद्राकर ने बताया कि सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक सभी महिलाएं कुछ न कुछ काम करती है। एक दिन में एक महिला 300 तक दीये तैयार कर सकती है। दीया तैयार करने के बाद उसे मूर्त रूप देने का काम भी किया जाता हैं। गोठानों से निकलने वाले गाय के गोबर से तैयार डिजाइन किये दीये की कीमत फिलहाल पांच रूपये और छोटे दीये की कीमत दो रूपये रखी गई है। यह दिखने में भी बहुत आकर्षक है। स्वास्तिक, श्री, ओम की कलाकृति की कीमत पांच रूपये, शुभ लाभ, मोबाइल स्टैण्ड की कीमत 100 रूपये, गणेश भगवान की प्रतिमा की कीमत 101 रूपये रखी गई है। इनमें से दीया सहित अन्य उत्पादों का उपयोग तो जरूरत के हिसाब से किया ही जा सकता है साथ ही घरों एवं दफ्तरों में सजावट के लिये भी गोबर के इस उत्पाद का उपयोग सुदंरता बढ़ाने के लिये लिये किया जा सकता है।

गाय के गोबर से बने उत्पाद अनेक दृष्टिाकोण से उपयोगी है। मिट्टी की कटाई रोकने में मददगार और मिट्टी को दीये का रूप देकर उसे आग में पकाने जैसी प्रक्रियाओं से दूर गोबर के दीये को धूप में सूखाकर तैयार किया जाता है। इस प्रकार के दीये एवं सामग्री को आसानी से नष्ट करने के साथ खाद के रूप में किया जा सकता है। यह पर्यावरण के साथ स्वास्थ्य के लिये भी लाभदायक है। गाय के गोबर से बने दीये सहित अन्य कलाकृतियां देखने वालों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। बनचरौदा में आदर्श गोठान देखने आये राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वहा के मंत्रियों ने जब स्व-सहायता समूह की महिलाओं द्वारा तैयार उत्पादों को देखा तो गोबर से बने इन उत्पादों की जमकर प्रशंसा की। प्रतीक चिन्ह के रूप में उन्हें जब गोबर से बना उत्पाद और अपनी नाम लिखी सामग्री मिली तो उनकी खुशी दुगनी हो गई। उन्होंने अपने प्रदेश में में नंदी गौशाला प्रारंभ करने और गोबर से उत्पाद तैयार करने के इस तरह के नवाचार को अपनाने की बात कही।